Sunday, March 25, 2018

इंटरनेट खबर की दुनिया, पीव्ही बटोर रहे घर बैठे मशीन


देश में सबसे तेजी के साथ उभर रहे..या यू कहें की भागदौड़ भरी जिंदगी में खबरों के संपर्क में रहने का सबसे बड़ा माध्यम इस समय वेब मीडिया ही है। डीजीटल मीडिया ही फ्यूचर है इस बात को काफी पहले बड़े मीडिया आर्गेनाइजेशन ने समझ लिया था। मगर इसकी दिशा क्या होगी इसे लेकर पहले से बहस होती रही है। एनबीटी और दैनिक भास्कर इस दौड़ के पुराने खिलाड़ियों में से एक हैं, कभी इन वेबसाईट्स के बीच चकमा देने वाली हेडलाईन और सेक्स से जुड़ी खबरें परोसकर पीवी यानी पेज व्यूह्स बटोरने की प्रतिस्पर्धा थी।
समय बदला दोनों ने अपने तौर तरिके कुछ हद तक बदले। मगर आज के दौर में वेब मीडिया बहुत तेजी से भाग रहा है..कुछ बड़े टीवी चैनल के वेबसाइट अपने रिपोर्टर के उपलब्ध कराए गए संसाधनों पर चल रहे हैं, इनमें विश्वसनियता के साथ नयापन भी है।   इस बीच कुछ ऐसी वेबसाइट्स भी हैं जो केवल एजेंसी और कॉपी पेस्ट के साथ रिराइट करने की तकनीक पर चल रहे हैं। यहां वेब मीडिया का घातक स्वरूप शुरू हो जाता है। एक ही खबर​ जिसे एजेंसी ने ट्विट किया है अलग अलग वेबसाइट पर अलग अलग हेडलाइन या एंगल के साथ नजर आती हैं।
   कोई खबर किसी सब एडिटर या राइटर के पास पहले पंहुच भी गई तो तब तक उसे इंतजार करना होगा जब तक कोई एजेंसी इसे ट्विट न कर दे। इससे खबरों की विश्वसनियता किसी एक समूह के विश्वसनियता पैमाने पर टिकी है।  खबर का एंगल भी एजेंसी के हिसाब से तय होगा। इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि, एजेंसी सच्ची खबर या पूरी पूरी खबर दे रही है।
   एक तरह से खबरें एजेंसियों की गुलाम हैं, इस क्षेत्र ने बहुत से युवा पत्रकारों को आॅफिस आकर या घर बैठे काम करने का रोजगार तो दिया है..मगर रिपोर्टिंग जैसी महत्वपूर्ण विधा से अपरिचित बनाए रखा। मैंने कुछ लोगों से पूछा मजा आता है ऐसे काम करने में..कहते हैं ​पेज व्यूह्स का रिजल्ट 24 घंटे या उससे कम समय में आ जाता है इसलिए प्रतिस्पर्धा का आनंद तो है, मगर कुर्सी और लॅपटॉप से चिपके रहने का निरस अवसाद भी मन में घर कर रहा है। रिपोर्टिंग स्टॉफ नहीं रखने या बेहतर रिपोर्ट की अपेक्षा नहीं करने का कारण कर्मचारी बताते हैं कि,रिपोर्टिंग में संसाधनों का खर्च होता है। फिर इस बात की कोई गारंटी नहीं कि बेहतर रिपोर्टिंग या ग्राउंड रिपोर्ट में पीव्ही मिल ही जाएंगे। रिपोर्ट की तुलना में किसी हिरोईन के बिकनी की कहानी ज्यादा पेज व्यूह ले आती है। फिर ग्राउंड रिपोर्ट के क्या मायने तब जबकि पूरा का पूरा इंटरनेट की खबरों की दुनिया ही पेजव्यूह के लिए जानी जाती है। पेजव्यूह ही विज्ञापन और वेबसाइट के हिट होने का आधार है। हॉलाकि सेक्स,हवस की रोमांचक कहानियां हर दौर में हिट रही हैं। आज भी हिट हैं, इसके माने ये भी नहीं कि, वेबसाइट्स इसे आधार बनाकर बेहतर रिपोर्ट से तौबा कर लें और घरों में बैठकर पीव्ही जनरेट करने वाले मशीनें तैयार कर लें।

देवेश तिवारी ​टीवी के पत्रकार हैं