Monday, April 4, 2011

किस पर विश्वास करूँ बहरुपी सारा जमाना लगता है : देवेश तिवारी


हर आशियाने को घरबार समझ लेता हूँ 
दिल के काले को भी मै दिलदार समझ लेता हूँ
गहरी गहरी खाई को मीनार समझ लेता हूँ
आगे बढ़ने की सीढ़ी को दीवार समझ लेता हूँ
             हर गली मोहल्ला अब विराना लगता है
            किस पर विशवास करूँ बहरुपि सारा जमाना लगता है
चिकनी चुपड़ी बातें अब मुझको नहीं भाती है 
इन मेढ़ों की टेढ़ी चाल मुझे नहीं आती है  
राह दिखने वाला खुद तो बुझे दिए का बाती है
समझ नहीं आता यहाँ कौन मेरा साथी है
            अपनों से भरा शहर भी अब विराना लगता है
            किस पर विश्वास करूँ बहरुपि सारा जमाना लगता है
क्या अँधेरी गलियों में मै यहीं कहीं खो जाऊँ
या किसी पाखंडी के डर पर मै नतमस्तक हो जाऊँ
थकावट सा लगता है क्या मै यहीं कहीं रुक जाऊँ
या आडम्बर देवों के दर पर मै झुक जाऊँ
            लेकिन पाप करने सा मुझको झुक जाना लगता है
            किस पर विश्वास करूँ बहरुपि सारा जमाना लगता है
अच्छे बुरे में मै अब भेद नहीं कार सकता हूँ
इस चक्रव्यूह में अब मै छेद नहीं कार सकता हूँ
मै किसकी खोज करूं यहाँ हर हाथ में चाकू है
मुखौटा पहने दुनिया में हर कोई डाकू है
            अब मुश्किल बहुत ही मंजिल को पाना लगता है
            किस पर विश्वास करूँ बहरुपि सारा जमाना लगता है
इस गुलशन में लुटा हर फुल बयाँ करता है
जल्दी खिलने वाला फुल गुलशन में नहीं रहता है
यहाँ तो सुन्दर फूलों के पौधे उखाड़ लिए जाते हैं
फुल पत्तों की क्या बिसात यहाँ बाग उजाड़ लिए जाते हैं
            मुझे दिलासा देने वाला हस शब्द फ़साना लगता है
            किस पर विश्वास करूँ बहरुपि सारा जमाना लगता है
पथ्भ्रस्ट हो चूका हूँ मै किस राह चला जाता हूँ
कदम कहीं भी जाते हैं मै रोक नहीं पता हूँ
क्या भूल भुलैया दुनिया में मै मार्ग नया बनाऊंगा
या मै भी इन गलियों में गुमनाम कहीं हो जाऊंगा
            अपने घर का रास्ता भी अनजाना लगता है
किस पर विश्वास करूँ बहरुपी सारा जमाना लगता है  

4 comments:

  1. मुझे दिलासा देने वाला हर शब्द फ़साना लगता है.....बढ़िया है,
    लेकिन एक सुझाव- टाइप करने के लिए उतावलापन न दिखाएँ, अनजानी गलतियाँ हो जाती हैं और पोस्ट करने से पहले पूरी रचना को एक बार पढ़ लें तो आवश्यक सुधार वहीँ हो जायेंगे.

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  2. किस पर विशवास करूँ बहरुपि सारा जमाना लगता है..........
    बहुत सुंदर देवेश भाई। आपके विचार काफी अच्छे है। आपको उज्जवल भविष्य की शुभकामनाएं

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  3. मस्त रचना है, कमल दुबे जी की सलाह पर ध्यान दें।

    ललित डॉट कॉम
    ब्लॉग4वार्ता
    NH-30 सड़क गंगा

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