कुम्हार की कला अपमानित हुई राज्योत्सव रायपुर में आकर
इस दुनिया में कला की कोई कद्र नहीं है, यह बात राज्योत्सव 2011 में इस तस्वीर ने चरितार्थ कर दीइस तस्वीर में जो आदमी लोगों को पानी पिला रहा है इसका नाम रामलखन प्रजापति है यह सरगुजा जिले के भैयाथान तहसील का रहने वाला है यह राज्योत्सव में सुराही लेकर प्रदर्शनी दिखाने आया था, अब आप सोंचेंगे की इसमें कौन सी नयी बात है नयी बात है ना कि इसकी सुराही आम सुराही से अलग है इसकी सुराही में पानी उपर से नहीं बल्कि नीचे से डाला जाता है जैसा की चित्र 2 में दिखाई पड़ रहा है। और पानी साईड में बने टोटी से निकाला जाता है, खास बात यह है कि टोटी से पानी अंदर नहीं जाता। इसे नहीं पता की इसकी सुराही किस विज्ञान से काम करती है मेरे ज्ञान से इसमें पास्कल का पानी का दबाव नियम काम करता है इसलिए पानी नीचे नहीं बहता। सबसे खास बात की इस सुराही में पानी आम मटके से 3 गुना अधिक ठंडा होता है
समस्याएं हजार है
यह सुराही के लिए मिटटी लेने 6 किलोमिटर दूर पैदल जाता है और जलाउ लकड़ी खरीद कर लाता है। घर में 11 लोग हैं। सभी मिलकर सुराही बनाते हैं एक दिन में 6 सुराही बनाते हैं। पकाने के लिए जलाउ लकड़ी खरीदकर लानी पड़ती हैपैसा नहीं था साहबइसने सुराही की कीमत मात्र 100 रू रखी थी मगर लोग इसकी खुबियां देखकर इसे 200 रू में खरीदने को तैयार थे। मैने भी इच्छा जाहिर की मगर इसने कहा कि मेरे पास दो ही हैं इस समय मेरे पास ढ़ेर सारी सुराही लाने के लिए पैसे नहीं थे। मैं इसे बेच नहीं सकता मगर लोगों को पानी पीला सकता हूं लिहाजा आप मुझे माफ करें।इसकी सुराही सभी को पसंद आयी मगर यह क्या करता बेच देता तो लोगो को दिखता क्या | इसने तो प्रदर्शनी में आने के लिए भी पडोसी से उधार पैसे लिए थे |
किसी ने नहीं की मदद
विश्वसनीय छत्तीसगढ़ राज्योत्सव 2011 में तमाम सरकारी मदद करने वाली संस्थांए थी जो गरीबों के लिए काम करने नाम लेती हैं और सरकार से बड़ी रखम अनुदान ले लेती हैं, मगर किसी की नजर इस गरीब कलाकार पर नहीं गयी न ही किसी पत्रकार ने इसकी आवाज को अखबार में जगह दीं मैने कोशिश की मगर मेरे अखबार में मैं जिस पन्ने पर काम करता हूं उसमें इस तरह की स्टोरी के लिए जगह नहीं थी क्या करता फेसबुक और अपने ब्लॉग पर शेयर कर रहा हूं।
अगर कोई भी सज्जन इस गरीब के माल को शहर के बाजार में जगह दिलाना चाहे तो मेरे नंबर 09827988889 पर संपर्क कर सकता है। सज्जन को मुनाफा मिल जाएगा और गरीब के पेट में दो रोटियां आ जाएँगी ...
भारत ने पुरे विश्व की टीमों को हराकर फाइनल जीता यह निश्चित ही कबीले तारीफ है मैंने भी इस जीता का खूब लुत्फ उठाया .. मगर कहीं न कहीं ऐसा लगता है की इस तरह की जीत से तो हारना अच्छा था ! .. मै देश के अरबों खेलप्रेमियों, माफ कीजियेगा क्रिकेट प्रेमियों से माफी चाहुंगा अगर उन्हें मेरी बात का बुरा लगा हो । बात ही कुछ चींता जनक है ।
पहले तो भारत और पाकिस्तान के बीच हुए मैच की बात करना चाहूँगा । मैच के पहले ही हमने मैच को इस तरह से पेश किया जैसे वह मैच ना हो बल्कि कारगिल की लड़ाई हो । एक समाचार पत्र ने तो बीच में वर्ल्डकप रखकर आजु बाजु दोनों देशों के कप्तानों को बन्दुक लेकर खड़ा कर दिया । मैच के पहले तक लोगों में मैच को लेकर इस तरह का माहौल बनाया गया जैसे इस मैच को नहीं जितने पर भारतीयों पर कहर गीर पड़ेगा । जैसे तैसे भारत मैच जीत भी गया यह खुशी की बात है मगर खुशी जाहिर करने का तरिका बदला हुआ था ना जाने क्यों भारत में आजकल पेट्रोल जलाकर खुशी मनाने का नया ट्रेंड आया हुआ है । क्या अस्पताल क्या वृद्धाश्रम सड़क पर युवाओं की टोलीयां लगातार हार्न बजाते नीकल पडी। सभी पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगा रहे थे कुछ तो मुंह से जाति विशेष के लिए अपशब्द के गुब्बारे छोड़ रहे थे । इतने में भी मन नहीं भरा तो बाईक से टकराकर लड़ाईयां भी करने लगे । क्या यह हमारे खुशी जताने का तरिका है।
भारत और श्री लंका के मैच को तो राम और रावण के युद्ध की तरह दिखाया गया । कई समाचार चैनलों ने धोनी को राम तथा श्रीलंकायी टीम के खीलाडि़यों को रावण के दस सिरों की तरह दिखाया । मोबाईल के मैसेज की अगर बात करें तो दिन भर वल्र्ड कप को सीता माता के अपहरण और उसे वापस लाने के संबंध में मैसेज आते रहे । क्या सही मायने में श्री लंकाई खिलाड़ी रावण की तरह दिखते हैं या उनके कर्म राक्षसी हैं । यदि ऐसा नहीं है तो खिलाड़ीयों को क्यों भगवान , राक्षस की तरह दिखाया गया । इस मैच को भी भारत ने जीत लिया । खेल का उद्देश्य हमेंशा दो देशों के बीच आपसी तालमेल केस बढ़ना होता है न कि साम्रप्रदायिक तौर पर खेल को पेश कर आपसी सदभाव को ठेस पंहुचाना । भारत की जीत पर उन्माद का होना आम बात है मगर अति उन्माद ऐसा भी क्या जो अपने ही देष के लोगों को खराब लगे । उन्माद के पीछे का कारण यह हो सकता है की चैनलों ने मैच को जीने मरने का, प्रतिष्ठा का प्रश्न बना दिया था। मगर कभी हमने सोंचा की वे ऐसा सा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उन्माद जितना अधिक होगा लोगों का उससे सीधा जुड़ाव होगा और बाद में लोगों के इसी लगाव और उन्माद को साबुन और तेल में रैपर बनाकर बेचा जाऐगा और जो खिलाड़ी इस मैच के हीरो बने हैं वे भी विज्ञापनों के माध्यम से मोटी रकम कमानें में कामयाब हो सकेंगे ।
इन मैचों पर सीयासत भी जमकर देखने को मिली जहां एक तरफ पूरे देश में काला धन वापस लाओ , भ्रष्टाचार मिटाओ देश बचाओ की लहर चल रही थी वहीं घोटालों के आरोप से घिरी मनमोहन की सरकार ने मैदान में पंहुच कर निकम्मी सरकार के नजरीये को बदलकर कम आन इंडिया बना दिया । जिस देश में भ्रष्टाचार ,भुखमरी , स्वास्थ सुविधाओं में कमी , कुपोषण, बेरोजगारी , काला धन वापस लाओ जैसे मुद्दे प्रमुखता से छाये हो ऐसे देश का प्रधानमंत्री अपनी मजबुरी का बहाना बनाकर बेशर्मी से हंसता है । और क्रिकेट के मैदान में पंहुचकर देश का ध्यान बंटाने की कोशीश करता है और हम खुशी –खुशी उन्हें माफ कर देते हैं । क्रिकेट मैच जितते ही हमारे अंदर राष्ट्रभक्ति की भावना जाग जाती है बाकि पूरे साल हम इसी देश के विकास का पैसा लूटते रहते हैं ।
क्रिकेट को समाचारपत्रों ने इतनी तवज्जो दी की बाकि खबरें धरी की धरी रह गयी या नियत स्थान नहीं बना सकी । जापान में रेडियो एक्टिव जल समुद्र में घुलने लगा मगर इतनी बड़ी खबर को तीसरे पृष्ठ पर स्थान दिया गया | यह क्रिकेट का उन्माद नहीं तो और क्या है, हे राम अगर आपने ही वर्ल्डकप जिताया है तो आप ही हमारे लोगों को सदबुद्धि दें ...।
(( “ देश के लुटेरे ” )) आपनेसमुन्दर के लुटेरे फ़िल्म जरुर देखी होगी नहीं भी देखा है तो कोई बात नहींमैंने एक फ़िल्म बनाने कि सोची है ये जरुर देखिएगा .. इस फ़िल्म के लुटेरों कि खास बात ये है कि ये अपने ही जहाज को लुटते हैं इसमें तीन लुटेरे हैंवैसे तो लाखो लुटेरे हैं | लेकिन तीन ही मुख्य हैं इसमें एक किरदार अहम हैमगनमोहन उसकी बिल्ली का नाम गठबंधन है यह लुटेरों के जहाज का सेनापति है, जो खुद लुट में खुद शामिल नहीं होता लेकिन चूँकि ये सेनापति है और इसने लुटेरों के साथ गठबंधन किया है इसलिए ये खामोश रहता है |ये कभी हाई स्कुल का छात्र बन जाता है कभी अपनी मजबुरी का बहाना बना कर बच निकलता है अपने जहाज को लुटता देख मगनमोहन बड़ी निर्लज्जता से हस्त भी है | इनका जहाज पर कभी महंगाई के बारिश में फँस जाता है तो ये कहते हैं कि हमारे पास इससे बचने कि कोई अलादीन का चिराग नहीं है जो बड़ी सी छतरी बना दे | ये बारिश पर काबू पा लेने कि बात तो करते हैं लेकिन जिन लोगों ने इनके जहाज को बनाया है वे बड़े ही निकम्मे और बेवकूफ लोग हैं कभी कभार तो जहाज बनाते हैं वो भी शराब , साडी , या किसी दूसरे लालच में | इस कहानी का अंत कभी नहीं होता ये भ्रष्टाचार के लहरों में तैरते रहते हैं और खजाना लुटते रहते हैं हा जो मगनमोहन है उसके सेनापति बनने में उसकी बिल्ली गठबंधन का बहुत बड़ा हाथ है वो दूसरे लोगों को मनाने का कम करती है इस फ़िल्म में एक किरदार है झलमाडी जो समुन्दर में खेल प्रतियोगिता कराता है और अपने ही जहाज का पैसा लुट लेता है , एक किरदार है ए माजा ये लोगों को फोन बाटने का काम करता है और खजाना लुट लेता है और एक किरदार है शोक चंडाल, ये अपने सिपाहियों के लिए घर बनाता है और खुद हड़प लेता है मगनमोहन इनको कभी कभार छोटी मोटी सजा भी देता है इन सबके पीछे है मास्टर माइंड तानिया ये तानिया मगनमोहन कि भी बॉस है उसके इशारे पर जहाज चलता है ऐसा बताया जाता है कि उसके पुरखों ने जहाज को बनाने में बड़ी मेहनत की थी ये जहाज टाइटेनिक भी नहीं है जो ग्लेशियर से टकराकर डूब जाए | अरे मैंने तो आपको जहाज का नाम ही नहीं बताया जहाज का नाम है भारत हा इस फ़िल्म के दर्शको का मैंने अनुमान लगाया है जो कभी कभार तालियाँ बजाते हैं बाकि समय हाथ पर हाथ धरे देखते रहते हैं .......... - देवेश तिवारी
दण्डकारण्य नाम था जिसका वह पावन यह धाम है
इस माटी पर आए इक दिन स्वयं राम भगवान हैं
रामगढ़ और शिवरीनारायण सब इसके पहचान हैं
इतीहासों की जननी कुटुमसर छत्तीसगढ की जान है
छत्तीसगढ़ की माटी पर हमको है अभीमान
छत्तीसगढ की पुण्य भूमी है सब तिर्थों से महान
महानदी और पैरी जिस पर बहते दिन और रात हैं
इंद्रावती की कलकल हर पल चित्रकुट क्या बात है
बांगो खुड़िया खुंटाघाट यहां पर यहां नहरों का जाल है
शिवनाथ हसदेव का जल है पावन अरपा नदी विशाल है
छत्तीसगढ़ की माटी पर हमको है अभीमान
छत्तीसगढ की पुण्य भूमी है सब तिर्थों से महान
बोली यहां है आदीवासी सरल है हल्बी और माड़ीया
पुरे राज के मुख में बसता मधुर मीठा सा छत्तीसगढ़ीया
करमा ददरीया और पंडवानी इनकी तो है बात निराली
सुआ नाचा गम्मत गेंड़ी त्योहारो में भोजली हरेली
छत्तीसगढ़ की माटी पर हमको है अभीमान
छत्तीसगढ की पुण्य भूमी है सब तिर्थों से महान
चंद्रपुर में चंद्रहासिनी रतनपुर महामाया का सुन लो नाम
बमलेंश्वरी देवी है दयालु दन्तेश्वरी का पावन धाम
साहस का प्रतिक वन भैंसा बस्तर का जंगल घनघोर
उंचे उंचे पर्वत के टीले सुनो पहाड़ मैना की तान चंहुओर
छत्तीसगढ़ की माटी पर हमको है अभीमान
छत्तीसगढ की पुण्य भूमी है सब तिर्थों से महान
लौह अयस्क में अग्रणी राज्य है बाक्साईड की यहां है खान
बिजली उत्पादक यहां है कोरबा छत्तीसगढ का बढ़ा है मान
उद्योगों में बढ़ता राज्य यहां स्टिल उगाया जाता जाता है
विकासशील राज्यों की सुची में यह सर्वश्रेष्ठ कहलाता है
छत्तीसगढ़ की माटी पर हमको है अभीमान
छत्तीसगढ की पुण्य भूमी है सब तिर्थों से महान
छत्तीसगढीयों ने सदा माता को रक्त पुष्प का भेंट चढ़ाया
विश्वसनीय छत्तीसगढ नारा देकर मुखिया ने भी मान बढ़ाया
दस वर्षों का बालक छत्तीसगढ अब विश्व में जाना जाता है
विकास करता अनुपम राज्य यह नए किर्तीमान बनाता है
छत्तीसगढ़ की माटी पर हमको है अभीमान
छत्तीसगढ की पुण्य भूमी है सब तिर्थों से महान
देवेश तिवारी ...........
हर मन में बसे होते हैं सपने, हर रात में हमारी आँखों में बसते हैं सपने। लेकिन आज चलिये सब कुछ भूलकर आपको हम ऐसी रूमानी दुनिया में जाएँ जिसे हम सपनों की दुनिया कहते हैं....ख्वाबों की दुनिया कहते हैं... जहाँ न कुछ खोने को रहता है न कुछ पाने को। तो चलिये सपनों की सतरंगी दुनिया में चलें।
स्वप्न और स्वप्नावस्था से हम सभी कुछ समय के लिये वशीभूत से हो जाते हैं। दूसरी मज़ेदार बात ये है कि सपनों की फिल्म के हम स्वयं दर्शक और अभिनेता दोनों होते हैं। कभी कभी बड़ा आश्चर्य होता है कि जो घटनाएँ हमारे साथ कभी भूत या भविष्य में घटित नहीं हुई होती हैं वे भी हमें सपनों में दीखती हैं। हमारी सोच से भी अलग। शायद ऐसा इसलिये होता है कि कल्पना पर आधारित होने पर भी सपने स्पष्ट, भावनामय और नियंत्रण से परे होते हैं। वे प्रतिदिन के जीवन की तरह वास्तविक न होते हुए भी कभी कभी विचित्र रूप से वास्तविक व सच सिद्ध होते हैं। कहते हैं कि अधिकतर सपने अपने में कुछ न कुछ सार्थक बातें या अर्थ छिपाए रहते हैं। सपनों में अपने प्रियजनों, दुश्मनों किसी घटना या दुर्घटना, किसी की मृत्यु ऐसे न जाने कितने अच्छे-बुरे, सुखद या दुखद सपने हमें दिखाई देते हैं। सुखद सपनों की अनुभूति कुछ और ही होती है जिसे सिर्फ उस पल महसूस किया जा सकता है, वहीं दुर्घटना, मृत्यु या डरावने सपनों से हम सिहर से जाते हैं। ऐसे ही रंगबिरंगे सपने जो जीवन के उजियारे हैं जो तनहाई के सहारे हैं जो कभी सच और कभी झूठे होते हैं। ये हमारे बस की बात तो है नहीं कि हम मनचाहे सपनों का सौदा कर सकें।
अंधियारे के ये मोती जो भोर होते ही टूट जाते हैं आखिर क्यूं आते हैं हमारी नींदों में खलल डालने। आप भी सोचते हैं ना कि आखिर क्यों दीखते हैं हमें सपने। मनोवैज्ञानिक पहलू कहते हैं कि कोई भी व्यक्ति बिना सपना देखे एक भी पल नहीं सोता। जागृत स्थिति में आँखें कुछ न कुछ देखती रहती हैं। मन में कई तरह के विचार और कल्पनाएँ घुमड़ते रहते हैं और न जाने कितने ही तरह के चित्र-विचित्र दृश्य दिखाते रहते हैं। नींद की अवस्था में सिर्फ हमारा शरीर सोता है और मन-मस्तिष्क के क्रियाकलाप, चिंतन, विचारो की कल्पनाओं की उड़ान चलती ही रहती है। मन-मस्तिष्क के यही क्रियाकलाप हमें सपनों के रूप में दिखाई देते हैं। सपने बहुधा रचनात्मक होते हैं इसके प्रमाण आज भी मिलते हैं। कितने ही कवियों ने काव्य पंक्तियाँ सपनों में देखीं, लेखकों को कथानक मिले, संगीतकारों को सपनों में संगीत की लय सुनाई दी....इस तरह के कई प्रमाण हैं। एक प्रमाण अंग्रेजी साहित्य के प्रसिद्ध जानेमाने कवि सैमुअल टेलर कालरिज का है, जिन्होंने तीसरे पहर सोने के पहले अंतिम शब्द कहे थे, ‘‘यहाँ कुबला खान ने एक महल बनाने का आदेश दिया था’’, तीन घंठे की नींद के बाद जब वे जागे तो उनके मस्तिष्क में कविता की 300 पक्तियाँ अंकित थीं और जागते ही उन्होंने कुबला खान नामक ये प्रसिद्ध कविता लिखनी शुरू कर दी। उन्होंने सिर्फ 54 पंक्तियाँ ही लिखी थीं कि उनके घर में कोई मिलने वाला आ गया। एक घंटे बाद जब वो गया और वे फिर से लिखने बैठे तो सारी कविता उनके दिमाग से लुप्त हो गई थी और लाख कोशिशों के बाद भी उन्हें आगे की पंक्तियां याद नहीं आईं।
कभी कभी हम सभी के साथ ऐसा ही होता है कि आँख खुली या सुबह उठे तो हम सपना भूल चुके होते हैं मगर तकलीफ तो तब होती है जब हम कोई सुखद सपना हम भूल जाएँ।
सुख दुख देने को आता है, सपने मिटने को बनते हैं।
आने-जाने, बनने-मिटने का ही नाम जगत ये सुंदर।
अरे क्या हुआ यदि तेरा सुख,
स्वप्न, स्वर्ग ढह गया अचानक।
करने को निर्माण मगर, जग में वीरान अभी बाकी है।
स्वप्न मिटे सब लेकिन
सपनों का अभिमान अभी बाकी है।
जगाने, चुटकियाँ लेने, सताने कौन आता है,
ये छुपकर ख़्वाब में अल्लाह जाने कौन आता है।
सपने टेलीपैथी के रूप में संदेशवाहक का भी कार्य करते हैं। सपने भविष्यसूचक होते हैं। कभी कभी सपने हमें अपनी भविष्यवाणी से घबरा भी देते हैं। प्रायः मौत संबंधी सपने ऐसे ही होते हैं। इस तरह के अनेक सपने हैं जो सच हुए। नेपोलियन वाटरलू का युद्ध हार गए थे और इस युद्ध के ठीक पहले उन्होंने एक सपना देखा था कि एक काली बिल्ली उनकी सेना के बीच एक एक करके सभी दोस्तों के बीच घुस रही है। इस तरह की कई घटनाएँ हैं जिनमें लोगों ने सपने द्वारा किसी सुदूर स्थान में घट रही घटनाओं का आभास प्राप्त किया और हजारों मील दूर स्थित अपने प्रियजनों के हाल जाने। इस तरह के सैकड़ों प्रयोग अब विश्वविख्यात हो चुके हैं जिनकी वैज्ञानिक पुष्टि कियक जाने के बाद उन्हें सही भी पाया गया। पूर्वाभास कराने वाले सपनों को वैज्ञानिक अतेन्द्रिय सपने कहते हैं और विज्ञान ऐसे सपनों को दूसरे टाइम जोन, समानान्तर संसार या पृथक आयाम की संज्ञा देता है।
नींद के आगोश में दीखने वाले सपने जो भले ही हमारे लिये साधारण हों या जिन्हें हम भूल जाना चाहते हैं या भूल जाते हैं, पर वैज्ञानिकों ने इन्हें साधारण नहीं समझा है। आइंस्टीन ने जब सापेक्षतावाद का सिद्धांत प्रतिपादित किया और विश्व के रूप और उसकी क्रियाओं को गणित के आधार पर सिद्ध किया तब से विज्ञान जगत में ये चर्चा उठ खड़ी हुई कि भूतकाल की घटनाओं को फिर से असली रूप में देख जाना संभव है क्या? आइंस्टीन ने पहली बार इस संदर्भ में एक नवीन तथ्य प्रतिपादित किया कि घटनाक्रम भले ही समाप्त हो चुके हों पर उनकी तरंगें विश्व ब्रम्हांड में फिर भी रहती हैं। आउटर टेन नामक अपने ग्रंथ में बुल्क लिखते हैं कि भूत और भविष्य के सपने उतने स्पष्ट नहीं होते क्योंकि ये अति सूक्ष्म अवस्था में रहते हैं जो हमारी स्थूल आँखों की जीवन सीमा से परे होता है ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार कठपुतली के नृत्य में पुतलों से बँधे धागों के न दीखने से दर्शकों को ये भ्रम हो जाता है कि निर्जीव काठ के पुतले अपने आप ही नाच रहे हों। पतंग का धागा पतंगबाज़ के हाथों में होता है, पर दूर से देखने पर पतंग निराधार उड़ती हुई दिखाई देती है। यही बात भूत और भविष्य की है। मनोवैज्ञानिक और वैज्ञानिक दोनों ही ये मानते हैं कि सपने यथार्थ की अभिव्यक्ति करा सकते हैं।
ख़ैर ये तो रही भूत और भविष्य की बातें....फिलहाल वर्तमान की बातें करें आखिर सपने तो सपने ही होते हैं....नींद खुली और टूट गए। नीरज ने सपनों के बारे में लिखा है.....
कुछ नहीं ख्वाब था सिर्फ एक रंगीनी का,
धरती की ठोकर खाते ही जो टूट गया।
मैं अमृत भरा समझे था स्वर्ण कलश जिसका,
कुछ नहीं एक विषघट था गिरकर फूट गया।
सपनों का ये सफर तो हम यहीं ख़तम कर रहे हैं, सपने तो सपने होते हैं पर इन सपनों को जागी आँखों से देखने पर, हिम्मत संजोकर पूरा कर लें तो सपनों की दुनिया को हकीकत की दुनिया में हम स्वयं ही बदल सकते हैं। बस इतना ज़रूर कहेंगे कि अगर आपने जागी आँखें से कोई सपना देखा है तो उसे पूरा करने के लिये तुरंत जुट जाइये.....हमारी दुआएँ आपके साथ हैं। साभार : संज्ञा जी..http://cgswar.blogspot.com/...........