Friday, March 2, 2012

लोकतंत्र के हत्यारों



सत्ता सुख के अंधे तुम हमें चलना सिखाओगे
अब लोकतंत्र की परिभांषांए तुम हमें बतलाओगे
सत्ता सौंपी थी तुमको हमने, रक्षा हमारी करने को
हमसे पहले अग्नी में सब होम हवन कर जलने को
बगावती भले हो जांए, नहीं सहेंगे अत्याचारों को
अब तो सबक सिखाना होगा लोकतंत्र के हत्यारों को  


बेचा जंगल, बेची नदियां बाप की जागिर समझकर
सीना ताने चलते हो लैनीन की तुम शाल ओढ़कर
लो ताल ठोंकते हैं हम मुकाबला आकर  हमसे लो
कुछ बूंद हमारे रक्त से भी कोठीयां अपनी भर लो
बंदूकें छीननी होगी अब निकम्मे पहरेदारों से
अब तो बदला लेंगे हम लोकतंत्र के हत्यारों से


बस्तर की घाटीयों में जब-जब कत्लेआम हुआ है
बारुदों के ढेर में अमन चैन सब निलाम हुआ है
खुद तो बैठे बूलेटप्रूफ में और हमारी चिंता छोड़ दी
हमारी रक्षा करने की तुमने सारी प्रतिज्ञाएं तोड़ दी
लोकतंत्र का चिरहरण अब नहीं सहाता  यारों से
अब तो गद्दी छिननी होगी लोकतंत्र के हत्यारों से                                      

जल, जंगल, आदिवासी राजनीति की बीसात बने हैं
इन्हें लूटने राजनीति में कई मोर्चे और जमात बने हैं
की होती गर चिंता हमारी, गोलाबारुद न बरसते होते
हम जंगल के रहवासी अपने घर को न तरसते होते
अब तो सारे पाखंड तुम्हारे, हमें समझ में आते हैं
लोकतंत्र के हत्यारों भागो अब, हम सामने आते हैं


छत्तीसगढ़ महतारी, जननी,का कर्ज चुकाने आए हैं
हमारे पुरखों ने खातिर इसकी हजारो जख्म खाए हैं
माना तुम सूरमा हो हम भी विरनारायण  फौलाद हैं
रुधीरों में हम आग बहाएं हनुमानसिंह की औलाद हैं
अब तो माता की पीड़ा हम और नहीं सह पाएंगे
लोकतंत्र के हत्यारों को अब हम सबक सिखांएगे

सौंपी दी सत्ता हमने तो, मुंह बंद करा दोगे क्या
उठाया हक की खातिर सर, कलम करा देागे क्या
लो सीना ताने हम भी आज खुनी फरमाईश रखते हैं
तेरे महलों के सामने आज लाशों की नुमाईश करते हैं
हिम्मत है तो हमारी तरह आंसू खून के पीना सीखो
लोकतंत्र के हत्यारों अब,  असल रुप में जीना सीखो

: देवेश तिवारी

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