Saturday, March 24, 2012

या तो सेट है या लड़ना छोड़ दिया है। यूथ कांग्रेस व एनएसयूआर्इ् नाम की

हां यही लगता है इनकी कार्यप्रणाली देखकर, की या तो सेट हैं या इन्हें आंदोलनों से अब भय लगने लगा है। क्योंकि जो कुछ छोटा मोटा हूजूम कभी दिखाई पड़ रहा है, वह प्री प्रोग्राम ड्रामा से इतर कुछ और नहीं है। हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ कांग्रेस के युवा नेतृत्व एनएसयूआई व युवा कांग्रेस की। कुछ बन्धुओं को इस बात से एतराज़ भी होगा कि, वे कुछ करें न करें, लिखने वाले को क्या मतलब। मतलब है, मुझे आपकी पार्टी से। राज्य की एक मात्र बहुमत की विपक्षी पार्टी है कांग्रेस । जनता ने वोट दिया है इसलिए मतलब है। आप किसी पार्टी से जुड़कर ही सही राज्य के युवा वर्ग का प्रतिनिधीत्व करते हैं इसलिए भी मतलब है।
राज्य में भाजपा का लगातार दूसरा कार्यकाल चल रहा है लेकिन आज भी चारो ओर भ्रष्टाचार, कालाबाजारी, अन्याय, अत्याचार, डर भय आतंक, प्रशासनीक आतंकवाद जैसी तमाम बुराईयां चरम पर है। इनका समय समय पर कांग्रेस विधानसभा में और कभी कभार सड़कों पर विरोध जताती रही है। लेकिन कई ऐसे मुदृदे भी हैं जिन पर बड़े जन आंदोलन की जरुरत है लेकिन कांग्रेस खामोश है युवा वर्ग, छात्र वर्ग खामोश है। या उन्हें असल मुदृदों की जानकारी नहीं है। इन मुदृदों को सामने लाने के पीछे क्या मजबूरीयां हैं इसका जवाब या तो भगवान जानता है या ये खुद!
राज्य में सबसे बड़ा जिसे मैं मानता हूं वह मामला है सोनी सोढ़ी का जिन्हें उनके आदिवासीयों के हित में लड़ने की सजा जेल जाकर चुकानी पड़ रही है। आपके जैसे बड़े पार्टी के होते हुए उनकी आवाज जनता तक नहीं पंहुच पा रही है इसके लिए क्या आपको भी दोषी नहीं माना जा सकता। उस आदिवासी शिक्षक के साथ बलात्कार किया गया। उसके गुप्तअंगो पर पत्थर ठूंस दिए गए। रायपुर के अस्पताल में जांच होने पर रिपोर्ट में खा गया बलात्कार हुआ ही नहीं है । कोलकाता में जांच होने पर बलात्कार की पुष्टी होती है गुप्त अंगो से पत्थर निकलते हैं। यह सब देखकर भी आपकी पार्टी खामोश है। इसलिए कहना पड़ रहा है। सब सेट हैं।
दूसरा मामला मैं भाजपा के शासनकाल में ऐसे आदिवासीयों से भी मिला हूं जिनकी जमीन सरकार ने जबरिया छीन ली। बस्तर स्थित लौंहडीगुड़ा के किसानों के परिवारवालों को जेल में डाल दिया गया और कहा गया कि कागज में हस्ताक्षर करो तभी परीवार के लोगों को छोड़ा जाएगा। क्या इस पर युवा नेतृत्व की नजर नहीं पड़ी।
तीसरा मामला राज्य के अभनपुर इलाके के बीपीएल परीवार के आदिवासी किसानों के नाम पर रायगढ़ में करोड़ो रुपए की जमीन उद्योगपतियों ने खरीद ली सरकार इसकी जांच नहीं कर रही है। इस तरह कई इलाकों में आदिवासीयों की उद्योगों के लिए खरीदी बेची जा रही है। लेकिन आप इसे आंदोलन के जरिये लोगों तक पंहुचा पाते ऐसा माददा शायद अब इन इकाइयों में नहीं है|
चौथा मामला सरकार आदिवासी, सतनामी समाज पर जमकर राजनीति कर रही है। आंदोलनों का दमन किया जा रहा है। कांग्रेस चाहती तो बड़ा आंदोलन खड़ा कर मामले को जन—जन तक पंहुचाकर, सरकार के जातीवाद आधारित राजनीति का काला चेहरा सामने ला सकती थी। लेकिन मामला विधानसभा से विधायकों के बर्हिगमन तक सिमित रह गया।
पांचवा मामला राज्य में उद्योगों के लिए आदिवासीयों का आशियाना जलाने की घटना के जांच के लिए सीबीआई की टीम राज्य आती है और इसे छत्तीसगढ़ की वह एसपीओ जीसे रमन सिंह अच्छा बताते हैं यही एसपीओ हमला कर देती है। यदी सरकार इसी एसपीओ की प्रशंसा करे तो क्या यह नहीं कहा जा सकता की सरकार के इशारे पर सीबीआर्इ् पर हमला हुआ।
इसी तरह दर्जनो घटनाक्रम व मामले हैं जिन पर सरकार को घेरकर लोगों में भाजपा की साख गिराने का मौका मिल रहा था। लेकिन सब खामोश रहे। मामला कुल मिलाकर यह है कि जनता में अपनी गिरी हुई साख जिसके कारण 2003 और 2008 में मुंह की खानी पड़ी थी इसे सुधारने और जनाधार बढ़ाने का मौका कांग्रेस के हांथ आया और फिसल कर चला गया। कहां थे आई रे आई एनएसयुआई, कहां थे टाटा सफारी में बैठकर खुद को यूथ कांग्रेस के पदाधीकारी बनकर खुद को यूथ हिमायती बताने वाले। इस तरह देखा जाए तो पिछले कुछ सालों में गली मोहल्ले कालेजों में कांग्रेस के कार्यकर्ता जरूर बढ़े हैं लेकिन सरकार हिल जाए ऐसा कोई आंदोलन देखने को नहीं मिला है।
माजरा दरअसल यह है कि कांग्रेस में कहीं न कहीं ऐसे यूथ चेहरे की कमी दिखाई पड़ रही है। जो पार्टी से अलग अपनी अलग पहचान रखता हो जिसे लोग पार्टी के पद से बढ़कर उसके आंदोलनों के लिए जानें। छत्तीसगढ़ में सरकार की भूमिका पर तो मीडिया संस्थान अक्सर सवाल उठाते रहे हैं लेकिन विपक्ष की भूमिका पर कौन सवाल उठाएगा।

अब पुतला दहन और शव अर्थी से बात नहीं बनेगी
कुछ जनआंदोलन करना होगा
तानाशाह इस अधिनायकवाद पर
अब तो प्रहार करना होगा

:देवेश तिवारी

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