Saturday, January 28, 2012

मुश्किल लेकिन संभव उम्मीद


क्या कारण है,कि राज्य में हमेशा भाजपा या कांग्रेस की सरकार बनती है। क्या कारण है कि सत्ताधारी लगातार निरंकुश हो रहे हैं। सरकार आदिवासी इलाके में लोगों के साथ ज्यादती कर रही है। लेकिन कोई बोलने वाला भी नहीं है। राज्य सरकार के विरोध में कांग्रेसी हैं मगर उनकी भी सत्ता आ गई, तो कौन सा बदलाव देखने को मिलना है, भाजपा है जहां बनिया राज, कहने का मतलब धनाड्य लोगों का, व्यापारी वर्ग का शासन चलता है नितियां उन्हीं के लिए बनाई जाती हैं और कांग्रेस की क्या कहें एक गेम खेलते हैं अपने इलाके के किसी भी असामाजिक आदमी का नाम सोंचिए जो चोरी, जुआ, मर्डर, हाफ मर्डर जैसे केस में जेल की हवा खा चुका हो। अब बताइए की वह कौन सी पार्टी में है। सभी कांग्रेस में ही मिलेंगे|  बिहार, झारखण्ड, बंगाल,उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों के पास विकल्प भी हैं लेकिन छत्तीसगढ़ में कोई विकल्प नहीं है। बरसों से चली आ रही वामपंथ की सरकार को ममता बनर्जी ने परेड मैदान में घंटी बांधकर उखाड़ फेंका लेकिन रायपुर के सप्रे शाला मैदान में कौन घंटी बांधेगा, विकल्प नहीं होने के कारण कांग्रेस या भाजपा जैसी किसी राष्ट्रीय पार्टी को मतदान करने के अलावा कोई चारा नहीं है, छत्तीसगढ़ के सामने।
   दोनेा पार्टियों के तानाशाह रवैये और पार्टी फंड के नाम पर राज्य भर से गलत माध्यमों दवारा समेटे जाने वाले पैसे को रोकने का क्या उपाय है। किसी एक राज्य में जब किसी प्रमुख पार्टी का कब्जा होता है, तब वहां के युवा उनकी गलत नितियों का विरोध करते हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ में युवा बुढढों के पिछे चलकर नारा लगाने में ज्यादा यकीन रखते हैं। बेशक राज्य के युवा राज्य के भविष्य को लेकर चिंतित हैं लेकिन पार्टी विशेष से निकाले जाने का भय जुबान में दही जमा देती हैं। राज्य की दशा और दिशा को तय करने कब कोई अभिमन्यु आएगा शायद छत्तीसगढ़ महतारी यही सवाल अपने आप से पूछती होगी। राज्य में समस्याओं का अंबार लगा हुआ हैं बस्तर जैसे राज्य में 90 फिसदी लोगों के पास पीने का साफ पानी नहीं है और युवा नेता बीसलेरी बिना प्यासे रह जाते हैं। राज्य में कुपोषित बच्चों की संख्या देश भर से कहीं ज्यादा है। राज्य में नक्सलवाद की समस्या गहराती जा रही है मगर विकल्प दिखाई नही पड़ रहा है। राज्य में महिलांए सुरक्षित नहीं है, इसकी ओर किसी का ध्यान नहीं जाता। राज्य से हर रोज जनवरी माह में सारनाथ ट्रेन पलायन करने वाले मजदूरों से भरी हुई निकलती है लेकिन विश्वसनीय छत्तीसगढ़ का नारा देकर सभी को दबा दिया जाता है। मैदानी इलाकों में पावर प्लांट लगाने की बजाय जंगलों को काटा जा रहा है। लेकिन आवाज कौन उठाएगा?? राज्य के जांजगीर चांपा जिला, जो एक मात्र 75 प्रतिशत नहरों का जाल फैला था, वहां सरकार ने खेती को चौपट कर 16 पावर उद्योगों को अनुमति दे दी, लेकिन सब चुप। किसी के पास कहने को कुछ नहीं। सरकार आदिवासी इलाकों में नक्सल की आड़ लेकर उद्योगों के लिए जमीन खाली कराने में जुटी है, इसके लिए घर जलाए जा रहे हैं मगर सब मौन आखिर इनके बारे में कौन सोंचेगा? ये सत्तालोभी पार्टियां जो तेरी पारीमेरी पारी खेलने में लगे हुए हैं। मैं यह नहीं कहता कि भाजपा और कांग्रेस के शासनकाल में राज्य का विकास नहीं हुआ बेशक विकास हुआ है लेकिन राज्य में खनिज संसाधनों की उपलब्धता और वनों की उपस्थिति के कारण प्रकृति ने ऐसी बरकत दी है कि, यह धन के मामले में किसी भी राज्य की बराबरी करने को तैयार है। सरकार कहती है हमने विकास किया, राजधानी की सड़कें चमकी और नया पुराना शहर बसाया गया। मॉल और मल्टीप्लैक्स जैसे पैसे खर्च करने वाले संस्थानो में बढोत्तरी हुई| इनसे बढ़कर राज्य का जो चहुँमुखी विकास होना था वो अब तक नहीं हो पाया है। राज्य में शराबबंदी का ढकोसला किया जा रहा है और यहां गणतन्त्र दिवस और घासीदास जयंती में शराबी जाम के पैग छलका रहे हैं। राज्य में सरकार की नितियों में लोगों को विकास के केंद्र पर लाने और राज्य के विकास में गांव की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त योजनांए बनाए जाने की जरुरत है। राज्य में कहीं न कहीं ऐसी क्षेत्रीय पार्टियों की कमी देखने को​ मिल रही है, जो राज्य के हित में काम करते हुए सत्ता का विकेन्द्रीकरण कर सकें| सत्ता लोभी और धन कमाने की लालसा से परे क्षेत्र के विकास के लिए क्षेत्रीय पार्टी की जरुरत महसूस की जा रही है। समाज के अंतिम आदमी के घर तक भले ही विकास न पहुंच पाया हो, लेकिन हर मोहल्ले में राष्ट्रीय पार्टियों ने अपने प्रकोष्ठ बनाकर कार्यकर्ता व पदाधिकारी बैठाए हुए हैं| ऐसे में मुश्किल लेकिन संभव उम्मीद जरुर है, जो राज्य के युवा वर्ग को अपनी इच्छाशक्ति के बल पर करना होगा|  : देवेश तिवारी 

No comments:

Post a Comment