Sunday, January 1, 2012

पिताजी मेरी अनकही आवाज....: देवेश तिवारी



पिता जी मै आभारी हूँ आपका, आपके कारण मुझे जीवन मिला
इस खूबसूरत दुनिया के पोखर में, एक नया कमल खिला 
मेरी हर चीज पर आपका अधीकार है
आपका हर आदेश मुझे हंसकर स्वीकार है

आपने मुझे पढाया अब तक, मुझे नई दिशा दिखाई
मेरे कारण आपने अपने, शौक से भी कर ली लड़ाई
आगे कुछ और दिन भी, आप मेरा साथ दे दीजिए
थोड़ा अपने ख्वाबो से, आप भी समझौता कीजिये

पिता जी आपकी परवरिश का मै, पूरा कर्ज चुकाऊंगा
आप न भी कहें तो ताउम्र आपके, हर रात पांव दबाऊंगा
मै अपनी रूचि से कुछ करना चाहता हूँ, वो मुझे करने दीजिए
बगावती स्वर नहीं बोलूँगा, सोंचने भर के लिए क्षमा कीजिये 

आप कहें तो मैं आपके, पुरे सपने साकार कर दूँगा
सारे जंहा की खुशियों से, झोली आपकी भर दूँगा
मगर आपकी सोंच ,इस तरह मुझ पर मत थोपीये
कुछ अलग करना चाहता हूँ मैं ,बेटा बनकर जरा सोंचिये 

मै कलाकार बनूँगा या फौजी, चित्रकार पत्रकार या, कुछ और भी
मुझे डाक्टर इंजीनियर मत बनाइये, दुनीया में है, काम और भी
करूँगा खेती अनाज उगाउँगा, भूखे  पेटों की प्यास बूझाऊंगा  
डाक्टर इंजीनियर अधिकारी ना सही, उन्नत किसान तो बनकर दिखाऊँगा 

देश की रक्षा करनी है मुझको, मुझे सीमा पर लहू बहाना है
माँ के दूध से भी  बढ़कर, माटी का कर्ज चुकाना है
पत्रकार बनकर लोगों की खातिर, लोगों से मुझको लड़ना है
समाज सेवा करते करते ,मुझको भी आगे बढ़ना है

क्या हुआ पिता जी जो, पड़ोसी जिलाधीश बन गया
चाचा की बेटी डाक्टर, और भाई इंजिनियर बन गया
मै भी कुछ करके आपका, सर फक्र से उठाऊँगा
कुछ नहीं बन पाया फिर भी, अच्छा इंसान बनकर दिखाऊंगा

आपके दबाव पर मै, यह अरुचिकर पढ़ाई करता हूँ
दिन रात किताबें चाटकर भी मैं, दूसरे पायदान पर रहता हूँ
मुझे रूचि नहीं इस पढ़ाई में मै, भीतर ही भीतर रोता हूँ 
आपका मनीमशीन बनने की खातिर, इस पढ़ाई को ढोता हूँ

सोंचता हूँ एसी मंजिल से ,राह भटक जाना ही अच्छा
जिल्लत उबाऊ इस जिंदगी से, मेरा मर जाना ही अच्छा
रुक जाता हूँ यही सोंचकर, कभी तो ये हालात बदलेंगे
मेरी जुबान पर दबी आवाज को, इशारों से ही आप समझेंगे

पिताजी आपका बेटा हूँ, आपके खिलाफ नहीं जाऊंगा
घर बाहर  के किसी कोने में, रो रो कर रह जाऊँगा

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