Friday, December 13, 2013

"आप" में आप आदरणीय नहीं, पहले आप पहले आप : देवेश तिवारी आमोरा



मेरे फोन पर एक अनजान से आदमी का फोन आता है..मेरी उम्र को जाने बगैर मुझे अनुभवी पत्रकार समझकर वह मुझसे पूछता है कि मुझे राजनीति करनी है। मेरा जवाब होता है कुछ पद या रोल की तरह पाने का स्वार्थ है तो बेशक भाजपा कांग्रेस ज्वाइन कर लो। वह 3 महिने असमंजस में रहता है। फिर दिल्ली की जीत के बाद एक दिन उसी आदमी का फोन आता है क मुझे आम आदमी पार्टी ज्वाईन करनी है क्या आप छत्तीसगढ़ में किसी ऐसे आप के नेता को जानते हैं जो मुझे आप की सदस्यता दे सके। मैंने पूछा ऐसे कितने लोग हैं। उसका जवाब था कि ऐसे लोगों ने नोटा में अपनी ताक​त दिखाई है सच मानिए तो 50 फिसदी लोग उसमें से आप के नहीं होने पर नोटा दबा आए हैं।
गली मोहल्ले और चाय की दुकान पर आप पर चर्चा होती है तो लोग आप के संबंध में बात करने पर जिज्ञासावश देखने लगते हैं। बहुत से युवा अब तक मुझसे पूछ बैठे हैं कि,केजरीवाल छत्तीसगढ़ कब आ रहे हैं। ये सब देखकर लगता है कि बदलाव की बयार भले ही दिल्ली में चली हो लेकिन उसकी ठंडक लोग देश भर में महसूस कर रहे हैं।
आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में 28 सीटों पर जीत दर्ज की इसके बाद से ही देश भर में इस बात को लेकर बहस हो रही है कि आम आदमी पार्टी चुनाव कैसे जीत गई..या क्या आम आदमी पार्टी दिल्ली तक ही सिमटकर रह जाएगी। सबसे बड़ा सवाल तो इस समय यही उठ रहा है कि क्या ​आप दिल्ली तक रहेगी। लेकिन आप को दिल्ली की पार्टी समझना ठीक वैसा ही होगा जैसा कि चुनाव के ठीक पहले तक आप को तिसरी पार्टी या 6 से 8 सीटों तक सिमटने वाली पार्टी समझा जा रहा था। आज देश के दूसरे हिस्सों में जब लोगों से आप के बारे में चर्चा हो रही है तो लोग यह कह रहे हैं कि आप का विकल्प उनके प्रदेशों में भी होना चाहिए। 
राजनीति के जानकार यह क्यों भूल रहे हैं कि जब देश में अन्ना मूमेंट में केवल जंतर मंतर गुलजार नहीं था। देश भर के धरना स्थलों में हर कोई अन्ना आंदोलन को अपना साथ दे रहा था। इस भीड़ में वो लोग बड़ी तादात में आज भी हैं जो अप्रत्यक्ष रूप से केजरीवाल का सर्मथन कर रहे हैं।
                 आम आदमी पार्टी की जीत उस परंपरागत राजनैतिक वादों के पुलिंदों को ठेंगा दिखाती है जिसमें पार्टी के नेता प्रेस कान्फ्रेंस में घोषणा पत्र दिखाते हैं और कहते हैं कि हम इन्हें पूरा करेंगे। भाजपा और कांग्रेस दोनो बड़ी राजनैतिक पार्टीयां इस दंभ में रह जाति हैं कि हम सबसे पुरानी पार्टी और बीजेपी को यह अभिमान होता है कि उनके पास काम करने वाले कैडर हैं। मगर आम आदमी की जीत के पिछे सबसे बड़ी वजह यह रही है कि देश भर के वालंटियर जिन्हें सीधे तौर पर पार्टी से कोई स्वार्थ नहीं था लोगों ने घर घर जाकर अरविंद के हिंद स्वराज के विचार को पंहुचाया। ऐसे कार्यकर्ता जो पढ़े लिखे तो हैं हि साथ ही इनमें लोगों को आसानी से समझा पाने की क्षमता है। ऐसे लोग केवल दिल्ली में ही हैं ये समझाना सबसे बड़ी भूल हो सकती है। पार्टीयां चुनाव अक्सर इसलिए भी हार जाती हैं कि टिकट वितरण के दौरान लो​कप्रिय चेहरा या मैंगो पीपल फेस की बजाय सोशल इं​जीनयरींग को तलाशा जाता है जबकि आम आदमी पार्टी आम लोगों को उनके बीच से चेहरा देती है। इस मायने में आप जरूर अन्य प्रदेशों में फिसड्डी हो सकती है कि फैले हुए क्षेत्र में आप के वालंटियर लोगों की समझ को कितना समझ पाते हैं। लेकिन ऐसे लोगों की कमी कभी आप को नहीं होगी जो आप की विचारधारा से सरोकार रखते हैं।
               पहले आप के पास अन्य प्रदेशों में बताने को कुछ नहीं था। लेकिन अब आप पूरे देश में दिल्ली की जीत का ढ़िढोरा पीट सकती है। और देश भर के वो युवा जो बदलाव चाहते हैं इससे जुड़कर बड़ा बदलाव लाने की ओर कदम उठा सकते हैं। खास बात यह है कि आप से जुड़ने वाले युवाओं में अब बदलाव, विकल्प और आक्रोश से बड़कर भी कुछ है जो उन्हें खींच रहा है। टोपी का ग्लैमर हो या झाड़ू का आर्कषण..कुछ तो है जो लोग ​जुड़ना चाहते हैं।