Sunday, January 1, 2012

स्मृतियों की धुंधलाती यादें


स्मृतियों की  धुंधलाती  यादें निकलकर सामने छा जाने को है
और आज की अनचाही खुशियाँ पुरानी यादों में  धुंधलाने को है

कुछ बातें कहना सुनना उसकी ही यादों में खोकर जीना बड़ी चाहत है
अकुलित होकर डबडब आँखों से खुशियाँ छलकाना भी बड़ी आफत है

बड़े खुश हैं वो वो जिन्हें हंसना हमने सिखाया था
तब हमारे जीवन में भी आंशिक उनका साया था

क्या कुसूर था पूछा नहीं हिम्मत जवाब दे जाती थी
वो ही अक्सर  उलझन लेकर सामने चली आती थी

क्या पता कभी सामना होगा अब भी कुछ बातें बाकि है
संक्षिप्त जीवन की बारहमासी दास्ताँ  सुनाना बाकि है 

वो पल भी कहने हैं जो अक्सर  चिरागों से मैं  कहता था
उस कहानी को सुनकर वह भी हंसहंस रोकर जलता था   

क्या  कुछ नहीं धरती पर फिर  भी ख़ामोशी गहराती है
क्या बताएं फेसबुकिया मित्रों हमें किसकी याद जलाती है

एक पल को भी दीदार हो जाये तो चाँद देर से निकलता है
अगर  कुछ बातें हो जाये तो भोर का सूरज अंदर छिपता है

अब तो यही  काली रातें  हमेशा  साथ निभाएंगी
वो तो पूनम की चाँद हैं बस आएँगी चली जाएँगी


 क्या कहें उलझन की बदरी इस कदर छाई है
पुरनम आँखों में दूर तलक पसरी तन्हाई है

कोई चरागां इस बुझे  दिल में जले तो जले कैसे
खुशियाँ आक्रांताओं के आंगन में पले तो पले कैसे

जाने कितनी खुशियाँ आकर दहलीज पर लौट जाती है
खुशनसीब वो हैं जिन्हें यार की बस्ती में मौत आती है

हम तो आज भी किनारे पर ज़लज़ला थमने के इंतजार में हैं
नहीं पार होती उन्मादी दरिया वह भी समंदर के प्यार में हैं  

रौशनी की तलाश में कुछ पूरी-अधूरी, मेरी जिंदगी चली जा रही है
बेगैरत जुबां पर आहट न पाकर, ये गैरतमंद जिंदगी मरी जा रही है

बिना मूरत के देवालय में भला पुजारी क्या करेगा
तस्वीरों में खोया पगला देवेश तिवारी क्या करेगा 

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