प्रेम

 मेरे निवालों पर जादू की जरुरत क्या थी

अब मेरे निवालों पर जादू की जरुरत क्या थी
गले से उतरने में तुम्हारी तरह इतराने लगी है
भूख पहले जैसी अब लगती भी कहाँ है
वो भी तुम्हारी तरह पहले से शरमाने लगी है
मौत ही तुम्हारी तरह बेवफा न हुई
आहिस्ते आहिस्ते ही सही करीब आने लगी है : देवेश तिवारी अमोरा


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तुम्हें चारो तीरथ से पहले अपना धर्म ईमान माना है 

तेरी आँखे जब जब झुकी पलकों को अज़ान माना है
तेरी केशों को हमने भादो का आसमान माना है 
तेरे रुख को सितारे और सीरत को ज़हान माना है
तेरी पराश्तिश को हमने खुद का अरमान माना है
तेरे ज़बां के हर हर्फ़ को खुदा का फ़रमान माना है 
मुमकिन है तुम्हे फुर्सत न हो जानने की कभी मगर
तुम्हें चारो तीरथ से पहले अपना धर्म ईमान माना है 
: देवेश तिवारी अमोरा

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मुझे मेरी जागती रातों का हिसाब देकर जाना 

तोहफे जो हैं स्मृतियों में लाजवाब लेकर जाना 
किताब में दबी वो आखीरी गुलाब लेकर जाना 
मेरे जहन में पले जो पवित्र ख्वाब लेकर जाना
कुछ बाकि हों गर सवाल. जवाब लेकर जाना
फूटी बोतल के तलछठी की शराब देकर जाना
जाना जाना चली जाना, मगर
मुझे मेरी जागती रातों का हिसाब देकर जाना : देवेश तिवारी अमोरा

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खुली आंखों को छूकर नींद का गुजर जाना क्या होता है 


अगर मालूम हो उन्हें खुद तो बताया भी करें कि
किसी को चाहने का आखिरी पैमाना क्या होता है

कुछ लोग अक्सर बेबस हो जाते हैं बिना जाने 
प्यार मोहब्ब्त किस्सों का अफसाना क्या होता है 

हर बार टूट जाते हैं आईने पत्थरों से टकराकर 
आईनों को कपास से दोस्ती समझाना क्या होता है

शराबी सोया होगा समझकर वो मुंह मोड़ लेते हैं 
पता है जवान लावारिसों को दफनाना क्या होता है

तुम जब मुंह एैंठ लेती हो अदाएं दिखा दिखा कर
पता है जेठ की दोपहरी में मंडराना क्या होता है

समय का गणित न सिखाया करो हमें, तुम्हें पता है
खुली आंखों को छूकर नींद का गुजर जाना क्या होता है : देवेश तिवारी अमोरा



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मुद्दतें गुजरी मगर दुनिया मेरी बेरहम ही रहीं

है हकिकत कि मोहब्बत नहीं ये जान लिया
कोरा कागज रहा कोरा मैंने ये मान लिया 
इतना सुकून रहेगा मुझे ताउम्र सनम 
दिल से भूलेंगे नहीं तुझको कभी अपनी कसम

ये सच है कि कम ही उठे हैं मेरे हाथ कभी 
हां मगर जब भी हो इबादत मेरी, है ये दुआ
कभी कांटे न हों बाहों में तेरी,, है ये दुआ
खुशबुएं बिखरे सदा राहों में तेरी, है ये दुआ

कभी आंसू न तेरी आखों में, हम आने देंगे
लहू पी लेंगे गले भर न कभी गम आने देंगे
हमने जिंदगी से खुशरंग निकालें हैं सनम
मर जाएंगे तुझपर न कोई, सितम आने देंगे

खुदा तब तक मुझे दुनिया से तु रूसवा न कर
हां जन्नत में मिलूंगा मैं तूझे कोई शिकवा न कर
किसी मजदूर के पसीने सी है मेरी, पाक जुबां
उसके जीने तलक रहने दे कोई फतवा न कर

कुछ इस तरह भी मेरी जिंदगी संवर जाएंगी
आहिस्ता आहिस्ता ये हवाएं सुधर जाएंगी
आंखे बंद नहीं होंगी इन्हें है खूब पता
उसी तस्वीर से लिपटकर रातें गुजर जाएंगी

अपने दामन के बचे, दाग भी धो लेंगे हम
तेरा जिक्र आया तो हंसकर कभी रो लेंगे हम
तेरे आंसू हथेलीयों में मेरे मोती होंगे
बची सांसो के हिलते तारों में पिरो लेंगे हम

रूख बदलती रहीं शोले, तो शबनम भी रहीं
वो नहीं बदली कभी जख्म तो मरहम भी रहीं
मुकम्मल इश्क कभी हमने तो मांगा भी न था
मुद्दतें गुजरी मगर दुनिया मेरी बेरहम ही रहीं : देवेश तिवारी



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आफताब सी आंखों में चांद भी खटकने लगा है 

कोई कसर न थी आशिक की चाहत में
किस्मत की लकीरों ने साथ नहीं दिया
जलजले में टकटकी उसने भी लगाई थी
उन्होंने थामने अपना हाथ नहीं दिया
मंगल गीतों पर वह आशिक थिरकने लगा है
बदहवास सा निर्जनों में वह भटकने लगा है
कभी महफिलें रोशन करता था जो ठहरकर 
आफताब सी आंखों में चांद भी खटकने लगा है : देवश तिवारी


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किसी और से दिल लगाना बड़ा मुश्किल होगा

मुझे देखकर मुंह मोड़ना बड़ा आसान है
मगर सारी रात नींद को रिझाना बड़ा मुश्किल होगा
हंसकर दिल तोड़ना भी बड़ा आसान है
मगर नम आंखों से मुस्कराना बड़ा मुश्किल होगा
यूं तो बहुत से कद्रदान होंगे तेरे हुस्न के 
मगर किसी और से दिल लगाना बड़ा मुश्किल होगा : देवेश तिवारी

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हृदय मंथन से उभरे घाव भरना आसान नहीं होता

मोहब्ब्त के आखेट हमें हरगिज आलिंगन न करे
रूदन क्रंदन की परिभाषाएं रटना आसान नहीं होता
लौह बनकर लहू जब टपके धरती के दरारों में
बुंदे आश्वासनों के चाटकर मरना आसान नहीं होता
आक्रांतांए मसखरी होगी आपके लिए साहब जी 
हृदय मंथन से उभरे घाव भरना आसान नहीं होता : देवेश अमोरा

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दो पल साथ खिलखिलाने वाले बहुत हैं

खुदा तेरा करम है कि मुस्करा लेते हैं
हमारी हंसी पर पहरे बैठाने वाले बहुत हैं
आसमान नाप दें हम तो छलांग मारकर 
हमारे पंजों पर ग्रहण लगाने वाले बहुत हैं 
दोस्त मिलें तो ताउम्र के लिए मिलें 
दो पल साथ खिलखिलाने वाले बहुत हैं : देवेश तिवारी


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धीरे धीरे हमसे किनारा कर रही थी :

मेरा परिचय ही परिचय का मोहताज हो गया
उस गली से गुजरा तो ताज भी बेताज हो गया
माथे पर पड़ने वाले पत्थरों में आशिक लिखा था
भटकने वाले खा नाबदोंशों की माफीक लिखा था 
रोशनदान से किसी की सहेली मुझे
चुपके से जाने का ईशारा कर रही थी। 
कोई सिंदुर छिपाकर बालों के आड़ में 
धीरे धीरे हमसे किनारा कर रही थी : देवेश अमोरा

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पत्थर दिल नगीनों से दिल लगाओ तो कभी

सूरत पर मर मिटने को कई आमादा हैं
अंगारी आंखों में ठहरकर दिखाओ तो कभी

गुलाब की पंखुड़ियों पर तितलीयां बैठती ही है
नागफनी से थोड़ी दिवानगी जताओ तो कभी

इनके आफताब में खोना भूल होगी समझो
अमावस रातों में चलकर तुम आओ तो कभी 

खुले दरबारों पर तो कोई भी आ—जा सकता है
बंद दरवाजों पर आवाज लगाओ तो कभी

नाव पर बैठकर तो दरिया पार हो ही जाएगी
लहरों में तैरकर थपेड़ों से टकराओ तो कभी

जुदाई के डर से तुमने प्रेम करना छोड़ दिया
पत्थर दिल नगीनों से दिल लगाओ तो कभी : देवेश अमोरा


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चलता फिरता हर सिरफिरा, फनकार बन जाता है

जब कांटो पर चलने वालों को फूल चूभते हैं
जब हृदय में एकाएक सैकड़ो शूल चूभते हैं
किसी के प्यार का रकीब, हकदार बन जाता है
चलता फिरता हर सरफिरा, फनकार बन जाता है

अंधेरी रातों में जब खामोशी गहराती है
भीड़भरी महफील में आंखे नम हो जाती है
बन्द कमरे का कोना जब यार बन जाता है
चलता फिरता हर सरफिरा, फनकार बन जाता है

किसी के सव्प्न में कोई अनायास खो जाता है
जब कोई अनपढ़ खुद ही उपन्यास हो जाता है
कोई पागल प्रेमियों का सिपेसलार बन जाता है
चलता फिरता हर सरफिरा, फनकार बन जाता है

जब मुफलिस फिरने लगते हैं नवाबों की तरह
जब पैमाने टूटने लगते हैं ख्वाबों की तरह
जब कोई अनजानी गलीयों का पहरेदार बन जाता है
चलता फिरता हर सरफिरा फनकार बन जाता है

जब कोई त्याग, तपस्या का पर्याय बन जाता है
जब जीवन विरग गाथाओं का अध्याय बन जाता है
जब घोड़ी का सपना पाले प्रेमी कहार बन जाता है
चलता फिरता हर सिरफिरा, फनकार बन जाता है: देवेश तिवारी अमोरा


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उनकी प्रेमीका सजा दी जाती है चांदी के मजारों में

यूं तो प्यार नहीं बिकता है कभी हाट बाजारों में 
लेकिन फेरीयां लगाए जाते हैं वित्तिय त्योहारों में
कलाम पढ़ना प्यार पर अलग बात है प्यारों
बेफिजुल नहीं खुदखुशी की खबरें पढ़िए अखबारों में

टप टप बहते रहते हैं आंसू पतझड़ में बहारों में
काफी कुछ लिखा होता है आशिक की दिवारों में
बिना कफन के सड़कों पर दिख जाते हैं आशिक
उनकी प्रेमीका सजा दी जाती है चांदी के मजारों में : देवेश तिवारी अमोरा
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अल्लाह से आयातों में बस यही फरीयाद करता हूं

खाक में मिल जाए मेरा वजूद मुकद्दर भले न मिले
जीतकर हार जाएं हम तमगाए सिकंदर मिले न मिले
परस्तिश में हर बार झुकेगी गैरत हमारी 
फानूस करेगा हिफाजत आश्ना बदअख्तर मिले न मिले 

पर्तों पर्तों को सजाकर अब बुनियाद करता हूं 
जब जब तेरी उन बातों को मैं याद करता हूं
अता हो जाएं उनके अल्फाज कुरबत से निकलकर
अल्लाह से आयातों में बस यही फरीयाद करता हूं : देवेश तिवारी अमोरा 

फानूस: चिमनी का कांच,आश्ना: प्रेमी, बदअख्तर: अभागा, परस्तिश: प्रार्थना

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लेकिन जुबां पे फिर से कलाम आ गया 

अंधेरी रात छंट गई, और सवेरा हो गया
कभी न था जो मेरा,अब वो तेरा हो गया
कहते हैं दोस्त उनके, अब देखकर मुझे
देखो कहां से फिर वही, बदनाम आ गया

रोशनी में नहाकर, निकली है ये बारात
तारे चमक रहे हैं,मेरी खातिर सारी रात
नकारा कहा था उसने, मैं काम आ गया
उनकी जुबां में फिर से मेरा नाम आ गया

आंसू भी कम पड़ेंगे, आंखो में उनके बाद
खुश हूं यही मैं सोंचकर कि वो हुए आबाद
सोंचता हूं फिर न आए मुझे उनकी याद
लेकिन जुबां पे फिर से कलाम आ गया : देवेश तिवारी अमोरा


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बेवजह बेवक्त दर्द, मुझसे सहा न जाए 

तेरे मेरे दरम्यां कैसी ये दूरीयां हैं
यूं तेरा सितम, क्या मजबूरीयां हैं
अब तेरे बगैर भी मुझसे रहा न जाए 
बेवजह बेवक्त दर्द, मुझसे सहा न जाए 

तेरे सुर्ख होठों पर, अल्फाज वो नहीं हैं
चाल बदले लगते हैं, अंदाज वो नहीं हैं
इन फरेबी आंखो में मुझसे बहा न जाए 
बेवजह बेवक्त दर्द, मुझसे सहा न जाए 

बरबादी का जश्न मनाने चली आना
उनकी दुआओं के बहाने चली आना
तेरा नाम पर नज्म,मुझसे कहा न जाए
बेवजह बेवक्त दर्द, मुझसे सहा न जाए : देवेश तिवारी अमोरा



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अपनी खुशी की खातिर सही वो, कुछ झोपड़े बरबाद करेंगे:

जीता हूं जींदगी कि कल की सुबह कुछ खास लेकर आएगी
खुशियों का गुलिस्तां मेरे नसीब के आसापास लेकर आएगी

खुशी है जिन्हें चाहती हैं वे,आज वह शहजादा उनके करीब है
कोई जाकर कह दे दिलवाले हैं हम , मगर निहायत गरीब हैं

खुशी है सोने के मजार पर सोएंगे वो मगर कुछ याद करेंगे
अपनी खुशी की खातिर सही वो, कुछ झोपड़े बरबाद करेंगे: देवेश तिवारी अमोरा


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समृतियों से मिटाने कुछ पल,एक काल्पनीक शहर चाहिए 

कौड़ीयां जोड़ बनाया था छांव
हवा ने सबकुछ तोड़ दिया
फिर बौखलाए उम्मीदों ने
आंधी का रूख मोड़ दिया 

भंवरे को चाहिए थी इजाजत
आसपास मंडराने से पहले
सीख लीया करना रसपान
जाहिल कहलाने से पहले

हर ऋतु में खुशमिजाज हूं
मगर हर रात में शर्मिंदा हूं
हां हूं मैं पर्याय पशोपेश का
मगर प्रेमग्रंथों, का पुलिंदा हूं

समृतियों से मिटाने कुछ पल
एक काल्पनीक शहर चाहिए
मुखौटा थामे चेहरों को
हमें समझने बस नजर चाहिए : देवेश तिवारी अमोरा


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तू मूरत हो दरबारों की,मैं विप्लव का सिपाही हूं

न बंगला है न गाड़ी है
न मैं शोखमहल का शहजादा
सतरंगी विलासीन शहर में
सब वजीर और मैं प्यादा

हैसीयत इतनी भी नहीं 
कि खुशियां तमाम जुटा पांउ
नहीं मिला कोई राजखजाना 
स्वर्ण आभूषण लुटा पाउं

कुछ है तो छोटा सा दिल है
तुम कह लो मैं अभागा हूं
चटकाए चट लूट जाउंगा
कोमल रेशम धागा हूं

तुम रंगकर्म की भावभंगिमा मैं
पटकथा का काला स्याही हूं
तू मूरत हो दरबारों की
मैं विप्लव का सिपाही हूं : देवेश तिवारी अमोरा


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आपकी खुशी की खातिर हमें ये वक्त भी गवारा होगा 

जश्न होगा बाजे बजेंगे, शहर रोशनी से नहाता होगा
तब दूर सन्नाटे में बैठकर कोई आंसू बहाता होगा

किसी को चमचमाती रोशनी में महफील प्यारा होगा
किसी को अंधेरों में चांद तले तन्हाई का सहारा होगा

शमशान किनारे जुगनुओं संग उस रात गुजारा होगा 
आपकी खुशी की खातिर हमें ये वक्त भी गवारा होगा : देवेश तिवारी

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ऐसी विरह कहानी न मिलेगी :

जीने को तो हम भी किसी तरह
हंस हंस कर जी लेते हैं
जो तेरी याद में झलके आंसू
गंगाजल समझ पी लेते हैं

जीने को यही सहारा 
पावन वसुधा रसपान करो
होम हवन खुशियां कर दो
कलेजा कर्ण सा दान करो 

सबकुछ मिले जीवन में
कभी ऐसी जवानी न मिलेगी
तालाशीए उपन्यासों में
ऐसी विरह कहानी न मिलेगी : देवेश तिवारी अमोरा


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आंसूओं संग गर्दिश में,बस रात कट जाती है

सारी सारी रात जगाकर
उन्हें चैन आ जाता है
भिक्षुक भांति नियती पाकर
अपना दिल पछताता है

रात बितता समय ठहरता
किरणें छट जाती है
आंसूओं संग गर्दिश में 
बस रात कट जाती है

सपने बुनता उनकी खातिर
हृदय जुलाहा है
ईश्वर साक्षी खुद से ज्यादा
उनको चाहा है

हंसता चेहरा रात शबनमी
नजर न लग जाए
शुभम कामना पीछे उनके
शहर न लग जाए

मुस्कान समेटे सुबह सवेरे
पनघट जाती है
आंसूओं संग गर्दिश में
बस रात कट जाती है


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इजाजत हो तो कब्रें भी, हम आबाद करते हैं :

रहती हैं भंवर में वो, मगर अनजान रहती हैं
खुशियों के समंदर में, महज मेहमान रहती हैं
खुश हों देखकर उनको, कई दुखते हुए चेहरे
कलेजा मुंह में रखकर भी वो बेजान हंसती हैं

बाणों के सेजों पर, जब जीवन लगे सजने
विरह शहनाईयों के स्वर हर क्षण लगे बजने
फफकना छोड़ ठहाकों से वो सब बिसराती हैं
जरा भी हो जो महसूस आंखे नम हो जाती हैं

कई कई दौर हैं गुजरे ,सुनामी से जीवन में
अकेले ही खड़ी सह गईं, सबकुछ वो निर्जन में
किसी से भी मदद की खातिर वो कह न पाती हैं
अंतिम से भी अंतिम शोक हंसकर झेल जाती हैं

निश्लल सी हंसी के बीच, विरह की गाथांए हैं
कभी न हो किसी को भी ऐसी कुछ व्यथाएं हैं
खुदा रखना उन्हें महफूज हम फरीयाद करते हैं
इजाजत हो तो कब्रें भी, हम आबाद करते हैं : देवेश तिवारी अमोरा



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हम पागल प्रेमीयों के राज्य में सम्राट हो गए 

आज छलक पड़ा दर्द का समंदर, आंखो के रास्ते
जिंदगी जिंदादीली से जीने की तम्मनाओं के वास्ते

सब जीतकर, कुछ हारने का अहसास दूर हुआ है
गलियों का आवारा किसी दिल में मशहूर हुआ है

माना जिंदगी का निर्वात उनके बिना पूरा न होगा
मगर हां, किस्सा पाकिजा प्रेम का अधूरा न होगा 

दुखों का अब घोंट बनाकर जहर घूंट सा पीता हूं 
अब शिकवा नहीं समय से सब हारे मैं जीता हूं

आज निराशाओं में दुबककर दर्द, बेरहम सो गया
अब जीने हो हंसता चेहरा उनका मरहम हो गया

हृदय में उनके हमारी लौ जले न जले
साथ हमारे साया, उनका चले न चले
हांथ की लकीरों से बढ़कर हम ललाट हो गए
हम पागल प्रेमीयों के राज्य में सम्राट हो गए : देवेश तिवारी अमोरा


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वो हंसकर कह रहे हैं कि, मरते हैं यूं दिवाने 

हमेशा दिल ये रोता है
जब जब याद आती है
अंतिम क्षण लगे जीवन
कि जब बरसात आती है
मोहब्बत की तपीश में देखो जल रहा हूं मैं 
उधर डोली लगी सजने हथेली मल रहा हूं मैं 

हिकारत सह के सारी उम्र
उन्हें हम याद करते हैं 
खुदा रखना उन्हें महफूज
लो हम फरीयाद करते हैं
जनाजा उठ रहा है अब, बाराती भी लगे जाने
वो हंसकर कह रहे हैं कि, मरते हैं यूं दिवाने : देवेश तिवारी अमोरा


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शर्मिंदा न हो प्यार हम अफसाना गढ़ते हैं

इंतजार की मालाएं हम बुनते ही रह गए
टुकड़े कुछ शीशों के चुनते ही रह गए 
न आए अमावस में भी हिकारत जीत गई
और उम्मीदों के साए में ही रात बीत गई

चांद तारों का वादा माना वादाखिलाफी था
उनके लिए पाकीजा मोहब्बत नाकाफी था
अमीरी का आईना अगर काला नहीं होता
दिल की सियासत का दीवाला नहीं होता 

उस रात अगर गलियां वीरानी न होती
उत्सवों में शोकाकुल ये जवानी न होती
इतिहास न बनती मुकम्मल आशिकी
बेनामी अनसुलझी मेरी कहानी न होती

टूटकर बिखरकर, कलेजा कुछ कहता है
खून का कतरा कतरा जियालत सहता है
शर्मिंदा न हो प्यार हम अफसाना गढ़ते हैं
मुकम्मल हो प्यार जमाने का हम कविता पढ़ते हैं। : देवेश तिवारी अमोरा


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हो गए 23 पूरे

क्या किया हासिल कुछ याद नहीं 
क्या गुम हो गया कुछ याद नहीं
फिर क्या क्या हुआ इन 23 सालों में
कैसे चेहरे पर बाल उग आए और
कृतिम ऐनक मेरे आंख बन गए
आईना वही रहा घर का 
बस देखने के लिए अब उछलना नहीं पड़ता
दोस्त आज भी हैं 
बड़कापारा से बाजपेई मैदान वाले
इन 23 सालों में लम्हा लम्हा कुछ सीखा
घुटने की चोट और माथे की पेशानीयां
ऐसे ही नहीं दिखाई पड़ते
सार है इन सालों का हंसी आंसू का
काकटेल भरा है अंदर तक
आत्म मंथन करूं तो दावन अधिक
निकलेंगे कम भगवान ही भीतर से
हर पल को जिया और जीना है आयु भर
सहना है सबकुछ जो आएगा 23 के बाद
रफ्ता रफ्ता बाकि जिंदगी भी गुजर जाएगी
हमसफर रास्तों में बसेरा तलाशेंगें
हंसता ही मिलुंगा सितारों मैं हमेशा
फिर मिले तो नया सवेरा तलाशेंगे : देवेश तिवारी अमोरा


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हम फार्दस डे पर ही पिता को याद करें ऐसा जरुरी तो नहीं। 
खुद खोकर बिछौना जो पलकें बिझाए 
जो अपनी खुशी को हर दिन भुलाए
बस आंसु न आएं कभी आखों में मेरी 
वो मेरी ही खातिर बस दुआएं सजाए 

कैसे करूं तेरा सतकार पिताजी 
मैं कैसे चुकाउं उपकार पिताजी 

कर कांधे सवारी जो दुनिया को देखा
जो उंगली पकड़कर चलना था सीखा
पीपरमेंट मिठाईयों से जेंबें भरी थी
वो दिन ना आया जब मैंने हो चीखा

सर को झुकाउं हर बार पिताजी
मैं कैसे चुकाउं उपकार पिताजी

तेरे पांव में गंगा और बांहों जमजम
है आंखो में समाए तेरे अश्को गम
बेचकर अपनी खुशी दी थी तुमने
हर यादें कर जांए आंखे मेरी नम

याद आया खिलौनों बाजार पिताजी
मैं कैसे चुकाउं उपकार पिताजी

कभी जो मेरी गर जुबान डगमगाए
खुदा ना करे तेरा दिल जो दुखाए
शिशु समझकर माफ करना मुझे तुम
हो तुझसे कभी दुर वो दिन ना आए

मैं कैसे भुलाउं वो प्यार पिताजी
मैं कैसे चुकाउं उपकार पिताजी : देवेश तिवारी अमोरा


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22 April तुझे भी तरस न आया, अपने बन्दे की फरीयाद पर 

आज भी तेरी इन अदाओं पे हम कुरबान हैं
और आज भी तु हमारी वफा से अनजान है
तड़प सीने की कैसे बुझती है भला बता दे 
बिन तेरे लगता है अब तो मरना भी हराम है

बेशरम ही सही तेरे लिए दिल धड़कता तो है
अकेले में सन्नाटे में, हर पल कसकता तो है
खुशी तो तुम्हें इसलिए होनी चाहिए कि,
तेरी गली आज भी एक पागल भटकता तो है

गरूरे हुस्न में मदहोश तू हमेशा ही इठलाती है
मिलना तो दूर हमारे ख्याल से घरबराती है
चौखट पर कुछ सिक्के गड़ा दिए हमने
बता फिर भी, तेरी रूह अंदर, कैसे आती है

आंसूओं की, हर बूंद में तेरी, सतरंगी परछाई है
कानों में गुंजती तेरी आवाज में सैकड़ो शहनाई है
हमने तो याद किया हर मौसम में हर राह में
राहें दिखाकर यूं रूठ जाना, बता कैसी रूसवाई है

झोली भरी उनकी तुमने, छीनकर जज्बात मेरे ईश्वर
किस मुद्दत से मांगा था हमने अपने हांथ फैलाकर
खूब तोड़ा सबने मिलकर महल मेरे सपनों का
तुझे भी तरस न आया, अपने बन्दे की फरीयाद पर : देवेश तिवारी अमोरा


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कैसे भुला दें 
दोपहर की धुप में तेरा घर से निकलना
चिलचीलाती गर्मी में हमारा राह तकना

वो पल, तुम थी मै था, जहां की बातें थी
तुम्हारी जुबां पर मेरे लिए फरियादें थी

यादों के सहारे अब तो दिन कटने लगे हैं
जींदगी के बचे साल हर रोज घटने लगे हैं

आंखो को तेरे दिदार की तालाश रहती है
दिल को बस मिलने की आस रहती है

बेमन ही सही कभी मुझे याद कर लेती
उजड़े हृदय को तु कभी आबाद कर देती

तेरी बेरूखीयों को हंसकर, दिलेरी की माफी है
जीने के लिए तू न सही, तेरी यादें काफी है : देवेश तिवारी अमोरा


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तेरी तस्वीर की खातिर उन्हें बस सी रहा हूं मैं 


पिलाना गर जहर ही था तो पहले कह दिया होता
तुम्हारी थाल में सजाकर कलेजा रख दिया होता
धोखे में हमें रखने की जरूरत क्या थी बतला दो
जो मांग लेती मेरी जान, तो हंसकर दे दिया होता 

तेरी फरमाईश होती तो सब कुछ हार जाते हम
दिल पहले ही हारा था जान भी हार जाते हम
समंदर में डूूबाने की जरूरत क्या थी बतला दो
जो कह देती न जाओ क्यों समंदर पार आते हम

क्यों छीना हमारा चैन जबकि प्यार कभी ना था
क्यों किया फरेब हमसे कहकर यार कहीं ना था
छिपाया था तुमने क्या बता अपने हथेली में
मरहम ही नहीं था तो दुखाना जख्म अभी ना था

शायद यादें तेरी अब चिता तक साथ जाएगी
तेरे दिदार को उड़कर चिता से आग आएगी
न आना मेरी मैय्यत में तुम आंसू बहाने को
तेरी पुकार सुनकर के सब लाशें जाग जाएगी

की थी तुमसे यारी तो निभाना सीख लेते हम
न आता था सलीका तो वह भी सीख लेते हम
धीरज था नहीं तेरे, फरेबी दिल में तब प्रेयसी
तुम विश्वास तो करती हर जंग जीत लेते हम

तेरे इंतजार में शायद अब भी जी रहा हूं मैं
हलाहल घूंट भरभर के अब भी पी रहा हूं मै
सहेजे थे हमने खुद कुछ चिथड़े कलेजे के
तेरी तस्वीर की खातिर उन्हें बस सी रहा हूं मैं : देवेश तिवारी अमोरा



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कैसी पहेली थी जो हमसे सुलझाई न जा सकी

तुम्हें पलकों में रखें या तुम्हें नजरों से गिराएं
तुम ही बतला दो हमें , हम वफा कैसे निभांए 
जो तुम्हें गैर के सीने में ही ठंडक मिली है 
मौत न मांगे, तो बता दो घर कैसे सजाएं

कंठ तो खोल तेरे होठो से सच बह जाएं
इतनी ताकत तो मिले हर गम हम सह जाएं
इक तेरे हुस्न का ही है चर्चा कोने कोने 
वो महिफल तो बता जहां तेरी यादें ठहर जाएं

अब तो हम जी भी रहें हैं, तो बस तेरी खातिर
बिजली गिराने में इक तू ही है जो है माहिर
ऐसा कुछ न था जो तुमसे छिपाया हो हमने
कुछ है तो बता जो अब तक न हुआ हो जाहिर

ऐसी क्या चीज थी जो हमसे कमाई न जा सकी
हर सितम झेलकर जो हमसे निभाई न जा सकी
अब तेरे नाम से भी बिन चोट लहू बहने हैं लगे
कैसी पहेली थी जो हमसे सुलझाई न जा सकी : देवेश तिवारी


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जैसा भी सही नीम अलग रंगत दिखा रहा है 

मोहब्बत का नीम पेंड़ अब,हरा हो रहा है
कड़वाहट छोड़ बीज अब मधुरता बो रहा है
छाया पहले से कहीं ज्यादा शीतल लगती है
नफरत की आग इनकी अब धीमे सुलगती है
लगता है हमें नीबोली का, स्वाद भा रहा है
जैसा भी सही नीम अलग रंगत दिखा रहा है : देवेश तिवारी

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लड़कपन से बुढ़ापे तक का साथी कहां से ढुंढ लाओगी 

उन्हें क्या कद्र प्यार कि छीनना जिनकी फितरत है
वे चाहत क्या जानें जिनका हरदम शौक नफरत है

हम उनसे दुआओं की फरमाईश क्या करें 
जो दिल में हिकारत के दरबार लगाए बैठे हैं 
हम उनके सामने जख्मों कि नुमाईश क्या करें 
जों अपने हथेलियों में नमक दबाए बैठे हैं

क्या हो परवाह उन्हें, हमारी पलकें नहीं सोती हैं
क्यों हो उन्हें तकलीफ,जो हमारी अकांक्षांए रोती हैं

जैसे किचड़ में किचड़ से कमल खिल रहा है
वैसे पीड़ा को, पीड़ा से दिलासा मिल रहा है

उन्हें पता नहीं यहाँ से रुकसत कब कौन हो जाए
और जिंदगी की टिक—टिक, बस मौन हो जाए

तब हम नहीं होंगे तो हंसकर किसे सताओगी
सोलहश्रंगार करके कहर किस पर बरसाओगी
तुम्हारे यौवन पर मिटने वाले हर राह में मिलेंगे
लड़कपन से बुढ़ापे तक का साथी कहां से ढुंढ लाओगी : देवेश तिवारी


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मत आना वापस, हमारे दोस्तों में कोई कमी नहीं है 

जो आँखों ने ही कह दिया फिर इजहार क्या करना 
जो सामने हो कश्ती फिर समंदर पार क्या करना 
जो भीख में मिल जाये उसे स्वीकार क्या करना 
जो न समझ पाए आपको उनसे प्यार क्या करना 
हमसे दूर जाकर उनकी आँखों में गर कोई नमी नहीं है 
मत आना वापस, हमारे दोस्तों में कोई कमी नहीं है : देवेश तिवारी

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सुबह पंखे से लटकता, रोज किसी का प्यार मिलेगा :

अब तो प्यार शुरु होता है शॉपिंग मॉल के लॉन में 
कोई तुक नहीं रहता है आज जानू लवयू जान में 

अब तो प्यार के सारे झरोखे उल्टे होकर बहते हैं
हर मिनीस्कर्ट के दील में कई जींस वाले रहते हैं

निश्छल प्रेम तो केवल राधा मिरा को मुनासीब था 
अब तो प्यार की आड़ में कई धार खींचते रहते हैं

मौका मिला तो खंजर सीने के सीधे आर पार मिलेगा 
सुबह पंखे से लटकता, रोज किसी का प्यार मिलेगा : देवेश तिवारी

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किसी के आने-जाने की अब परवाह नहीं करता 

मुझे आंसुओं के सैलाब में, बहना नहीं आया 
कुछ बातें ऐसी भी थीं मुझे कहना नहीं आया 

जो दावा करते थे मुझे समझने का तो इशारे की काफी थे 
क्यों लगाते हो इल्जाम मुझपर रूठ जाने का 
तब भी दाग थे शायद तुम्हारी नियत में 
वरना अफ़सोस तो जताते साथ छूट जाने का 

जिंदगी चार दिन की है आखिर में मुलाकात होगी 
फिर तपती दोपहरी या अमावस की रात होगी 
मैं तो अंधेरे में भी तुम्हारी आहट पहचान लूँगा
तुम पहचान लेना मुझे तब कोई बात होगी

एक दरिया खून का मेरी प्यास बुझाता रहा
मैं अपने ही लाल रंग से धार बनाता रहा
झेला है इतना दर्द की अब आह नहीं करता
किसी के आने-जाने की अब परवाह नहीं करता : देवेश तिवारी


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मेरी बिछड़ी जाना तुमसे, बहोत मोहब्बत करता हूं 

क्यों इल्जाम लगाम लगाऊं तुमपर, क्या तुमने अपराध किया है 
बस अपनी खुशियों की खातिर, गैर का दामन थाम लिया है
फिर मुझपर क्यों ठहरी नजरें, इसका कोई जवाब तो दे 
तुझे भूलाकर नशा करा दे , ऐसी कोई शराब तो दे 

तू ही कतल आ कर दे मेरा, यही तमन्ना रखता हूं 
मेरी बिछड़ी जाना तुमसे, बहोत मोहब्बत करता हूं 

इन पलकों पर तेरे आंसू, क्यों रहते हैं ये तो बता 
तेरी यादों के बादल यूँ , क्यों मंडराएं ये तो बता 
तू खुश है तो मै भी खुश हूं , चाहे ये हो कोई सजा
फिर चाहे मुझे मौत मिले, तेरी खुशी और तेरी रजा

तू ही आकर जहर पिला दे, आखरी ख्वाहिश रखता हूं
मेरी बिछड़ी जाना तुमसे, बहोत मोहब्बत करता हूं

डोली वाली सुन तो जरा, मुझ पर तू विश्वास तो रख
जाना है तो शौख से जा, मेरा कलेजा साथ तो रख
तेरी यूं उखड़ी सी अदांए , मैं तो सह ना पाऊंगा
तेरे गली के नीम तले, मैं तड़प-तड़प मर जाऊंगा

तेरी खुशीयों पर आंच न आए, यही गुजारिश करता हूं
मेरी बिछड़ी जाना तुमसे, बहोत मोहब्बत करता हूं

तेरी गली के गुलमोहर में , फिर से बहारें आई हैं
मेरे बगिचे की कलियाँ क्यों, आज भी यूँ अलसायी हैं
तेरी अदांओ को कातिल मैं , कैसे बिसराऊं ये तो बता
अपने ही खंजर को सीने में, कैसे बुझांऊं ये तो बता

तुझको खुशियों का बाग मिले, मैं यही तमन्ना रखता हूं
मेरी बिछड़ी जाना तुमसे, बहोत मोहब्बत करता हूं

:देवेश तिवारी

वेलेंटाईन डे पर दोस्तों के लिए लिखी यह कविता 


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 खुद को सड़कों पर बिछा सकता हूँ मैं

तुम्हे मेरी मोहब्बत का एहसास हो, न हो 
तड़पते मेरे दिल की तुम्हे परवाह हो, न हो

तेरे जाने से जो वीरानी छाई , वह जीने नहीं देती 
तेरी समझाईश और नसीहतें मुझे पिने नहीं देती 

तेरे आने की कशिश में सजी पलकों को बता, मनाऊँ कैसे
अरमानो की उजड़ी फुलवारी में, बता, फूल खिलाऊं कैसे 

दिल पे चुभते सूलन में कुछ तो बात है हिम्मत जवान हो जाती है 
भरी महफ़िलऔर दिलअज़ीज़ दोस्तों के बिच तेरी याद तड़पाती है

राँझा, मजनू महिवाल की तरह चाँद-तारे तोडकर, नहीं ला सकता हूँ मैं
मगर तेरी राह से कांटे हटाने, खुद को सड़कों पर बिछा सकता हूँ मैं


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पूनम की चाँद हैं बस आएँगी चली जाएँगी

स्मृतियों की धुंधलाती यादें निकलकर सामने छा जाने को है 
और आज की अनचाही खुशियाँ पुरानी यादों में धुंधलाने को है 

कुछ बातें कहना सुनना उसकी ही यादों में खोकर जीना बड़ी चाहत है 
अकुलित होकर डबडब आँखों से खुशियाँ छलकाना भी बड़ी आफत है 

बड़े खुश हैं वो वो जिन्हें हंसना हमने सिखाया था 
तब हमारे जीवन में भी आंशिक उनका साया था

क्या कुसूर था पूछा नहीं हिम्मत जवाब दे जाती थी 
वो ही अक्सर उलझन लेकर सामने चली आती थी

क्या पता कभी सामना होगा अब भी कुछ बातें बाकि है
संक्षिप्त जीवन की बारहमासी दास्ताँ सुनाना बाकि है

वो पल भी कहने हैं जो अक्सर चिरागों से मैं कहता था
उस कहानी को सुनकर वह भी हंसहंस रोकर जलता था

क्या कुछ नहीं धरती पर फिर भी ख़ामोशी गहराती है
क्या बताएं फेसबुकिया मित्रों हमें किसकी याद जलाती है

एक पल को भी दीदार हो जाये तो चाँद देर से निकलता है
अगर कुछ बातें हो जाये तो भोर का सूरज अंदर छिपता है

अब तो यही काली रातें हमेशा साथ निभाएंगी
वो तो पूनम की चाँद हैं बस आएँगी चली जाएँगी

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 खोया हारा देवेश तिवारी क्या करेगा

क्या कहें उलझन की बदरी इस कदर छाई है 
पुरनम आँखों में दूर तलक पसरी तन्हाई है 

कोई चरागां इस बुझे दिल में जले तो जले कैसे 
खुशियाँ आक्रांताओं के आंगन में पले तो पले कैसे

जाने कितनी खुशियाँ आकर दहलीज पर लौट जाती है 
खुशनसीब वो हैं जिन्हें यार की बस्ती में मौत आती है

हम तो आज भी किनारे पर ज़लज़ला थमने के इंतजार में हैं
नहीं पार होती उन्मादी दरिया वह भी समंदर के प्यार में हैं

रौशनी की तलाश में कुछ पूरी-अधूरी, मेरी जिंदगी चली जा रही है
बेगैरत जुबां पर आहट न पाकर, ये गैरतमंद जिंदगी मरी जा रही है

बिना मूरत के देवालय में भला पुजारी क्या करेगा
धुंधली तस्वीरों में खोया हारा देवेश तिवारी क्या करेगा

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कंधा शामिल हो उनका

कोई रूठा सा है
उनकी अंगुलियों से मेरा हाथ छूटा सा है
तन्हाईयों में सहारा था जिनका कंधा
मेरे सिराने का वह पांव अनूठा सा है
मेरे कर्मों में हर हुक्म तामिल हो उनका 
मेरे जनाजे पर एक कंधा शामिल हो उनका : देवेश तिवारी अमोरा
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सुख:दुख के दोस्त चार हुआ करते थे

उस समंदर के किनारे अब खुद तड़पते हैं
जो कभी हमसे गुलजार हुआ करते थे
नड्डा गुब्बारे चाट खटाई बांसुरी सब रूठ गए
जिनकी चौखट पर हम बहार हुआ करते थे
हजारों की बीच भी मन अकेला है आज
कभी सुख:दुख के दोस्त चार हुआ करते थे : देवेश तिवारी अमोरा

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