Saturday, March 3, 2012

कोई जवाब तो दे

कैसे जीते बारुद के उपर संगीनों के साए में 
कैसे जीते अभाव के मारे लाशों के साराय में                                                        
देखेंगे कैसे मरते हैं वहां चिंटी की तरह इंसान 
कैसे बन जाते हैं अपने ही भाईबन्धु शैतान

जहां जवानी आने से पहले अंदर ही घबराती हैं
पानी लेने जहां मातांएं बहने कोसो दूर जाती हैं
कैसे जवान बंदूक थामे खुद घरबार छोड़े बैठे हैं
कैसे जनतंत्र की बांहें कुछ माओ मरोड़े बैठे हैं

अत्याचारी पुलिस प्रशासन, मौन हुए सब सिपेसलार
भोले आदिवासीयों के हत्यारे, कैसे बन बैठे थानेदार
चूहों की तरह बील में कैसे जनप्रतिनीधी घुस जाते हैं
पंचवर्षीय चुनाव मेले में,कैसे मांद छोड़ बाहर आते हैं

खूनी नदीयां,खूनी सड़कें, खूनी पुल,खूनी हाट बजार सारे
पल में जीते पल—पल मरते जंगल के असल मालिक बेचारे
सब कुछ देखकर मौन चिंदंबर,मौन है मोहन,मौन रमन है
लोकतंत्र के आभासी किताबों में खोजा हमने क्या ये अमन है

कोई बताए ये कत्लेआम लड़ाई किसने छेड़कर छोड़ दी
किसने की शुरूआत किसने निर्ममता की हदें तोड़ दी                            
कौन जलाता है घरबार, कौन शमा जलाने जाता है
कैसे मुखिया एकात्म की छत से हर शाम गुर्राता है

कोई जवाब तो दे, किसने बरसों तक, सौंतेला बनाया
कोई जवाब तो दे किसने, जन से तंत्र, काट गिराया
बच्चा बच्चा मेरे राज्य का यही सवाल पूछता है मुखिया
बताओ मेरे भाईयों को बेघर अनाथ किसने बनाया : देवेश तिवारी

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