Saturday, May 25, 2019

सेक्यूलर होना गाली नहीं देशभक्ति का प्रमााणपत्र है


हिंदु धर्म है मूल सनातन धर्म है यह जीवन पद्धती है
मुर्ती की उपासना और पर्यावरण से लेकर नदी नाले पहाड़ पेड़ को ईश्वर मानने वाला विशाल जनमानस हिंदु
इसके पर्याय भगवा, हिंदुत्व, हिंदु
हिंदु कौन , जो ईश्वर पर आस्था रखे, जो मंदीर देवालय जाए, जो मूर्ती का उपासक हो
हां वही विवेकानंद वाला हिंदुत्व जो अपने धर्म को मानता है मगर दूसरों के धर्म की इज्जत करता है
जिसके लिए धर्म संसद में भाईयों और बहनों कहने पर तालियां बजती है 
यह तो असली हिंदु हुआ
सियासत वाला हिंदु कौन
जो हिंदु धर्म की जगह हिंदुत्व कहे
जो धर्म को रंग से जोड़े
जो घर घर भगवा छाएगा रामराज फिर आएगा के नारे लगाए।
फिर दोनों में अंतर क्या है
पहला वाला हिंदु है इस भारत का मूल जो विवेकानंद और गांधी ने बताया था
फिर दूसरा वाला हिंदू कौन
जो रामराज्य संवेदनाओं और जनता के सुख के लिए नहीं जो अपने देश और राज्य में केवल हिंदुओं के होने की कल्पना करता है
दूसरा वाला हिंदु वही जो सावरकर का हिंदुत्व है, जिसकी नजर में हिंदु धर्म सर्वश्रेष्ठ है जिसमें दूसरे धर्मों के प्रति अपार घृृणा है
अब इसका आगे समझीए

आपको देश से प्यार है
हां है, आप कौन से वाले हिंदु हैं
असली हिंदु या सियासी हिंदू
मुझे नहीं पता मैं कौन सा हिंदु हूं
अभी पता चल जाएगा।
क्या आपको किसी के यह बताने से प्रभावित हुए हैं कि, उत्तर प्रदेश में मुसलमानों के मोहल्ले में रहना मुश्किल है
क्या आपके सेलफोन में बांग्लादेश की फोटो को बंगाल का बताकर भेजा गया कि, हिंदु भाईयों को काटा गया
क्या आपको दूसरे देशों की गोहत्यों को बंगाल केरल या असम का बताकर भेजा गया।
हां भेजा गया उससे मुझे दु:ख हुआ
तो आपने फैक्ट चेक किया कि, यह असल में वहां का है या कहीं और का
हां चेक किया, कई मामले देश के निकले कई बाहर के निकले
ठीक
फिर इस तरह की चिजों को आप क्या मानते हैं यह उस राज्य के कानून व्यवस्था का मसला है या धर्म विशेष के सामने सत्ता लाचार है
क्या करना चाहिए जनता को फैसला खुद करना चाहिए या कानून को करना चाहिए।
कानून नहीं कर रहा है तो क्या आपको देश के कोर्ट पर भरोसा है नहीं है तो होना चाहिए
अगर आपको लगता है कि हिंदुत्व खतरे में है तो आपको बिमार किया गया है आप सावरकर वाले हिंदु हैं
अगर आपको लगता है राज्य सरकारें कानून व्यवस्था नहीं सम्हाल पा रही तो आप असली हिंदु हैं विवेकानंद और गांधी वाले।
चलिए आपको तिरंगे से प्यार है
हां है
फिर तो आपको भारत के संविधान से भी प्यार होगा
मैने संविधान पढ़ा ही नहीं है
उसकी प्रस्तावना पढ़ी है
नहीं पढ़ी
उस प्रस्तावना में क्या है
नहीं पढ़ा तो पढ़िए
प्रस्तावना

हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को :

न्याय, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक,

विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,

प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा,

उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढाने के लिए,

दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई0 को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।"

हमारा संविधान सभी धर्मेां को उपासना करने की स्वतंत्रता देता है
हमारा कानून किसी भी अपराध पर दोषी और प्रार्थी को एक मानव ईकाई मानता है
फिर यदि आप दूसरे वाले हिंदु हैं
तो आपको देश से प्रेम होने का भ्रम मात्र है
असल में आपने देश की आत्मा संविधान का पहला पन्ना भी नहीं पढ़ा
और बहुत बड़े देशभक्त बनने का आडम्बर कर रहे हैं
और अगर आप पहले वाले हिंदु हैं तो आपको सेक्यूलर कहे जाने पर खुश होना चाहिए
क्योंकि, आप संविधान के हिसाब से चल रहे हैं
लोग आप पर हंसेंगे
आपका उपहास करेंगे
मगर अपनी आत्मा से आप संतुष्ट रहेंगे कि, आप हिंदु होने के साथ साथ देशभक्त भी हैं क्योंकि, आप भारत के संविधान पर आस्था रखते हैं
हर सेक्यूलर भारत के संविधान पर आस्था रखता है
यह गाली नहीं है यह देशभक्ति का प्रमाणपत्र है


Sunday, May 19, 2019

आएगा तो मोदी ही, 23 मई को मिलते हैं, क्या बदल जाएगा

 आएगा तो मोदी ही, 23 मई को मिलते हैं, क्या बदल जाएगा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आडम्बर और उनकी ओर से बोले गए गलत तथ्य को उजागर करने या उनकी आलोचना करने पर उनके समर्थकों की टोली लगातार कर रही है 23 को मिलते हैं।
चलिए मान लें कि, नरेंद्र मोदी अपने दम पर 350 सीटें लाकर फिर से प्रधानमंत्री बन गए तो 
तो क्या ?
क्या वे झूठ बोलना छोड़ देंगे.. या सच में बादल के पीछे विमान को रेडार पकड़ नहीं पाएंगे
23 को जीतने के बाद क्या नोटबंदी में वापस आए 99.9 प्रतिशत नोट आधे होकर आधा काला धन सरकारी खजाने में आ जाएगा। और 125 लोग जिनकी कतार में मौत हो गई वह वापस हो जाएगी।
क्या उनका हर साल 2 करोड़ रोजगार यानी 10 करोड़ रोजगार देने का वादा पूरा हो जाएगा।
क्या ​जिस राफेल घोटाले को वे नहीं करने की बात कहते हैं, उसे नहीं किया है साबित करने के लिए उसकी जांच करा देंगे
23 को दोबारा पीएम बनने के बाद वे उन झूठों को वापस लेंगे जिनमें वे कहते हैं कि, 1087 में वे कैमरा और इमेल यूज करते थे, 36 साल तक भीख मांगकर खाए हैं
23 को दोबारा पीएम बनने के बाद क्या उरी के शहीद जवान जिंदा हो जाएंगे, पठानकोट और पुलवामा के सैकड़ो जवानोंं की सांसे लौट आएंगी।
मोदी दोबारा लौट कर आ जाएंगे तो क्या चुनाव आयोग की स्वायत्ता, सुप्रिम कोर्ट की स्वायत्ता पुर्नस्थापित हो जाएगी।
23 मई को फिर मोदी पीएम बन जाएंगे तो बिते चुनाव में पेट्रोल सस्ता करने का दावा और किसानों की आमदनी दुगना करने का वादा, हर घर तक पानी पहुंचाने का वादा पूरा हुआ माना जाएगा।
23 मई को क्या देश में दलितों आदिवासीयों के साथ हुई हिंसा में मौतों उन लाशों को पुर्नजिवित कर देंगी
क्या वह मानसिकता खत्म हो जाएगी जो गांधी की हत्या को वध और गोडसे को हीरो बताएगी
क्या मोदी जी के फिर आ जाने से वह मानसिकता खत्म हो जाएगी..जो हिंदु मुसलमान में भेद करना चाहती है।
क्या मोदी जी के फिर आ जाने से नक्सलवाद जैसी समस्याएं खत्म हो जाएंगी
23 मई को फिर मोदी जी के आ जाने से क्या उन 10 कार्पोरेट धन पिपासुओं की पैसे के प्रति भूख खत्म हो जाएगी जिनके प्लेन में वह प्रचार करते हैं और उनको दूसरे देश में वे बिचौलिए की भूमिका निभाते हैं।
मोदी जी को नवाज शरीफ के घर केक खाने ले जाने वाले उदयोगपति क्या राष्ट्र के खातिर पाकिस्तान में चल रहे अपने बिजलीघर बंद कर देंगे।
23 मई को अगर पीएम राष्ट्र के प्रधानमंत्री के पद की शपथ के साथ। बेवजह न फेंकने, ड्रामा न करने, सादगी से देश की सेवा करने। झूठ न बोलने की शपथ लेंगे।
 कार्पोरेट हित से पहले देश का हित ध्यान रखने। निजिकरण की जगह सहकारिता के माध्यम से देश का​ विकास करने। बीएसएनल, एचएएल, जैसी सरकारी संस्थाओं को पुर्नजिवित करने की शपथ भी लेंगे।
अगर लेंगे तो देश में नरेंद्र मोदी जैसा प्रधानमंत्री न हुआ होगा न हो पाएगा। वो मां भारती के यश भारत की विरासत और असल मुद्दों पर ध्यान दे पाएंगे

Wednesday, January 2, 2019

कैसे खरसियां के कुरूक्षेत्र में अभिमन्यू जीत गया : देवेश तिवारी अमोरा


यह लिखने में थोड़ी देर है मगर सवाल अनसुलझा रहकर यह प्रसंग भीतर ही दफ्न न रह जाए यह खरसियां के इतिहास के लिए लिखा जाना जरूरी है। 
सवाल कई हैं.. क्या खरसियां का चुनाव बेहद आसान था.. या खरसियां कांग्रेस का गढ़ था इसलिए कांग्रेस जीत गई.. या प्रदेश के अंडरकरंट की तरह ही खरसियां में भी अंडरकरंट नजर आया.. चुनाव के दौरान कई बार खरसियां जाने के बाद और सतत वहां के जानकारों से संपर्क में रहते हुए यह कहा जा सकता है कि, यह चुनाव दिलचस्प रहा..इस चुनाव में जीत का अंतर पहले की तुलना में कम हुआ..युवा आईएएस ओपी चौधरी और विधायक उमेश पटेल के इस चुनाव को हमेशा याद किया जाएगा, ठीक उसी तरह जैसे अर्जुन सिंह के सामने दिलिप सिंह जूदेव, लखीराम अग्रवाल के सामने नंदकुमार पटेल चुनाव लड़े थे.. पुरानी कहानियां अपनी जगह कायम रहेंगी..मगर 2018 का चुनाव अपनी तरह से याद किया जाएगा। इस चुनाव में बीजेपी ने युवा आईएएस ओपी चौधरी को चुनाव मैदान में उतारा था.. मगर क्या केवल ओपी चौधरी अकेले उस सीट पर चुनाव लड़ रहे थे।
चुनाव के दौरान उमेश पटेल अभिमन्यू की भूमिका में विरोधी दल के चक्रव्यूह को भेदने की कोशीश कर रहे थे.. ओपी चौधरी सत्ता के जिस सुपर सीएम के कैंडीडेट माने जा रहे थे..उनके सामने प्रशासनिक महकमें में भयाक्रांत नेता हामी भरने से इतर कुछ नहीं करते थे..ओपी चौधरी को चुनाव आयोग धृतराष्ट्र की भूमिका में कई उल्लंघंन पर एक नोटिस दे रहा था। कभी  नंदकुमार पटेल के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले बोतलदा परिवार के बालकराम पटेल, उपेक्षा का आरोप लगाते हुए द्रोणाचार्य की भूमिका में थे.. ईप लाल चौधरी​ भिष्म पितामह, रविन्द्र पटेल सबकुछ जानते हुए कर्ण बने हुए थे.. दुर्योधन और दुष्शासन सत्ता के वे सभी हथकंडे थे, जो प्रशासन से लेकर आर्थिक आधार पर किसी सीट को जीत लेने के लिए कुछ भी करने को आमादा थी..

     चुनाव के दौरान नगदी से लेकर टी शर्ट, शेविंग किट से लेकर साड़ी और हर वो संसाधन जो चुनाव को प्रभावित कर सकता था.. वह बांटने का प्रयास हुआ..एक तरफ सतरंगी वीडियो ​के जरिए ओपी चौधरी युवा जनमानस में अपनी छाप छोड़ने की कोशीश कर रहे थे, उनके पास बताने के लिए कलेक्टरी पद से दिया हुआ इस्तिफा था..माटी की मोहब्ब्त में वे लाल हो गए थे.. ओपी चौाधरी के साथ के​जरिवाल पैटर्न में कैंपेन करने वाले युवाओं की फौज थी..आईटी टीम, सर्वे टीम..वीडियो ग्राफिक्स..पेड रणनीतिकार..प्रशासनीक तंत्र क्या नहीं था.. एक पल को ऐसा भी लगा कि, ओपी चौधरी चुनाव जीत रहे है.. फिर ऐसा क्या हुआ कि, ओपी चौधरी हार गए।
     ओपी चौधरी और उमेश पटेल के कैंपेन तरीके में सबसे बड़ी असमानता यह थी कि, ओपी हाईटेक तरीके से धुंआधार अंदाज में चुनाव लड़ रहे थे..भिष्म, द्रोण सारे सियासी सूरमा उनके साथ थे। सरकारी महकमे के चक्रव्यूह में उमेश पटेल फंसे थे..मगर उनके पास पिता की राजनीतिक विरासत के साथ उनके डीएनए में पिता के व्यवहार का नैसर्गिक गुण भी था.. लो प्रोफाईल, बगैर तामझाम के संवेदनाओं के साथ वे मैदान में डटे रहे। उमेश पटेल पिता के साथ और पिता के बाद खुद विधायक रहते हुए खरसियां की तासीर को समझ चुके थे.. जनमानस के भाव को पढ़ चुके थे.. और यह भी जानते थे कि, चुनाव में जीत के लिए संसाधन के साथ साथ सीधा जुड़ाव जरूरी है। ओपी लगातार सोनिया और राहुल गांधी के बहाने कांग्रेस को परिवारवाद का पोषक बताते.. और जब यही सवाल खरसियां में बार बार कहा जाता तो ईशारा उमेश पटेल की ओर हो जाता था। नंदकुमार पटेल का बेटा होने के नाते उमेश पटेल संवेदनावश पहला चुनाव जीते गए..मगर दुसरे चुनाव में उमेश ने अपने आप को स्थापित किया.. .और चुनाव अपने सोच और कार्यकर्ताओं के ​सही जगह पर खड़े होने की वजह से जीत आए.. इस चुनाव ने ओपी को हराया मगर भविष्य के लिए जमीनी पर खड़े रहने की सीख दी.. इस चुनाव ने उमेश पटेल को जिताया मगर मार्जिन कम कर जनाधार कम होने का भय दिखादिया..खरिसयां के कुरूक्षेत्र में अभिमन्यु लड़ा लड़ता रहा और जीत गया.