Sunday, October 12, 2014

किसान केवल वोटर नहीं है अन्नदाता है : देवेश तिवारी अमोरा

छत्तीसगढ़ में इन दिनों किसानों का पूरा धान नहीं खरीदने का मुददा सियासत के केंद्र पर है, मगर जरा हमें इस बात पर गौर करना होगा कि क्यों ऐसी स्थितियां पैदा होती है कि कभी अपने फायदे के लिए किसानों को सरकार इस्तेमाल करते हुए इतना पंगु बना देती है कि, वित्तिय प्रबंधन गड़बड़ाने पर इसका सीधा शिकार किसान हो जाते हैं। मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह की सौम्य और किसान हितैषी छवी को गहरा आघात लगा जब किसानों को डाक्टरी फरमान मिला कि अब सरकार समर्थन मूल्य पर केवल 10 क्विंटल धान ही लेगी। जबकि छत्तीसगढ़ में उत्पादन क्षमता 25 क्विंटल तक है, सरकार  और उनके मंत्रियों के वाहियात तर्क भी गौर फरमाने लायक हैं


 पुन्नूलाल मोहले खादय मंत्री : हां हमने घोषणा पत्र में एक एक दाना खरीदने का वादा किया, अब मुकर रहे हैं क्या करें।
डाक्टर रमन सिंह :
किसान 8 साल पहले भी मंडी में बेचते रहे हैं अब भी बेचेंगे आपत्ति क्या है
बीजेपी अध्यक्ष धरमलाल कौ​शिक : 
हमारे पास पर्याप्त भंडारण क्षमता नहीं है, जब धान सड़ता है तो किसान पाप महसूस करते हैं

अब जरा सोंचिए इन तर्कों के क्या मायने निकाले जाएं, जबकि यही सरकार चुनाव के ठीक पहले किसानों का एक एक दाना धान खरीदने की बात कहती है, और बाद में ठग देती है। इस मुददे पर सियासत होगी, कांग्रेस, किसान मोर्चा, अमका चमका ढमका सब केवल सड़क पर हंगामा करते नजर आएंगे, क्यों नहीं कोई इसे कोर्ट में ले जाने की कोशिश भी करता है। आखिर 10 सालों में प्रदेश में 15 लाख किसान मजदूर बन गए, हर दिन 3 किसान आत्महत्या कर लेता है। ऐसे में सरकार किसानों के खिलाफ फैसला कैसे ले सकती है। मगर मुर्दों के प्रदेश में कोई लड़ना नहीं चाहता। फोटो खिंचाउ विरोध परिणाम नहीं दे सकता, सरकार 4साल और चलनी है।

अब जरा सोंचिए क्यों ऐसी स्थिति पैदा होती है कि किसान अगर धान सर्मथन मूल्य पर न बेचे तो हंगामा बरपे, सरकार ने चुनावी फायदे के लिए किसानों को बोनस दिया, फायदे के लिए सर्मथन मूल्य पर एक एक दाना धान का खरीदा, 80 लाख से ज्यादा मीट्रिक टन धान खरीदकर केंद्र सरकार के सामने धान उत्पादन में पुरस्कार लिया, अब किसान खुश वोट मिलेगा, पुरस्कार मिला देश में नाम होगा।

चुनाव से पहले मैंने लिखा था कि सरकार किसी भी तरह के धान के निर्यात पर रोक लगाए हुए है, वजह कस्टम मिलिंग कर किसानों को उन्हीं का खरीदा धान 1 रूपए किलो में बांटना है। किसानों से एक एक दाना धान सरकार खरीदती ही है तो किसान उगाते हैं मोटा चांवल, आई आर 36, महामाया, स्वर्णा निर्यात करने पर इस धान के बने चावल की कोई किमत नहीं होती, यानी मोटा धान खरीदने का लालच देकर सरकार ने किसानों को पंगु बना दिया। क्यों इस प्रदेश के 23 हजार धान की किस्में प्रयोगशाला में शोभायमान हैं। प्रदेश में ऐसे भी सुगंधित चावल हैं जिन्हें सरकार उगाने के लिए कागजी प्रोत्साहन देती हैं किसान सुगंधित या अन्य उपयोगी चावल उगाकर रिस्क नहीं लेना चाहता, तो सरकार क्यों नहीं बीमा कराके उसके उपज का रिस्क ले लेती और कहती की हम तुम्हारा चावल बेचने का इंजाम कराएंगे। प्रदेश में लाखों बेरोजगाकर युवक खेती नहीं करना चाहते बड़े शहर में 4 हजार की चाकरी कहीं अच्छी है। किसानों की एक पौध को सरकार ने खत्म कर दिया अब गांव में किसान तो मिलते हैं किसान का बेटा नहीं मिलता वह आई टी आई, बी एड और पालिटेक्निक करता है। सरकार क्यों नहीं युवाओं की एक टीम बनाकर उन्हें खेती के लिए प्रोत्साहित करती, जमीन उनकी तकनीक वैज्ञानिक की और रिस्क सरकार ले। खेती आधारित विकास की रूपरेखा कभी लालच या स्वार्थ की बुनियाद पर नहीं रची जा सकती। सरकार के लिए अगर किसान केवल वोटर है तो जो हो रहा है वह बहुत अच्छा है। लेकिन अगर किसान को किसानी से जोड़े रखना है तो पंगु राजनीति की बजाय नवीन प्रयोग करने होंगे।