Friday, February 17, 2012

राजिम कुंभ: संत समागम या पीआरओ सम्मलेन


अभीअभी राजिम कुंभ से लौटा हूं। बहुत कुछ देखने को मिला, लेकिन जिस नज़ारे ने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया वह आपसे बांटता हूं। राज्य सरकार राजिम कुंभ के नाप पर करोड़ो रूपए क्र्यों खर्च करती है इसका सच भी यहां आकर साफ हो गया। राजिम कुंभ के मेले में प्रवेश करने से पहले रायपुर पार करना होगा, रायपुर के सभी चौक चौराहों में राजिम कुंभ के प्रचार प्रसार के लिए साधु संतों के साथ राज्य के संस्कति मंत्री (डालर में घूस लेने वाले मंत्री) ब्रजमोहन अग्रवाल की साधुओं से तीन गुनी बड़ी तस्विर विभाग के पैसों से खर्च कर लगाई गई है। इन्हें पार करने के बाद जब आप राजिम पंहुचते हैं| राजिम में नदी घाट से पहले ही आपको बिजली के दुरुपयोग की बानगी कहता तारों के समान चमकदार टयूबलाईट का प्रकाश देखने को मिलता है। अंदर प्रवेश करते ही मंच के पहले भाजपा के स्थानीय नेताओं की लगाई गई बड़ी बड़ी होर्डिंग्स देखने को मिल जाएगी। इसे देखने के बाद आपको वापस नहीं लौटना है यहां का द्रश्य भले ही भाजपा की रैली के समान दिखाई दे लेकिन कुछ पैसा मेले के लिए भी खर्च किया गया है, इसे भी आपको ही देखना है।
      अब सारा तामझाम देखने के बाद मुझे नागा साधुओं से मिलने की इच्छा हुई क्योंकि वे पिछले साल के आपसी झगड़े के बाद से फार्म में आ गए हैं और राजिम कुंभ का मुख्य आर्कषण बने हुए हैं। पहले तो गार्ड ने हांथ में कैमरा देखकर अंदर घूसने नहीं दिया। जैसे तैसे दिवार कूद-फांद कर आखिर अंदर पंहुचना हुआ यहां बैठे एक नागा महाराज से मिलकर मुझे लगा जैसे दिवार कूदना निर्रथक हो गया। पूरे नज़ारे को समेटकर कहूं तो, अब नागा साधुओं में आर्कषण या साधु जैसी बात देखने को नहीं मिली। सभी साधुओं ने ठण्ड से बचने अलाव की ताप ले रहे ​थे। साधु संतो की बात सामने आते ही हम प्रवचन और उनकी पुराणिक कथाओं को याद करने लगते हैं। यहां अधिकांश साधु बात बात पर किसी न किसी पात्र को असमाजिक गालियों के सम्बोधन से अपनी गरीमा को भस्म बनाने में लगे हुए थे। आज उनके हांथ में कमण्डल की जगह बीसलेरी की बोतलों ने ले ली है। अधिकांश काले हॉफ जैकेट में नजर आए| जिन्हें हम त्याग और सर्मपण के लिए जानते हैं, और कहते हैं कि, बारहो मास बिना कपड़ों के कैसे गुजार लेते हैं। साधु के पास जाते ही मैने देखा, उनके पास नकली टूटी हुई जटा पड़ी हुई है। जिसे वे कैमरा देखते ही सर पर बांध लेते थे। कैमरे के सामने आते ही उनके बातचीत और कैरेक्टर मे आकस्मात बदलाव देखने को मिला वे बैग से राख निकालकर चेहरे पर तुरंत मलने लगे| बीच-बीच में ध्यान मग्न हो जाते थे| थोड़ी देर में ध्यान तोड़कर खुद ही पोज बताकर कहने लगे, इधर से लो पूरा फोटो आएगा। लोगों की भीड़ जुटते ही वास्तवीक जिवन के रहस्यों को तोड़ती प्रवचन की धाराप्रवाह प्रवचन से बाबा ने साधु होने का बोध कराया| जब हम बाबा के पास पंहुचे तब बाबा किसी जिले के नेता या अधिकारी से फोन पर बतिया रहे थे, हमें इशारे से बैठने को कहा। आध्यात्मिक जिवन के सरताज फोन पर सामने वाले महोदय को जी सर, जी सर के संबोधन के साथ प्रवचन सुनाने में लगे थे। हम भी कहां कम हैं झट से मोबाईल निकाला और विडियो बनाने में लग गए| क्या पता बाद में बाबा झूठ बोलने की बात कहकर श्राप दे दें। इससे भी बड़ी बात बाबा फोन पर सामने वाले महोदय से कह रहे थे कि रमन सिंह का बहुत बहुत धन्यवाद जो इतना बड़ा समारोह करवा रहे हैं। सामने वाले को भाजपा की फिर से सरकार बनने से लेकर पूरी बातें विथ आशीर्वाद भाजपा के पी आरओ की तरह। सारा खेल बनावटी इन्हें देखकर लगा मानो यह संतसमागम न होकर पीआर समागम हो गया हो। साधू संत इन नेताओं से कमसकम अच्छे लगे जिसका खाते हैं, उसका खूब गाते हैं,
      बाबा इतने में कहां रूकने वाले थे| बाबा ने  फोटो लेने के बाद मुझसे कहा:- अच्छे से लिखना मेरे बारे में बच्चा। मैंने कहा बाबा आपका आशिर्वाद मिल जाए तो सच ही लिखता रहूंगा।




बाबाओं ने तोड़ा हठयोग 
राजिम कुंभ 2011 में नागा साधुओं के दो मठों के बाबा आपस में वर्चस्व को लेकर खुनी लड़ाई पर उतारू हो गए थे। बाद में सरकार और पुलिस के बीच बचाव के बाद मामला शांत हुआ। इस साल नागा साधु मेले में सही जगह नहीं मिलने के कारण सरकार से नाराज होकर वापस लौट रहे थे| बाद में मंत्री जी ने हांथपांव जोड़कर इन्हें वापस बुलाया, और बुलाते भी क्यों नहीं, इनसे ही मेले कुंभ का आर्कषण है। बाबा इनके चलते फिरते पीआरओ जो ठहरे। इन बाबाओं के कैम्प के ठीक सामने लगे मंत्री जी के बड़ेबड़े पोस्टर कौन देखता, अगर ये चले जाते। दुख: की बात यह है कि साधुओं को जगह नहीं मिलने के कारण साधु वापस लौट रहे थे तब इनके हठ को देखकर लगा था वापिस किसी हल में नहीं आएंगे| सुना था] योगी हठ, बाल हठ और स्त्री हठ खतरनाक होता है, मनाए नहीं मानते, ये सब। लेकिन बाबाओं ने रुठने के बाद भी म़ंत्री जी के कहने पर जो हठ तोड़ा वह साधुओं और हठयोगियों के सम्मान के तप को तारतार कर देने वाला था। मंच पर बैठै सभी साधुओं ने जितने शब्द धर्म और आध्यात्म पर खर्च नहीं किए उतने शब्द मंत्री जी के यशगान व जनसंपर्क बनाने में खर्च कर दिए। बताइए इसके बाद भी उनके प्रति आपके मन में सम्मान कहां से आएगा। मैनें उन्हें प्रणाम किया और चुपचाप बेरीकेट पार कर बाहर निकल आया। मेले में कॉफी कुछ था देखने को लेकिन मुझे वह देखना बिल्कुल अच्छा नहीं लगा जो सरकार जबरिया दिखाना चाहती ​थी| वह तो बिलकुल भी नहीं जिन्हें राज्य सरकार की झूठी प्रसिद्धयों को दिखाने के लिए जाल की तरह बुना गया था। मेले में कॉफि समय घूमता रहा आसपास का माहैाल देखा और वापस लौट आया
 जो मेरे मन ने कहा, वो यह कि,  अब साधु भी देश दुनिया में देवताओं का नहीं, ख्याती के लिए नेताओं का यशगान करते हैं।अब साधुओं की पीठ पर भी फूल व पंजा के निशान देखने को मिलने लगे हैं। 



क्या कहें सर्वे भवन्तु सुखिन: साधु भी खुश रहें उनके मोबाईल में सदा टावर रहे। उनके प्रचार से रमन सिंह के पास हमेशा पावर रहे। अधिकांश  साधु-संत राजनीतिक पार्टीयों और मंत्रीयों के भोंपु हो चले हैं। खैर ये भी ठीक है भारत में साधु संतो की राजनीति में पदार्पण कौन सी नई बात है।राजनीतिक पार्टियों और लंबे फंड से किसे प्रेम नहीं है। साधु संतो के बारे में नहीं लिखना चाहिए लेकिन हकीकत देखकर भी अंधा गुंगा बन जाऊं यह मुमकिन नहीं। : देवेश तिवारी 

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