Friday, November 7, 2014

क्या कोई गर्भवति महिला अपने पति को मरता हुआ देख सकती है : देवेश तिवारी आमोरा

क्या कोई गर्भवति महिला अपने पति को मरता हुआ देख सकती है : देवेश तिवारी आमोरा

क्या कोई 4 साल की नन्ही बिटीया अपने पापा को मरते हुए देख सकती है, क्या कोई गर्भवती महिला अपने पती को मरता हुआ देख सकती है। यह सवाल खूब कौंधा जब मैने एक तस्वीर देखी। छत्तीसगढ़ में यदि किसी को एड्स की बिमारी हो जाए तो उसकी मौत समय से पहले हो जाएगी,बेबसी का आलम ऐसा होगा कि परिजन मरीज को तड़पता हुआ देखेंगे, अस्पताल ईलाज करना चाहेगा लेकिन इलाज नहीं हो सकता, वजह मूलभूत सुविधा का अभाव। छत्तीसगढ़ के बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के दावों पर यह करारा तमाचा है कि प्रदेश के किसी भी अस्पताल में संवेदना नहीं है कि एड्स के मरिज का डायलिसिस किया जा सके। सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में सुविधा तो है लेकिन मरिजों की लंबी फेहरिस्त डायलिसि​स की इजाजत नहीं देती।
बिस्तर पर मरीज, परिजनों के पेशानीयों पर चिंता की लकीरें , तस्वीर लाचारी बयान कर करने के लिए काफि हैं। दरअसल नैतिकता मरिज का नाम बताने की इजाजत नहीं देती लिहाजा आपको नाम नहीं बता पाएंगे, इन्हें एड्स है, मरिज के एच आई वी पॉजिटिव होने की बात परिजनों को 15 दिन पहले ही पता चली, मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र राजनांदगांव के रहने वाले हैं। जब एड्स का पता चला तो इलाज के लिए रायपुर पंहुचे। राजधानी के सबसे बड़े अस्पताल रामकृृष्ण में इलाज के लिए भर्ती कराया गया। एच आई वी होने की वजह से इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो गई है। इन्हें टीबी और पीलिया ने अपने गिरफ्त में ले लिया है। डाक्टरों ने सलाह दी की इन्हें तत्काल डायलिसिस की जरूरत है।
डाक्टरों ने सलाह दी लेकिन डायलिसिस करने से मना कर दिया। परिजन की हॉलत दिनों दिन बिगड़ रही है। लिहाजा प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया। यहां भी डाक्टरों ने डायलीसीस कर पेट से कचरा निकालने से इनकार कर दिया।
अस्पताल प्रबंधन की दलील है कि मरीज एच आई वी संक्रमित होने की वजह से इनका डायलिसिस नहीं किया जा सकता। अंबेडकर अस्पताल में डायलिसिस की दो मशीनें हैं। यदि एच आई वी पाजिटिव मरीज का डायलिसिस किया जाता है। तो मशीन को स्टेरलाइज करना होगा, अस्पताल में इसकी सुविधा भी दी गई है। लेकिन डाक्टर रिस्क नहीं लेना चाहते। हर संभव मदद की बात अस्पताल प्रबंधन कर रहा है। लेकिन यह कैसी मदद है जो उपचार की इजाजत नहीं देती। मरीजों की फेहरिस्त लंबी है डायलीसस मशीनें केवल दो हैं। इसलिए अस्पताल प्रबंधन लाचार है।
सामान्य वार्ड में बेड पर लेटा मरीज यमराज की बाट जोह रहा है। इस नाउम्मीदी के साथ की करोड़ो रूपए खर्च करने वाले अस्पताल उनका डायलिसिस नहीं कर सकता। परिजन अपने रिश्तेदार को मरता हुआ नहीं देखना चाहते। लेकिन प्रदेश की स्वास्थ्य वयवस्था के सामने  जिंदा रहने की उम्मीद दम तोड़ रही है।
राजनांदगांव से लेकर राजधानी रायपुर के किसी अस्पताल ने इलाज करने से मना कर दिया है। अब मरीज के परिजन अपने परिजन को 35 साल की उम्र में तिल तिल मरते हुए देखना नहीं चाहते। मरीज की एक बिटिया भी है पत्नि गर्भवती है। और वे खुद बिस्तर पर। किसी परिवार की ऐसी बेबसी देखकर किसी के भी रौंगटे खड़े हो जाएं। लेकिन अस्पताल की बेबसी निर्ममता की सारी हदें लांघने को आमादा है। ऐसे में प्रदेश के सबसे बड़े सदन विधानसभा में मंत्रीयों की चीखचीख कर बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं देने के वादे बेमानी लगते हैं। सवाल यह भी है कि क्या हम किसी मरीज का ईलाज तक नहीं कर सकते। और  क्या हम मरीज की बिटिया को यह विश्वास दिला सकते हैं कि आगे इस तरह कोई मरिज आगे इलाज के लिए मोहताज नहीं होगा। यह सवाल आपसे खुद से और समूचे स्वास्थ्य महकमे से है।



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