कविताएं: देश

 इतिहास पढाया जायेगा

रावण अब रामों से कहते गठबंधन की सेज सजाकर देखो
युधिष्ठिर से कौरव कहते हैं पांचाली फीर दांव लगाकर देखो
इस युध्द में भी अभिमन्यु मारा जाएगा
फिर भीष्म को तीरों पे लिटाया जाएगा
फिर कौरव की सेना को युद्ध में हराया जाएगा
कभी इसे अध्याय बनाकर इतिहास पढाया जायेगा :देवेश तिवारी अमोरा

..............................................................................

गरीबों के छोटे छोटे सपनों से कोई अनुबंध करो भाई 

चेहरों पर आंसू आज भी हैं
चेहरे कई रूंआसू आज भी हैं
भूख मिट गई हां मगर हाथ खाली हैं
विकास के पैमाने तब सारे जाली हैं
सपने कहां थमते हैं चने और अनाज में
काफी कुछ जरूरी है जीने इस समाज में
रोटी कपड़ा मकान की राजनीति अब बंद करो भाई
वोटिया राजनीति छोड़कर
गरीबों के छोटे छोटे सपनों से कोई अनुबंध करो भाई : देवेश तिवारी अमोरा

.............................................................

कैसा हो रहा भारत निर्माण हम रटते जाएं ये कहिए
संसद पर बहसे छिड़ती हैं 
आलू गोभी प्याजों की 
कोई बात नहीं करता हैं
शोषित और समाजों की 
विपक्ष नफा नुकसान के 
तमाशे रोज सजाता है
सिमाओं पर कोई घुसकर 
लाशें रोज गिराता है।

कब तक सब चुप होकर हम सहते जाएं ये कहिए
कैसा हो रहा भारत निर्माण हम रटते जाएं ये कहिए

चीनी सेना घुसपैठ की
खबरें हैं अखबारों में
कड़े कदम के जुमले अब
निलाम हुए बाजारों में
भारतीय सिंहों की वीरता को
श्रीखंडी बनाकर छोड़ दिया
नफा नुकसान में आत्मसम्मान
मंडी में सजाकर छोड़ दिया

कब तक दांत पीस पीस कर रहते जाएं ये कहिए
कैसा हो रहा भारत निर्माण हम कहते जाएं ये कहिए

राजनीति दासी हो गई
कुछ छोटी धोती वालों की
मुलायम हो गया प्रशासन
सर्मथन फेंकी रोटी वालों की
क्या इसी भारत निर्माण के लिए
आजाद ने मूंछें तानी थी
भगत सिंह झूल गए फांसी पर
क्या यही सपनों की कहानी थी

कब तक पाखण्डी वादों पर हम मुहर लगाएं ये कहिए
कैसा हो रहा भारत निर्माण हम कहते जाएं ये कहिए

55 करोड़ युवाओं का देश
और नपुंसक राजधानी
सैनिकों की गर्दन कट गए
अब भी अहिंसक राजधानी
24 घंटे के लिए सिंहासन दे दो
कुछ बाकि रह जाए तो कहना
25वें घंटे चरण चाटते
न दिख जाए दुश्मन तो कहना
कहना मुझसे कहना खुद से
आजाद मुल्क आवाम से कहना
चितौड़ की माटी से कहना
बिहार से कहना राजस्थान से कहना
कहना हल्दी घाटी से कुरूक्षेत्र से कहना
जलिया वाला बाग से कहना
प्रयाग अल्फ्रेड पार्क से कहना
कहना जिससे कहना हो पर
अब कोई अत्याचार न सहना
जब सहगए सब हंसकर तो
इसे आजाद का हिन्दुसतान न कहना : देवेश तिवारी अमोरा


..........................................................

मैं थूक रहा हूं

मैं थूक रहा हूं आज मित्रों लाल किले की दिवारों पर 
और थूक रहा हूं बैशाखी वाले संसद के कहारों पर 
थूक रहा हूं इन विपक्षीयों के नपुंसकीय व्यवहारों पर 
मैं थूक रहा हूं जनरल डायर से पुलिसिया अत्याचारों पर 
मजलूमों पर चलने वाली बर्बर लाठीयों के प्रहारों पर
मैं थूक रहा हूं रायसीना जैसे उंचे उंचे मिनारों पर 
मैं थूक रहा हूं दस जनपथ के कांटेदार प्राचीरों पर 
मैं थूक रहा हूं संसद भवन में तनकर खड़े सहारों पर
मैं थूक रहा हूं कानूनों की दुहाई वाले विचारों पर
मैं थूक रहा हूं कार्पोरेटों के सफेदपोश सहारों पर
मैं थूक रहा हूं दिवारों के जनलुभावन झूठे नारों पर
शिथिल कानूनों किताबों के बिना मुड़े किनारों पर

जब सब थूकेंगे लोकतंत्र के आभासी ढांचों पर
लाशें तैरती मिलेंगी सदन के राजसी खांचों पर
कब तक चलना होगा शोषित जनता को कांचों पर
हम फिर से ढालें संविधान को ताम्रपत्र के सांचों पर : देवेश तिवारी


............................................................

बुनियादों पर प्राचीर हूं मैं 

आंखो से बहता नीर नहीं
जहर बुझा तीर हूं मैं
जलता नहीं बेवजह ही
दर्पण सा तस्वीर हूं मैं
बंधा हुआ हूं टूटूंगा मगर
अनुकूल समय जंजीर हूं मैं
रथ का पहिया न समझा जाए
अर्जुन का गांडीv हूं मैं
जो ख्रड़ा अविचल चट्टानों में
बुनियादों पर प्राचीर हूं मैं : देवेश अमोरा

............................................................

वो आखिर चली गई अंश्रुपुरित श्रद्धांजली 

जिंदा लाशों को जगाकर
धीरे से हाथ लहराकर
वो चली गई

लड़ने की प्रेरणा
देकर मर्म वेदना
देश को लड़ना सिखाकर
वो चली गई

मौत नहीं शहादत से
खुदा की इबादत से
एक राह नई दिखाकर
वो चली गई

रायसीना से रायपुर तक
सफरद से सिंगापुर तक
नम आंखों से आंसू छलकाकर
वो चली गई

न व्यर्थ तेरी कुरबानी हो
पुनरावृति न ये कहानी हो
जाबाजों का खून खौलाकर
वो चली गई

पाखन्डीयों के भ्रम तोड़कर
पौरूष समाज से मुंह मोड़कर
समाज का आईना दिखाकर
जिंदा लाशों को जगाकर
वो आखिर चली गई अंश्रुपुरित श्रद्धांजली : देवेश तिवारी अमोरा


........................................................

मेरे अपने ही शहर की नजरें खराब हैं

अब काजल वाजल लगाना छोड़ दो
पाखण्ड इनका अदभुत लाजवाब है
तुम ओढ़ कर निकला करो दुपट्टा
गंगाजल नहीं छलकते शराब हैं
निगाहें तुम्हें पल पल स्केन करती हैं
इनके जहन में कई वहशीयत ख्वाब हैं
दोष तुम्हारे सर ही क्यों हो जब
मेरे अपने ही शहर की नजरें खराब हैं : देवेश तिवारी अमोरा

....................................................................

अब उठ चले हैं देखो कितने लाश मेरे देश में

सरकारी पिल्लों का हो रहा विकास मेरे देश में
शुचिता और चेतना की है तालाश मेरे देश में 

जन्म आती कई विरांगनांए काश मेरे देश में
कर जाती इन भंगीयों का सर्वनाश मेरे देश में 

सत्ता और पुलिस तंत्र है बदहवास मेरे देश में
अब उठ चले हैं देखो कितने लाश मेरे देश में : देवेश तिवारी अमोरा

........................................................

कलेजा काटें महलों में रक्तवसुधा पी लें

आंसदी मौन है उन्मादी खामोश हैं
क्या घुला फिजा में सभी बेहोश हैं
अश्व श्वान की बैचैनी का इशारा समझो
बस खुले आसमान को सहारा समझो

लहराती डगमगाती वो दूर खड़ी कश्ती है
पुतलियां संकुचित होकर क्या कहती है
मछवारों अविलंब कोई किनारा पकड़ो 
पथीकों जल्द ही कोई सहारा पकड़ो 

कुछ बर्बर दरख्त रगड़ खाकर बज रहे हैं
अब जनाजे काले कफनों वाले सज रहे हैं
लाशों उठो अंधेरा छटने से पहले जी लें
कलेजा काटें महलों में रक्तवसुधा पी लें : देवेश तिवारी अमोरा


.....................................................................

बहस होनी चाहिए मरणोपरान्त
bala saheb thakre 

बहस होनी चाहिए मरणोपरान्त
सच्ची श्रद्धांजली क्या दी जाए
नीच को चढ़ाया जाए सर पर या
कुकर्मी को अपमानित किया जाए

मीडिया का तमाशा रहेगा अविरल
पाखंडीयों के भी यश गान होते हैं
क्या मृत्यु शोक धो देता है सारे पाप
केवल छद्म उपलब्धीयों के तान होते हैं

कई आए, कई गए, क्यों याद करें
जमाने के लिए क्या किया जरूरी नहीं
बजाय कोसने के उसकी बुराईयों पर
मरणोपरान्त बनें पुण्यआत्मा जरूरी नहीं

जमीं पर ही स्वर्ग नरक का फैसला
साथ में हो रहा यशगान,हमेशा की तरह
छूट रहे हैं कई देशभक्त और
दुर्जनों का हो रहा गुणगान,हमेशा की तरह : देवेश तिवारी अमोरा


.....................................................

देख लाशों में से एक हाथ उछल रहा है

अरे लाठी गोली खांएगे
जेल भी हम ही जाएंगे
हम लड़ेगें जान तक 
विरोध के परवान तक 

खून दिया है और भी देंगे तुम पीयो सही
लड़ के मरे हैं और मरेंगे तुम जियो सही 

दुश्मन बड़ा अभागा है
आज आवाम जागा है 
आओ दनादन खेल लें
धुंआ धड़ाम झेल लें

हमें बली वेदी आंसदी की ललक रही है
खाक नहीं खामोश चिंगारी धधक रही है

अब तोड़ दे चुप्पी, बोल सही
शमसीरों को सर से तोल सही
प्रतिशोध अभी शांत नहीं लड़ जा
हक है तेरा मांग साथी अकड़ जा

देख लाशों में से एक हाथ उछल रहा है
खड्ग थामने देख वो कैसे मचल रहा है : देवेश तिवारी अमोरा


.....................................................

इससे बेहतर विरगती हो 

धार में हम फंस गए हैं
दलदलों में धंस गए हैं
जिन्दगी जिल्लत हुई है
ईमान की किल्लत हुई है

तो आओ फिर दहाड़ो, युद्ध का आगाज करो 
तैरती लाशों पे चढ़कर, इन्कलाब आवाज करो

मौत भी गद्ददारी उसकी
बिन लड़े सब सह गया
श्वान और इन्सान में
छद्म अंतर ही रह गया

भीख की रोटी से बढ़कर, विष हमारी नियती हो
रोज मरकर जी रहे हैं, इससे बेहतर विरगती हो : देवेश तिवारी अमोरा


......................................................

छीनकर अपना अधिकार जंगल जमीन बचाना है 

संगीनों के साए में यहां जवानी पलती है
बारूदों के ढेर पर नई पौध निकलती है 
खून के आंसू पीते हैं
देखो फिर भी जीते हैं

आत्महत्या करने यहां, लोकतंत्र तैयार है
तानाशाह हुए प्रतिनीधी हाथो में औजार है
गोला बारूद के खलीहान हैं
निर्मम हत्यारे निगेहबान हैं

जल जंगल जमीन त्याग कहिए कहां जाएं
जन्मभूमी पुरखों को छोड़, कहां घर बसाएं
देखो उद्योगपतियों के पैर के जुत्ता हो गए हम
अपने ही घर में देखो कैसे कुत्ता हो गए हम

कहां जांए किसे कहो अपनी फरीयाद सुनांए
बन्दुक ना उठांए तो कहिए कैसे लाज बचाएं
हक मांगना छोड़ दिया अब याचक नहीं कहाना है
छीनकर अपना अधिकार जंगल जमीन बचाना है : देवेश तिवारी अमोरा 


....................................................

कालिख की कोठरी में हंसों का आगाज बनो 

अब निकला शेर गरज कर 
बरसने, अंगारों की सेज पर 
उगाई खेत शूलों की दलालों ने जिन राहों में
शूरवीर सब साथ चलें हैं लेने उनको बाहों में
दलदल में उतरकर भय काहे हो ओ अरविंद 
पुकारते चले सपूत जय भारत माता जय हिंद
निज स्वार्थ भुला अब संग्राम की आवाज बनो
कालिख की कोठरी में हंसों का आगाज बनो : देवेश तिवारी अमोरा

....................................................

तोर कलेजा निचो के खा गईन   C.G.

मोर माटी ले लहु ओगरगे
रोवथे छत्तीसगढ़ महतारी
नक्सली,अउ रमन बिदेसीया
काबर होवय तोर चिन्हारी

धरती चीरे चीरहरन कस
दुस्सासन बन गे अगवा
कैसे तोर हम लाज बचावन
जब अघवा बन गईन ठगवा

सुघ्घर बोली गुरतुर मया मां
जम्मो बिदेसीया तिरा के आ गईन
तोर कोरा के गहना ला दाई
तोर कलेजा निचो के खा गईन

आंसू झरत हे तोर लईका के
कुरिया खुसर के रोवत हे
बिदेसीया झींकय तोर लुगरा ला
अउ जयजयकार होवत हे

तोल लईका दाई खेत जोतत हे
राज करथे मिठलबरा
हमर रोजी मंजूरी किसमत बन गे
तोर लईका बोजागे डभरा

लबारी ठग्गी जानतेन दाई
राज तोर लईका करतीस
कभू अपन हक बर लड़तेन ता
कताको डंगचघा भूख मरतीस

एखर बर सब सईथन
जम्मो ला छाती मा हमाए हन
कुछ कमाई चाहे छन कमाई
अब्बड़, इज्जत कमाए हन : देवेश तिवारी अमोरा 


........................................................

सत्र के आखिरी दिन में नहीं बची अब दूरी है:

थूकने और चाटने का खेल बदस्तूर जारी है
लोकसभा देखकर भौंकना हमारी जिम्मेदारी है
बहुतों को आगरा,रांची जाना बहुत जरूरी है
वोट देकर तमाशा देखना हमारी मजबूरी है
कुछ तो शर्म करों बदहवास भंगीयों 
सत्र के आखिरी दिन में नहीं बची अब दूरी है: देवेश तिवारी अमो

......................................................

माथे मल लो बारूद अब छोड़ो झंठू बाम

अब चलने दो धांय धांय हो जाए संग्राम 
माथे मल लो बारूद अब छोड़ो झंठू बाम 

संसद बहस आरोप प्रत्यारोप 
सब झूठे नौटकीं बाज हैं
शोषित अकुलिक क्रोधित मन
विषम आपात आज हैं

आओ करें धमाका ऐसा मरें नमकहराम 
माथे मल लो बारूद अब छोड़ो झंठू बाम

रक्त आचमन खूनी पंचामृत
लाशो का हम भोग लगाएं
कुत्सित घृणित राजनीति में
चिंगारी की छौंक लगाएं

रावणों की बस्ती जले सब बोलें राम राम
माथे मल लो बारूद अब छोड़ो झंठू बाम

शवों पर है राजनीति
गरिब चिंतन से हुआ नदारद
कुरूक्षेत्र बन गए हैं उपवन
मूढ़मति बन गए विशारद

संगीनों में पले जवानी त्यागो घटिया काम
माथे मल लो बारूद अब छोड़ो झंठू बाम : देवेश तिवारी अमोरा


............................................................

कल हो न हो जग सारा, तेरे बाद निहारने को

जिन्दगी आनी जानी है अब आम ये कहानी है 
मरकर भी जी ले जो, अमर वो ही जवानी है 
रिश्ता जग से जोड़कर 
सीमायें तमाम तोड़कर 

हुंकार भर, ललकार कर 
बस युद्ध का यलगार कर 
विजय कि न चाह रख 
दिल कोई न आह रख

न मिलन विरह के गीत हो
विजयी जयघोष, संगीत हो
हर गढ़ में अपनी जीत हो
बलिदानी अपनी, रीत हो

बस बोल दे, बस बोल दे
अब द्वार बलि के खोल दे
पैमानो का, अब मोल दे
नरमुंडो को तू, तोल दे

पराजय सहर्ष स्वीकार कर
आज हारा रण तू जीतकर
हवनों में खुद जल जरा
भस्म माथे पर मल जरा

सिंहासन की न चाह हो
शूलों भरी हर राह हो
खुन मांग जनज्वार हो
हर पापी पर प्रहार हो

हिंदपुत्रों रक्त चाहिए माँ के चरण पखारने को
कल हो न हो जग सारा, तेरे बाद निहारने को : देवेश तिवारी अमोरा


...............................................................................

सूतें मानवता वाली कबकी तोड़ रखी हैं

क्या खांए आज मानवों का मांस 
कैसे बुझांए सूखे कंठो की प्यास 
क्या पहनें आज पोशाक चमड़ी की 
या उघार दें हम परतें दमड़ी की 
लूटेरों ने आज यही चीजें छोड़ रखी हैं
सूतें मानवता वाली कबकी तोड़ रखी हैं : देवेश तिवारी

................................................................

हर जुबां पर बस मेरी ही कहानी होगी :

चितांए तो हर रोज जलती है शमशान में 
अलग बात है चिंगारी भड़काने को आंसू नहीं होते

सब सोंचते घर से बढ़कर समाज के बारे में
इस दुनिया में आज कई चेहरे रूआंसु नहीं होते 

कॉफिले तो उस दिन गुजरेंगे शहर की गलियों से 

मेरे मातम में दुनिया दिवानी होगी
खुशनुमा दिन होगा रातें रुहानी होगी
कुछ हो ना हो मेरे जाने के बाद
हर जुबां पर बस मेरी ही कहानी होगी : देवेश तिवारी अमोरा

.................................................................

कुछ ऐसा करके जांउ, मुंह दिखा पाउं मां तुझको

आडर आडर नहीं अब तो धांय धांय करना होगा
कुछ एक दरिंदो को अब गोली खाकर मरना होगा

इधर भूख से तड़पते रहे लोग तुम महल बनाते रहे
मौत लेने दहलीज पर आई तुम अर्थीयां सजाते रहे

गांधी, नेहरू नहीं अब भगत आजाद को आना होगा
कुछ एक दरिंदो को अबकी गोली खाकर जाना होगा

कब तक न्याय व्यवस्था पर नजरें टिकांए कहिए
कितनी पलके आंसूओं से और अब भिगाएं कहिए

मां खादी की चादर छोड़, तमंचा देदे मां मुझको
कुछ ऐसा करके जांउ, मुंह दिखा पाउं मां तुझको : देवेश तिवारी अमोरा


................................................................

तुमसे हिसाब मांगती है एसपी राहुल शर्मा की दुखिया

पहले बेचा जंगल बेची नदियां बेच दिए बांध बैराज
अब धृतराष्टों को दिखलाने चला रहे हैं ग्राम सुराज

यह कैसे कहा आपने कि रामराज नहीं ला सकते 
रामराज आता अगर राज्य बेचने से बचा सकते

खनीज धान संसाधनों पर काली नीयत टिक जाती है
सत्तासीन कपूतों को पाकर छत्तीसगढ़ मां अकुलाती है

जिस गांव में सुराज गया है गांव का सत्यानाश हो गया
जो योजनांए पहले चल रही उनका भी बंटा धार हो गया

जाते हो सुराज करने जहां आंशिक विकास कराए हैं
जाना है तो जाओं वहां जहां तुमने घर जलाए हैं

तुमने हमेशा आबाद किया है भ्रष्ट रिश्वतदानों को
हम बखुबी जानते हैं तुम्हारे कर्म और कारनामों को

केवल कुल्फी की ठंडक से मन नहीं भरता है मुखिया
तुमसे हिसाब मांगती है एसपी राहुल शर्मा की दुखिया : देवेश तिवारी अमोरा


..........................................................


कैसे होता है कोई बर्बाद जब नारी की आत्मा रोती है

न तू लड़ तू रानी है. तेरे जीत पर जश्न न होगा, न सही, बाजे न बजे, न सही

कुछ लोग की असलियत सामने आएगी. कुछ नंगे हो जायेंगे 
तेरे जीत के साथ हम, किसी की बर्बादी का जश्न मनाएंगे 

दिखा दुनिया को, संघर्ष की पराकाष्ठा क्या होती है 
कैसे होता है कोई बर्बाद जब नारी की आत्मा रोती है

..............................................................

आज लगा पिछड़ा ही सही, मेरा बिछड़ा गांव महान है

कांक्रिट के उगते जंगल, हरियाली निगलने चले हैं
जलती धरती के अंगारे फिर आग उगलने चले हैं

उपन्यासों के नीम गुलमोहर गुम हुए पता न चला
सेमल की उड़ती रुईयां कहां खो गई पता न चला

डामर की तपिश,कृ़त्रिम शीतलता आर्इ्सक्रीम की 
मेरा मन आज ढूंढता है वो ठन्डी छाया नीम की

बेमन बसाए इस महानगर में दीन और रातें समान है
आज लगा पिछड़ा ही सही, मेरा बिछड़ा गांव महान है : देवेश तिवारी
................................................................................

लोकतंत्र के हत्यारों अब, असल रुप में जीना सीखो

सत्ता सुख के अंधे तुम हमें चलना सिखाओगे
अब लोकतंत्र की परिभांषांए तुम हमें बतलाओगे
सत्ता सौंपी थी तुमको हमने, रक्षा हमारी करने को
हमसे पहले अग्नी में सब होम हवन कर जलने को
बगावती भले हो जांए, नहीं सहेंगे अत्याचारों को
अब तो सबक सिखाना होगा लोकतंत्र के हत्यारों को 

बेचा जंगल, बेची नदियां बाप की जागिर समझकर
सीना ताने चलते हो लैनीन की तुम शाल ओढ़कर
लो ताल ठोंकते हैं हम मुकाबला आकर हमसे लो
कुछ बूंद हमारे रक्त से भी कोठीयां अपनी भर लो
बंदूकें छीननी होगी अब निकम्मे पहरेदारों से
अब तो बदला लेंगे हम लोकतंत्र के हत्यारों से

बस्तर की घाटीयों में जब-जब कत्लेआम हुआ है
बारुदों के ढेर में अमन चैन सब निलाम हुआ है
खुद तो बैठे बूलेटप्रूफ में और हमारी चिंता छोड़ दी
हमारी रक्षा करने की तुमने सारी प्रतिज्ञाएं तोड़ दी
लोकतंत्र का चिरहरण अब नहीं सहाता यारों से

अब तो गद्दी छिननी होगी लोकतंत्र के हत्यारों से

जल, जंगल, आदिवासी राजनीति की बीसात बने हैं
इन्हें लूटने राजनीति में कई मोर्चे और जमात बने हैं
की होती गर चिंता हमारी, गोलाबारुद न बरसते होते
हम जंगल के रहवासी अपने घर को न तरसते होते
अब तो सारे पाखंड तुम्हारे, हमें समझ में आते हैं
लोकतंत्र के हत्यारों भागो अब, हम सामने आते हैं

छत्तीसगढ़ महतारी, जननी,का कर्ज चुकाने आए हैं
हमारे पुरखों ने खातिर इसकी हजारो जख्म खाए हैं
माना तुम सूरमा हो हम भी विरनारायण फौलाद हैं
रुधीरों में हम आग बहाएं हनुमानसिंह की औलाद हैं
अब तो माता की पीड़ा हम और नहीं सह पाएंगे
लोकतंत्र के हत्यारों को अब हम सबक सिखांएगे

सौंपी दी सत्ता हमने तो, मुंह बंद करा दोगे क्या
उठाया हक की खातिर सर, कलम करा देागे क्या
लो सीना ताने हम भी आज खुनी फरमाईश रखते हैं
तेरे महलों के सामने आज लाशों की नुमाईश करते हैं
हिम्मत है तो हमारी तरह आंसू खून के पीना सीखो
लोकतंत्र के हत्यारों अब, असल रुप में जीना सीखो

..........................................................................................

ये किन्नर अच्छे हैं 

कमसकम ताली बजाती हैं, दुआयें देकर जाते हैं 
थोड़े गैरतमंद तो हैं , पैसे भी लौटाते हैं 

हुज्जत से ही सही, जेब सामने काटते हैं 
रुपया दो रुपया सब, आपस में बांटते हैं 

हम चाहे लाख गलियां दे ये ईमान के सच्चे हैं 
एम्बेसडर कार के खटमल से तो ये किन्नर अच्छे हैं 

: देवेश तिवारी
..................................................................

आज या तो नेता शब्द के मायने बदलने होंगे 

वो नेता थे या ये नेता है 
परिभाषाएँ द्वंद करती हैं 

वो खून मांगते थे देश की आजादी के वास्ते 
ये खून चूस रहे हैं अपनी आबादी के वास्ते 

तुलादान कर उसने त्याग सिखाया हमको 
धनपशुओं ने बेचने, तुला पे बिठाया हमको 

जय हिंद के नारे से सेना की नीव डाली जिसने 
हिंद का चीरहरण करके हाशिए पे लाया इसने

आज या तो नेता शब्द के मायने बदलने होंगे
या नेता बनने के आज सारे कायदे बदलने होंगे : देवेश .......

वह खून कहो किस मतलब का जिसमे उबाल का नाम नहीं
वह खून कहो किस मतलब का जो आ सका देश के काम नहीं
नेता जी के जन्म दिवस की अशेष शुभकामनाये

................................................................................

भारत देश का गणतन्त्र मनाओ 

खुशियों का विरोधी नहीं , मगर दिखावे से डरता हूँ 
तंत्र में गण की खोज मैं, हर दिन हर पल, करता हूँ

योजनाएं बनती किसके लिए हैं, योजनाओं का धन, कहाँ जाता है 
गरीबों के लिए सरकारी खजाने से, निकला पैसा, किधर जाता है 

इन सवालों का जवाब कौन देगा , उसकी खोज करता हूँ 
दिवस का विरोधी नहीं, गण के तन्त्र की तलाश करता हूँ 

63 सालों में जितना मिला उसमें ही संतोष कर लें 
क्या देश की वास्तविकता देखकर आँखे बंद कर लें

जवाब तो चाहिए झंडाबरदारों से गणतन्त्र किसके लिए
खुशियाँ मनाये हम इस दिवस पर बताइए किसके लिए

संविधान निर्माण हुआ था इसलिए आज खुशी का दिवस है
संशोधनों से जब छिनी शक्तियां कब उसका काला दिवस है

अगर गणतंत्र दिवस मनाना है तो असल गण का तन्त्र लाओ
लोगों की मर्जी का प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और राष्ट्रपति बैठाओ

समूचे गरीब और मजलूमों तक रोटी, कपड़ा, मकान, पहुंचाओ
नमक जो खाते हो देश का, नमकहराम तो मत कहलाओ

जिसका देश, जिनसे देश, उन्हें विकास की धुरी बनाओ
जब सारा देश सीना तानकर कहे भूखे नंगे नहीं हैं हम

उस दिन से हर रोज मित्रों भारत देश का गणतन्त्र मनाओ : देवेश तिवारी 

...............................................................................

तो आज भी यह भारत देश आजाद नहीं हो

देखी है चिताएं शहीदों की, देखा है जज्बा बलिदान का 
रक्षा करना मिटा शक्सियत, मातृभूमि के अभिमान का 
गर मन में गाँधी बसते हैं तो, ह्रदय में आजाद बसाये रखते हैं 
धैर्य शालीनता हमारे, आभूषण, दिल में तूफान दबाए रखते हैं 

अगर अंग्रेजों की हिंसा का हिंसक प्रतिवाद नहीं हुआ होता 
तो आज भी यह भारत देश आजाद नहीं होता .......
................................................................................

आँसुओ से आचमन कर रहा हूँ 

आप जानना चाहते हैं मै क्या कर रहा हूँ 
अपने अंदर कि व्यथा को सहन कर रहा हूँ 
विरानिओं के आत्माओं को नमन कर रहा हूँ 
असल जीवन के मूल्यों का जतन कर रहा हूँ 
अब आदर्शों और मूल्यों का हवन कर रहा हूँ
और अपने ही आँसुओ से आचमन कर रहा हूँ : देवेश तिवारी
..................................................................................

व्यर्थ है ऐसे जीना 

बंदिशें अब जबानों पर 
जंजीरे हम जवानों पर
अभिव्यक्ति की आजादी कहां है
बताओ संविधान मर्यादा कहां है
चीर खींचकर लोकतंत्र की सूरमा बनने आए हैं
प्रजातंत्र में सेंध लगाने हिटलर के जने आए हैं
आंसू तेजाब हो गया अब मीठा लगता है पसीना 
बिन बोले यदि मौन रहे हम, व्यर्थ है ऐसे जीना : देवेश तिवारी अमोरा