शायरी



.......................................................... 

वो राह हमेशा तेरी हो जहाँ चौमास बहार हो
उस डोली पर तू बैठे जहाँ इश्वर खुद कहार हो
हर जंग ऐसी लडूं की बस प्यार ही प्यार हो
हर दांव पर तू जीते और मेरी बस हार हार हो : देवेश तिवारी अमोरा
 
........................................................... 

सबकुछ खाक हो गया उन कागजों में
मेरे हाथ ही जल गए उन यादों को जलाने में
वो टुकड़ा छिनना चाहा था हमने जिस पर
मेरा नाम लिखा था उन्होंने किसी जमाने में : देवेश तिवारी अमोरा

............................................................
कभी कोसते थे जो हमें जुबां पर छाले हो गए
हाँ हम भी किसी और के चाहने वाले हो गए : देवेश तिवारी अमोरा

............................................................
वादा करो आखिरी साँस गीनने आओगी
राहों में गुलाब की पंखुडियां सजायेंगे
वादा अब भी याद है हमें यकीन करो
मरकर भी तुम्हें देख हम मुस्करायेंगे :देवेश तिवारी अमोरा
 
..............................................................
वो जुआ खेलकर दरबार हार गए कोई गम नहीं है
हमने शर्त ही लगाई थी, और गिरफ्तार हो गए। : देवेश तिवारी अमोरा

...............................................................
ये चांद भी नहीं भाता अब
कोई ढक दो इसे भी उसी गुलाबी चुनर से
जो न मेरे करीब आता है
न मैं उसके करीब ही जा पाता हूं : देवेश तिवारी अमोरा

 ................................................................
जुबां कंपकपा रहे थे इजहार की खातिर
मेरी पलकें उठी भी थी दीदार की खातिर
कमबख्त आंसुओं ने तस्वीर धुंधली कर दी : देवेश तिवारी अमोरा

................................................................
मन अभी शांत हैं अर्थ प्रतिक्षा
जिह्वा विराम है अर्थ समीक्षा
अगले पल उठ खड़ा होना है
फिर रण होगा और होगी परीक्षा : देवेश तिवारी अमोरा 

 ...........................................................

हो गई हो चाकरी तो चल घर चलें
दाल आटे मिर्च मसाले इंतजार में होंगे
ये किस्से अमूमन सभी घर बार में होंगे 
तो चल घर चलें थोड़ा पका लें थोड़ा खा लें
गृहस्थी के दैनिक पचड़ों में थोड़ा सर खपा लें : देवेश तिवारी अमोरा


............................................................

हमने घर जलाकर रोशनी दी थी
वो हंसकर फसाने की की बातें करती है
उनकी नसीहत बेमानी लगती है 
वो अक्सर घर बसाने की बात करती है : देवेश तिवारी


.........................................................

तेरा न होना भी कितना सूकून देता है
ताउम्र तेरे आने का इंतजार होता है। 
हर बार आ पड़ता है तिनका आंखो में 
पलकों पर ठहरी बूंद में तेरा दिदार होता है : देवेश तिवारी

........................................................

कुछ रिश्ता तो जरूर है गुजर चुके जन्मों का
उन्हें नींद नहीं आती हमारे तकिए गीले हो जाते हैं
ये कमबख्त जिंदगी भी जिंदगी कहां रहती है 
गुजरते लम्हों में फिर वही सिलसिले हो जाते हैं : देवेश तिवारी

......................................................

मेरे सर पर जलता हुआ दोपहर रहने दे
थोड़ा अपनी खामोशियों का असर रहने दे 
मुस्कराकर मुझे सुधा का रसपान न करा
असर तो करता हूं, तू मुझे जहर रहने दे : देवेश अमोरा

......................................................

कितनी आसानी से कह दिया, भूल जाओ मुझे 
और कहा हो सके तो फांसी पर झूल जाओ मुझे
मुराद जरूर पुरी करते अगर पुराने मकां का ठिकाना होता
डोली के साथ उठता जनाजा अगर मरने का बहाना होता : देवेश तिवारी अमोरा

.......................................................

जलते हैं मैखाने हर अलसाई रात में
किस प्याले ने सबको, पागल बना दिया 
सुरूर रहा आखिरी दम तक उन्हीं का
किसने, उन्हें बेवजह, कातिल बना दिया : देवेश तिवारी अमोरा

......................................................

जब से मंच मौन हुआ है
आवाज कहीं भी आती है
अब वक्ताओं की चतुरता पर
भाषा स्वयं लजाती है
जुबान और हृदय जब विष सा नीला है 
क्या कहेंगे आप जब कैरेक्टर ढीला है : देवेश तिवारी अमोरा

.....................................................

खेत है खलिहान है किसान है मगर खाद नहीं
मौसम है पानी है हल बैल है मगर बीज नहीं 
अब बता रमन मैं खेती करूं तो करूं कैसे 
चढ़ा जो पुराना कर्ज उसे भरूं तो भरूं कैसे : देवेश तिवारी अमोरा

......................................................

कुछ बिजलीयां जो सहेजी थी बरसाती रात में
अंगारे जो छीपा रखे हैं इस पापी कायनात में 

सम्हालो....समेटो...एकत्र करो......

अब तो अतित के आंसूओं का हिसाब लेना है
मिली जो पीड़ा शत्रु से प्रतिशोध बेहिसाब लेना है : देवेश तिवारी अमोरा

....................................................

क्यों मैं गर्दिशे गुबार में गुलाल देखता हूं
उनकी नजर में मैं कुछ कमाल देखता हूं
वो नजरें झुकाएं तो बस दीप जलने लगे
नजरें उठा भर लें तो गोलियां चलने लगे : देवेश अमोरा

.....................................................

बड़े अरमान से कोख में ढोया था जिसको मां ने 
पिता उसे,श्मसान दफनाने निकल पड़ा है
कातिल बेरहम बेजा मर्द 
अपने ही खून को झुठलाने निकल पड़ा है। । : देवेश तिवारी अमोरा

......................................................

जम्हूरियत की आवाज कब तक पिसेगी
दो सियासी पाटों में 

बन्दूक ना उठाएं तो कहो, वो आवाज कहां से लांए

जो गुंजे, संसद की प्राचीर से लेकर 
गंगा यमुना के घाटों में : देवेश तिवारी अमोरा
......................................................
बरसते हैं तो दरिया, तूफान होते हैं
हंसते हैं तो पतझड़ से बहार होते हैं
कुछ तो होगी शक्सियत हमारी भी 
हम यूं ही नहीं चर्चाओं में शुमार होते हैं : देवेश तिवारी अमोरा

No comments:

Post a Comment