Sunday, February 26, 2012

हम यूथ कहीं थ्यूए थू न हो जाएं !

उम्मीदें तो बहुत हैं युवाओं से, ऐसी उम्मीद जिसे सुनकर चिंतक चिंता छोड़ देते हैं, उन्हें लगता है जैसे बस पलक झपकी और आ जाएगी क्रांती। दरअसल युवाओं के जिस जागरुक रुप को हम देख रहे हैं वह साबुन के बुलबुले या पेप्सी के झाग से अधिक कुछ भी नहीं है। देश ने कई मर्तबा इस पिढ़ी को सड़कों पर आते देखा है, जब जब आए हैं बहुत कुछ बदला है, फेसबुक पर वाल पोस्ट बदल जाते हैं, प्रोफाईल बदल जाते हैं, मोबाईल के मैसेज बदल जाते हैं। इससे ज्यादा परिवर्तन कुछ भी नहीं। बेशक व्यवस्था को लेकर इनके भीतर आग जल रही है। लेकिन लड़ना कैसे है, किसी को नहीं पता। इन्हें उस भेंड़ की तालाश है, जो पहले गढढे में कूदेगा। उसी का कंधा चाहिए बंदूक चलाने को।
      खैर जो भी है, देश चल रहा है, पुरानी बुनीयादों से इंटे निकल रही है, लेकिन नए आधारों के दिमक से पुराने इंट ही अच्छे। व्यवस्था:  देश की, राज्य की, समाज की, आसपास की, विश्व की, पर्यावरण की हर व्यवस्था, जिसके लिए यूथ की ओर हम ताकते हैं| सच्चाई यह है कि यह यूथ अब उल्टे रास्ते चल पड़ा है| इसमें कहीं न कहीं हम भी शामिल हैं, यूथ उलटकर थ्यू थू हो  चला है। काम क्या है सुबह उठना, कालेज जाना कुछ लोगों से बतियाना इससे ज्यादा कुछ सोंचा तो कटरीना का चिकनी चमेली। किसी ​मुदृदे पर बात करनी हो, इनसे विदृवान कोई नहीं, सब जानते हैं, अखबार पढ़ते हैं, न्यूज देखते हैं पूरी खबर रखते हैं, लेकिन करना कुछ नहीं, ब्लैकबेरी का नया मॉडल शायद ज्यादा जरुरी है। राजनीति में आकर व्यवस्था सुधरेगी, आईकन कौन?  राहुल गांधी इसके लिए भी जागिर में कुर्सी चाहिए, ऐसी किस्मत राहुल की ही हो सकती है, आपकी नहीं। ये उम्मीद भी खत्म। इंजीनीयर बनना है, डाक्टर बनना है, वो सबकुछ बनना है, जिससे तगड़ा अर्थोपार्जन हो सके|  नहीं बनना है तो देश सेवक|  सही ​भी है माता​—पिता ने जो सिखाया वह ज्यादा जरुरी है। पढ़ाया लिखाया है अच्छा इंसान बनने को नहीं कहा, कभी देशसेवा करने को नहीं कहा कभी, फिर उनके खिलाफ कैसे जा सकते हैं।
     दूसरा पहलू पढ़ाई से उपर कुछ करना है तो गार्डन में चोंच कैसे लड़ांए, केएफसी किसके लिए खुला है, इनके उपभोक्ता भी तो हमें ही बनना है। बाजार में डर्टी पिक्चर आई तो धमाल सुपरहिट, सोशल वैल्यू पर फिल्म आई जाने वाले को भी रोक दिया, सोने जाएगा क्या।
    अपने देश की व्यवस्था कैसे सुधरेगी किसी को कोई मतलब नहीं वरन अमेरिका की सड़कों पर पीएचडी है इन्हें। इनसे है हमें क्रांती की उम्मीद।
मेरी मां, मेरा बापू, मेरा डोकरा ऐसे संबोधन में उलझी पिढ़ी, खुद को यदि आने वाले समय का आर्दश बताए चिंता होनी भी चाहिए।
      आज अगर माता पिता देश की वर्तमान दशा और लूट तंत्र को लेकर चिंता करते हैं तो उन पर जैसी करनी वैसी भरनी वाली कहावत चरिर्ताथ होती है। आपने अपने बच्चों को हर खुशी देने के लिए कौन से रास्ते अपनाए इसका जवाब खुद से मांगे, आईना टूट जाएगा। इसके बाद यदि युवा केवल और केवल अपने बारे में सोचतें हैं तो हाय तौबा मचाने की जरुरत नहीं है।
      आडी, वाशवैग्न, फरारी की चमक इन्हें अधिक नजर आती है बजाय अपने शहर के सड़कों को झांकने के। मुदृदे कई हैं​, ​जिनमें इनकी सोंच चाहिए, व्यवस्था में परिवर्तन इनके बिना नहीं हो सकता। देश की दशा इनकी बैशाखी के बिना जमीन पर धाराशायी नजर आती है। लेकिन इन्हें गार्डन, पब से बाहर कौन निकालेगा। ज्यादा सोंचने की जरूरत नहीं पेशानी पर बल साफ दिखता है। जब पड़ोसी के घर में बाढ़ का पानी घुसता है तो घबराहट नहीं होती बल्कि मौज सूझता है,लेकिन अपनी चौखट गीली होने पर बिस्तर छज्जों में नजर आते हैं। समय आएगा देर से ही सही। हम भी राह ताकते हैं आप भी राह ताकिए। फिलहाल दूसरों के घरों को छोड़कर अपने घर में झांकिए।

: देवेश तिवारी

Friday, February 17, 2012

राजिम कुंभ: संत समागम या पीआरओ सम्मलेन


अभीअभी राजिम कुंभ से लौटा हूं। बहुत कुछ देखने को मिला, लेकिन जिस नज़ारे ने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया वह आपसे बांटता हूं। राज्य सरकार राजिम कुंभ के नाप पर करोड़ो रूपए क्र्यों खर्च करती है इसका सच भी यहां आकर साफ हो गया। राजिम कुंभ के मेले में प्रवेश करने से पहले रायपुर पार करना होगा, रायपुर के सभी चौक चौराहों में राजिम कुंभ के प्रचार प्रसार के लिए साधु संतों के साथ राज्य के संस्कति मंत्री (डालर में घूस लेने वाले मंत्री) ब्रजमोहन अग्रवाल की साधुओं से तीन गुनी बड़ी तस्विर विभाग के पैसों से खर्च कर लगाई गई है। इन्हें पार करने के बाद जब आप राजिम पंहुचते हैं| राजिम में नदी घाट से पहले ही आपको बिजली के दुरुपयोग की बानगी कहता तारों के समान चमकदार टयूबलाईट का प्रकाश देखने को मिलता है। अंदर प्रवेश करते ही मंच के पहले भाजपा के स्थानीय नेताओं की लगाई गई बड़ी बड़ी होर्डिंग्स देखने को मिल जाएगी। इसे देखने के बाद आपको वापस नहीं लौटना है यहां का द्रश्य भले ही भाजपा की रैली के समान दिखाई दे लेकिन कुछ पैसा मेले के लिए भी खर्च किया गया है, इसे भी आपको ही देखना है।
      अब सारा तामझाम देखने के बाद मुझे नागा साधुओं से मिलने की इच्छा हुई क्योंकि वे पिछले साल के आपसी झगड़े के बाद से फार्म में आ गए हैं और राजिम कुंभ का मुख्य आर्कषण बने हुए हैं। पहले तो गार्ड ने हांथ में कैमरा देखकर अंदर घूसने नहीं दिया। जैसे तैसे दिवार कूद-फांद कर आखिर अंदर पंहुचना हुआ यहां बैठे एक नागा महाराज से मिलकर मुझे लगा जैसे दिवार कूदना निर्रथक हो गया। पूरे नज़ारे को समेटकर कहूं तो, अब नागा साधुओं में आर्कषण या साधु जैसी बात देखने को नहीं मिली। सभी साधुओं ने ठण्ड से बचने अलाव की ताप ले रहे ​थे। साधु संतो की बात सामने आते ही हम प्रवचन और उनकी पुराणिक कथाओं को याद करने लगते हैं। यहां अधिकांश साधु बात बात पर किसी न किसी पात्र को असमाजिक गालियों के सम्बोधन से अपनी गरीमा को भस्म बनाने में लगे हुए थे। आज उनके हांथ में कमण्डल की जगह बीसलेरी की बोतलों ने ले ली है। अधिकांश काले हॉफ जैकेट में नजर आए| जिन्हें हम त्याग और सर्मपण के लिए जानते हैं, और कहते हैं कि, बारहो मास बिना कपड़ों के कैसे गुजार लेते हैं। साधु के पास जाते ही मैने देखा, उनके पास नकली टूटी हुई जटा पड़ी हुई है। जिसे वे कैमरा देखते ही सर पर बांध लेते थे। कैमरे के सामने आते ही उनके बातचीत और कैरेक्टर मे आकस्मात बदलाव देखने को मिला वे बैग से राख निकालकर चेहरे पर तुरंत मलने लगे| बीच-बीच में ध्यान मग्न हो जाते थे| थोड़ी देर में ध्यान तोड़कर खुद ही पोज बताकर कहने लगे, इधर से लो पूरा फोटो आएगा। लोगों की भीड़ जुटते ही वास्तवीक जिवन के रहस्यों को तोड़ती प्रवचन की धाराप्रवाह प्रवचन से बाबा ने साधु होने का बोध कराया| जब हम बाबा के पास पंहुचे तब बाबा किसी जिले के नेता या अधिकारी से फोन पर बतिया रहे थे, हमें इशारे से बैठने को कहा। आध्यात्मिक जिवन के सरताज फोन पर सामने वाले महोदय को जी सर, जी सर के संबोधन के साथ प्रवचन सुनाने में लगे थे। हम भी कहां कम हैं झट से मोबाईल निकाला और विडियो बनाने में लग गए| क्या पता बाद में बाबा झूठ बोलने की बात कहकर श्राप दे दें। इससे भी बड़ी बात बाबा फोन पर सामने वाले महोदय से कह रहे थे कि रमन सिंह का बहुत बहुत धन्यवाद जो इतना बड़ा समारोह करवा रहे हैं। सामने वाले को भाजपा की फिर से सरकार बनने से लेकर पूरी बातें विथ आशीर्वाद भाजपा के पी आरओ की तरह। सारा खेल बनावटी इन्हें देखकर लगा मानो यह संतसमागम न होकर पीआर समागम हो गया हो। साधू संत इन नेताओं से कमसकम अच्छे लगे जिसका खाते हैं, उसका खूब गाते हैं,
      बाबा इतने में कहां रूकने वाले थे| बाबा ने  फोटो लेने के बाद मुझसे कहा:- अच्छे से लिखना मेरे बारे में बच्चा। मैंने कहा बाबा आपका आशिर्वाद मिल जाए तो सच ही लिखता रहूंगा।




बाबाओं ने तोड़ा हठयोग 
राजिम कुंभ 2011 में नागा साधुओं के दो मठों के बाबा आपस में वर्चस्व को लेकर खुनी लड़ाई पर उतारू हो गए थे। बाद में सरकार और पुलिस के बीच बचाव के बाद मामला शांत हुआ। इस साल नागा साधु मेले में सही जगह नहीं मिलने के कारण सरकार से नाराज होकर वापस लौट रहे थे| बाद में मंत्री जी ने हांथपांव जोड़कर इन्हें वापस बुलाया, और बुलाते भी क्यों नहीं, इनसे ही मेले कुंभ का आर्कषण है। बाबा इनके चलते फिरते पीआरओ जो ठहरे। इन बाबाओं के कैम्प के ठीक सामने लगे मंत्री जी के बड़ेबड़े पोस्टर कौन देखता, अगर ये चले जाते। दुख: की बात यह है कि साधुओं को जगह नहीं मिलने के कारण साधु वापस लौट रहे थे तब इनके हठ को देखकर लगा था वापिस किसी हल में नहीं आएंगे| सुना था] योगी हठ, बाल हठ और स्त्री हठ खतरनाक होता है, मनाए नहीं मानते, ये सब। लेकिन बाबाओं ने रुठने के बाद भी म़ंत्री जी के कहने पर जो हठ तोड़ा वह साधुओं और हठयोगियों के सम्मान के तप को तारतार कर देने वाला था। मंच पर बैठै सभी साधुओं ने जितने शब्द धर्म और आध्यात्म पर खर्च नहीं किए उतने शब्द मंत्री जी के यशगान व जनसंपर्क बनाने में खर्च कर दिए। बताइए इसके बाद भी उनके प्रति आपके मन में सम्मान कहां से आएगा। मैनें उन्हें प्रणाम किया और चुपचाप बेरीकेट पार कर बाहर निकल आया। मेले में कॉफी कुछ था देखने को लेकिन मुझे वह देखना बिल्कुल अच्छा नहीं लगा जो सरकार जबरिया दिखाना चाहती ​थी| वह तो बिलकुल भी नहीं जिन्हें राज्य सरकार की झूठी प्रसिद्धयों को दिखाने के लिए जाल की तरह बुना गया था। मेले में कॉफि समय घूमता रहा आसपास का माहैाल देखा और वापस लौट आया
 जो मेरे मन ने कहा, वो यह कि,  अब साधु भी देश दुनिया में देवताओं का नहीं, ख्याती के लिए नेताओं का यशगान करते हैं।अब साधुओं की पीठ पर भी फूल व पंजा के निशान देखने को मिलने लगे हैं। 



क्या कहें सर्वे भवन्तु सुखिन: साधु भी खुश रहें उनके मोबाईल में सदा टावर रहे। उनके प्रचार से रमन सिंह के पास हमेशा पावर रहे। अधिकांश  साधु-संत राजनीतिक पार्टीयों और मंत्रीयों के भोंपु हो चले हैं। खैर ये भी ठीक है भारत में साधु संतो की राजनीति में पदार्पण कौन सी नई बात है।राजनीतिक पार्टियों और लंबे फंड से किसे प्रेम नहीं है। साधु संतो के बारे में नहीं लिखना चाहिए लेकिन हकीकत देखकर भी अंधा गुंगा बन जाऊं यह मुमकिन नहीं। : देवेश तिवारी 

Thursday, February 16, 2012

फोटो क्यों खींचते हो


उसने कहा फोटो क्यों खींचते हो .. मैंने कोई गलत काम नहीं किया है थोड़ी समझाइश के बाद वो सरल हो गई .. आप हैं फूल बाई जो  74 साल की अवस्था में दिन के चार घंटे नाली में सर गडाये रखती है .. ताकि कुछ पैसे मिल जाएँ और वो परिवार का सहयोग कर सके| फूलबाई 64 सालों से इसी तरह गन्दी नालियों में जिंदगी तलाश कर अपना और अपने बच्चों का पेट पाल रही है .. सुबह 10 बजे से नालियों से रेत निकालने का सिलसिला शुरू होता है जो शाम चार बजे तक चलता है| रायपुर में बजबजाती नालियां जिसके पास जाने में भी हम घिनाते हैं ऐसी जगह के पाटे पर बैठकर घंटो तसला घुमाकर नाली के निचले सतह से रेत निकला जाता है| फूलबाई सुनारों की बस्ती के नालियों से इसी तरह  रेत इकठ्ठा कर उसे सुखाती है और बिना चश्मा के उनसे सोने के महीन कण अलग करती है .. फूलबाई का पूरा परिवार इसी काम में लगा रहता है | फूलबाई चाहकर भी अपने बच्चों को पढ़ा नहीं पाई| रोते हुए कहती है कि, मैं जब तक जिन्दा हूँ और हड्डियों में जान है कमाती रहूंगी, ताकि नाती पोतों को पढ़ा लिखा सकूँ .. वो नहीं चाहती की उसके नातीयों को किसी रईसजादे के आलीशान शोरूम के सामने नाली से रेत छानना पड़े| फुल बाई को कई बार नाली में चांदी के टुकड़े भी मिल जाते हैं तो कारीगर उससे जबरजस्ती कर टुकड़ा छीन लेता है .. फिर भी दिन भर में 50 से 80 रूपये कमाने के लिए वो जद्दोजहत करती हुई अपमान के घूंट पी जाती है ..| समय के साथ फुल बाई अब पन्नी और लोहे जैसे मोटे कचरे भी बीनकर बेचने लगी है .. बताती है इससे 10 रूपये की अलग कमाई हो जाती है जो बच्चों के खाई खजाने के काम आ जाते हैं| फूलबाई के इस उम्र में ऐसे जज्बे और आने वाली पीढ़ी के लिए सोंच को देख कर सलाम करने कि इच्छा होती है| कुछ पल मैंने भी फूलबाई के साथ बिताए.. फूलबाई पढ़ी-लिखी नहीं है लेकिन जिंदगी का अच्छा तजुर्बा रखती है|  : devesh tiwari 

Wednesday, February 15, 2012

अब परवाह नहीं करता

मुझे आंसुओं के सैलाब में, बहना नहीं आया 
कुछ बातें ऐसी भी थीं मुझे कहना नहीं आया 

जो दावा करते थे मुझे समझने का तो इशारे की काफी थे 
क्यों लगाते हो इल्जाम मुझपर रूठ जाने का 
तब भी दाग थे शायद तुम्हारी नियत में
वरना अफ़सोस तो जताते साथ छूट जाने का

जिंदगी चार दिन की है आखिर में मुलाकात होगी
फिर तपती दोपहरी या अमावस की रात होगी
मैं तो अंधेरे में भी तुम्हारी आहट पहचान लूँगा
तुम पहचान लेना मुझे तब कोई बात होगी

एक दरिया खून का मेरी प्यास बुझाता रहा
मैं अपने ही लाल रंग से धार बनाता रहा
झेला है इतना दर्द की अब आह नहीं करता
किसी के आने-जाने की अब परवाह नहीं करता : देवेश तिवारी

मेरी बिछड़ी जाना तुमसे, बहोत मोहब्बत करता हूं

क्यों इल्जाम लगाम लगाऊं तुमपर, क्या तुमने अपराध किया है 
बस अपनी खुशियों की खातिर, गैर का दामन थाम लिया है
फिर मुझपर क्यों ठहरी नजरें, इसका कोई जवाब तो दे 
तुझे भूलाकर नशा करा दे , ऐसी कोई शराब तो दे 

तू ही कतल आ कर दे मेरा, यही तमन्ना रखता हूं
मेरी बिछड़ी जाना तुमसे, बहोत मोहब्बत करता हूं

इन पलकों पर तेरे आंसू, क्यों रहते हैं ये तो बता
तेरी यादों के बादल यूँ , क्यों मंडराएं ये तो बता
तू खुश है तो मै भी खुश हूं , चाहे ये हो कोई सजा
फिर चाहे मुझे मौत मिले, तेरी खुशी और तेरी रजा

तू ही आकर जहर पिला दे, आखरी ख्वाहिश रखता हूं
मेरी बिछड़ी जाना तुमसे, बहोत मोहब्बत करता हूं

डोली वाली सुन तो जरा, मुझ पर तू विश्वास तो रख
जाना है तो शौख से जा, मेरा कलेजा साथ तो रख
तेरी यूं उखड़ी सी अदांए , मैं तो सह ना पाऊंगा
तेरे गली के नीम तले, मैं तड़प-तड़प मर जाऊंगा

तेरी खुशीयों पर आंच न आए, यही गुजारिश करता हूं
मेरी बिछड़ी जाना तुमसे, बहोत मोहब्बत करता हूं

तेरी गली के गुलमोहर में , फिर से बहारें आई हैं
मेरे बगिचे की कलियाँ क्यों, आज भी यूँ अलसायी हैं
तेरी अदांओ को कातिल मैं , कैसे बिसराऊं ये तो बता
अपने ही खंजर को सीने में, कैसे बुझांऊं ये तो बता

तुझको खुशियों का बाग मिले, मैं यही तमन्ना रखता हूं
मेरी बिछड़ी जाना तुमसे, बहोत मोहब्बत करता हूं             :देवेश तिवारी