Wednesday, February 15, 2012

अब परवाह नहीं करता

मुझे आंसुओं के सैलाब में, बहना नहीं आया 
कुछ बातें ऐसी भी थीं मुझे कहना नहीं आया 

जो दावा करते थे मुझे समझने का तो इशारे की काफी थे 
क्यों लगाते हो इल्जाम मुझपर रूठ जाने का 
तब भी दाग थे शायद तुम्हारी नियत में
वरना अफ़सोस तो जताते साथ छूट जाने का

जिंदगी चार दिन की है आखिर में मुलाकात होगी
फिर तपती दोपहरी या अमावस की रात होगी
मैं तो अंधेरे में भी तुम्हारी आहट पहचान लूँगा
तुम पहचान लेना मुझे तब कोई बात होगी

एक दरिया खून का मेरी प्यास बुझाता रहा
मैं अपने ही लाल रंग से धार बनाता रहा
झेला है इतना दर्द की अब आह नहीं करता
किसी के आने-जाने की अब परवाह नहीं करता : देवेश तिवारी

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