Sunday, January 22, 2012

बाज़ार है, सबकुछ बिकाऊ नहीं : देवेश तिवारी



आज खुशी होती है कि बड़ी संख्या में युवा पत्रकारिता के मिशन से जुड़ रहे हैं। आना भी चाहिए इसे युवाओं की जरूरत है। लेकिन आने वाले किसी भी युवा को रेंडमली सेलेक्ट करके आप एक सवाल पूछें की क्यों आए हैं। अगर आप पहली बार मिलते हैं तो जवाब होगा देश सेवा के लिए और मैत्रिपूर्ण व्यवहार बनाकर पूछते हैं तो जावाब आता है कि पैसा और ग्लैमर के लिए| दरसअल दूसरा जवाब ही सही जवाब है, अगर ये दोनों न हो तो फिर भला एक आठ घंटे की रोजी कमाने वाले राजमिस्त्री से कम तनख्वाह में भला 13 घन्टे शारीरिक और 24 घन्टे मानसिक रूप से काम करने कौन आता| ग्लैमर समझ में आता है ये पैसा कौन सी चीज है जो इसमें कमाई जा सकती है| पत्रकारिता चीज ही ऐसी है| समझीये जब कोई इस मिशन में नया आता है तो बेशक जज्बा देखने लायक होता है| अधिकांश लोग इलेक्ट्रानिक मीडिया चुनते है ग्लैमर के लिए कुछ जो जानते हैं कि टीवी का रास्ता अखबार से निकलता है वे यहाँ आते हैं| अब छ: महीने तो सब बढ़िया लगता है, मगर जब निजी जिंदगी तबाह होती नजर आती है, और शौक पुरे करने के लिए पैसे कम पड़ते हैं, तब ग्लैमर भूलकर रास्ता कहीं और चला जाता है| ये रास्ता प्रेस क्लब से निकलता है| भले ही प्रेस क्लब में आपके संबंधों का फैलाव होता हो, लेकिन हकीकत यह भी है की यहाँ नैतिक पतन की ट्यूशन दी जाती है| नया दिमाग नया जज्बा लिए आप पहुचते हैं .. आपकी उर्जा को एक ही सीनीयर इस तरह निराशा में बदलता है कि अधिकांश पहले दिन ही घर लौट लेते हैं या पीएससी कि कोचिंग का पता पूछते हैं| खैर मुद्दा है तोड़ी का ..ये शब्द देश के किसी प्रेस क्लब में ही अवतरित हुआ है| जो प्रेस से नहीं हैं उन्हें बताना होगा कि तोड़ी क्या है| गेन मनी थ्रू ब्लेक मेल दैट इस काल्ड तोड़ी | आप रिपोर्टिंग पे निकलेंगे, जब भी एंटी खबर मिली, आपको आफर तोड़ी का| आप नहीं लेंगे बास को आफर तोड़ी का| ये है तोड़ी,, फिर कोई ले न ले| आज जो भी मुझे खबर देने आता है कहता है तोड़ी का बढ़िया जुगाड़ है आप देख लो ... जिससे मिलता हूँ, भूले से अगर उन्हें पता चल जाये कि अखबार में लिखते हैं| पहला शब्द, अरे खूब मिलता होगा | कहता हूँ  मिलता है, भाई कभी साथ में चलो, उन्हें क्या पता  लघु, दीर्घ सारी शंकाए अंदर फस जाती है जब खबर कि ललक होती है| ये फब्तियां, ये व्यंग, ये पूरी पत्रकारिता कौम को संडे मार्केट में बिकने वाले साबुन खड्डे की निगाह से देखना,,ये क्या है|  हम कोई पीपरमेंट या नड्डा हैं|  जो हमेशा बिकने के लिए ही टांगे जायेंगे,, लोगों के मन में पत्रकारों को लेकर ऐसी मानसिकता क्यों .. हमने तो गाँधी .. गणेशशंकर विद्यार्थी, माखनलाल और तिलक की पत्रकारिता डूब कर पढ़ी है ,, इसमें ये तोड़ी शब्द क्यों नहीं मिला| अब जो पीढ़ी पत्रकारिता में आ रही है उनमे ये तोड़ी छाया देखने को नहीं मिली है खासकर उनमे जो प्रिंट मीडिया में हैं| सबसे बड़ा सवाल कैसे सुधरेंगे ये हालात, लोगों को केवल कुछ चुनिंदा लोगों की प्रकृति ही दिखाई देती है .. और बाकि का त्याग कुछ भी नहीं है| जब लोग अपने घरों में आराम करते हैं तब यही पत्रकार उनकी चाय की चुस्की के साथ देश दुनिया का हाल दिखाने जाग रहा होता है | लोगों को सिलेंडर न मिले, यही पत्रकार खबर के माध्यम से पूरा खाद्य विभाग हिला देता है, लेकिन जब खुद के घर गैस खत्म हो तो बिस्किट खाकर सो जाता है | लोग ये कब समझेंगे कि पत्रकारिता नौकरी नहीं है जिसमे पत्रकार पैसा कमाते हैं .. पावभाजी कि दुकान वाले चाचा एक सिटी चीफ से अधिक पैसा कमाते हैं| यह जूनून है जिसके सामने पैसा महज़ जिंदगी जीने के लिए रोटी का जुगाड़ भर है | इससे ज्यादा कुछ नहीं .. मैंने तो ऐसे लोगों को भी देखा है जिन्होंने न कभी तोड़ी की, न कभी तोड़ीबाजों की निंदा की, जो आया गले से लगाया, आज जब पत्रकारिता कि पूरी कौम बदनाम होने को है|  ऐसे हालात में भी भ्रष्टाचार और घोटालों कि ख़बरें पढ़ने को मिलती है, दरअसल इन्हें लिखने वाले ही पत्रकारिता कि आत्मा हैं ..जिनसे आबाद है ये अमिट कौम ..

केवल लहरों को देखकर न करना, समुंदर की गहराई का फैसला
जहाँ तक नजर जाती है, सूरमाओं कि परछाई भर है
जब ये पन्ने उलटते हैं, तो ज्वारभाटे की लहर आती है
कभी कलम कि निब गड़ा दें, तो ज़लज़ला और सुनामी से कोहराम मच जाये
ये जिंदा हैं तब तक लोकतंत्र जिंदा है
वरना हर रोज ताबूत बनाने संसद में प्रस्ताव आते हैं

2 comments:

  1. Hamari Subhkamnaein Aapke Sath Hai Devesh Bhai

    Kuch aise jalwe bikhero tum
    ki har koi tumahara ho jae
    jannat ki tamanna fir kisko
    jannat kaa najara ho jae

    Buland Hausle Hi manjil ka pata dete hai .....So plz Carry on...................

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