Wednesday, January 8, 2014

मध्यमवर्ग का प्रेम, आत्महत्या की राह

मध्यमवर्ग का प्रेम, आत्महत्या की राह
देवेश तिवारी अमोरा 

वह लड़की कक्षा 11 वीं में पढ़ती...नाम वर्षा..उम्र महज 17 साल..इस पड़ाव में एक सभ्य समाज से यही कल्पना की जाती है कि इस उम्र में बहनें पढ़ाई लिखाई में इनका मन लगेगा..या इससे अलग कुछ हो तो घर का कामकाज. मध्यम वर्गीय परिवार हो तो.हाथ पीले करने पड़ते हैं। वर्षा के भी अपने सपने थे.. वह अपने ही
रंग में जीना चाहती थी..वर्षा के ढेर सारे दोस्त थे..परिवार मध्यमवर्गीय..भाई आटो चलाता है। स्कूल जाती थी पढ़ती लिखती थी। फिर अचानक क्या हुआ ​की उसने आत्महत्या करने की सोंची..घर की तीसरी मंजील 50 फिट की उंचाई से कूदने के लिए कलेजा चाहिए। आपकी और हमारी रूह कांप जाए इतनी उंचाई से जमीन की ओर देखकर..और इस तरह वर्षा ने जान दे दी।

जब मामले का मुझे पता लगा तो तह तक जाने की कोशिश की..थोड़ी पूछताछ में ही यह पता चला कि..वर्षा के ढेर सारे दोस्त थे..घर में एक मोबाइल भी मिला था सुरक्षा के लिहाज से..पुलिस का जब्त किया हुआ मोबाइल खंगाला..तो तस्वीर साफ होती चली गई।

आई लव यू जानू..किसी दूसरे नंबर पर आई ल कॉल बैक..इतने में उसके भाई ने कह दिया कि वह 31 दिसंबर की पूरी रात घर नहीं आई थी..घर में डांट पड़ी तो गुमसुम रहने लगी थी। जाहिर सी बात है उम्र के इस पड़ाव में शायद ही कोई हो जिसके पांव..प्रेम जाल में न फंसते हों..वर्षा उनमें से एक थी..मैंने मैसेज बाक्स चेक किया.. जरा जरा महकता है आज तो मेरा तन बदन..आखिर तक मोबाइल में टाइप मिला..तस्वीर साफ होती चली गई। कथित सभ्य समाज हमें प्रेम करने की इजाजत नहीं देता.. ऐसे में एक मध्यमवर्गीय परिवार की उस बेटी के प्रेम प्रसंग पर सवाल उठना लाजिमी था। घर वालों ने सवाल उठाए भी होंगे। लेकन वह आत्महत्या के पिछे किसी को दोषी नहीं ठहराती।

स्कूल जाती थी...अब कुछ इस मसले को ऐसे समझने का प्रयास करें तो सुसाइड नोट से पता चलता है कि उससे कुछ गलत हुआ..जिसकी आत्मग्लानी की वजह से वर्षा जी नहीं पा रही थी.. मध्यमवर्गीय परिवार जब किसी रइस समाज के संपर्क में आता है। तो सपने भी उनकी ही तरह देखने लगता है। उच्च कुलिन परिवार के जीवन जीने के अपने तौर तरिके होते हैं। उनके परिवार का एकाकीपन कहें या कुछ और प्रेम प्रसंग जैसी बातों
के अभिभावकों को कोई खास लगाव नहीं होता..कुछ हो भी गया तो मेरा अल्पकालिक अनुभव कहता है कि मध्यमवर्ग से थोड़ी कम ही प्रताड़ना मिलती है। बड़े को पाने की लालसा में कदम बहक जाते हैं। इस फूल सी गुड़िया के साथ भी वही हुआ..कदम बहके ही थे कि घर की याद आ गई..घर के सिद्धांत उसूल उसे जीने नहीं दे रहे थे..फिर एक दिन वह घर की तीसरी मंजील पर चढ़ती है और छलांग लगा देती है। घर वाले टाईफाइड और गिरने की बात लेकर थाने पंहुचते है। सुसाइड नोट 4 दिन तक दबा लिया जाता है। फिर याद आती है इसमें साजिश है पुलिस पता लगाए किसकी साजिश। मगर वर्षा का जाना कई सवाल खड़े करता है।

क्या प्रेम करना गलत है या बड़े सपने देखना                                                  
क्या मध्यमवर्गीय परिवार प्रेम की इजाजत नहीं देता
क्या हमारे समाज की बनावट ऐसी है कि प्रेम के बाद समाज के अपनाने का डर आत्महत्या तक ले जाए
छोटी उम्र बड़े सपने और एक छलांग सबकुछ स्वाहा..कारण थोड़ा सुलझा थोड़ा अनसुलझा..

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