
इस बीच अंतागढ़ टेपकांड के पहले अवसर में कांग्रेस ने अमित जोगी को पार्टी से निकाल दिया.. अमित जोगी पार्टी में रहते घुटन महसूस कर रहे थे , यह सजा उनके लिए अपने आप को प्रोमोट करने का सवर्णिम अवसर साबित हुआ. और अमित अपने प्रचार प्रसार में जुट गए..अब बारी अजीत जोगी की थी, जिस मोतीलाल वोरा के बूते कांग्रेस संगठन जोगी के खिलाफ कार्रवाई की अनुसंशा कर आया, वहीं बोरा बाद में बिदक गए और जोगी को उनका साथ मिल गया। ऐसा लगा जैसे संगठन का पलिता लगाने अंतागढ़ टेपकांड की भूमिका किसी फिल्म के स्क्रीप्ट की तरह लिखी गई हो। संगठन सरकार को लेकर चिंतित रही है, मगर जब पीसीसी को यह समझ आया कि, जोगी के रहते चिल्ल पों और सरकार को कटघरे में लाने पर उनकी जमानत लेने कांग्रेस संगठन का अपना वकिल उनके पक्ष में पैरवी कर रहा है तो..बात ठन गई..और निशाने पर जोगी आ गए। जोगी के जाति को लेकर जितने दस्तावेज सार्वजनिक हैं, उसे देखकर कोई भी बता सकता है, कि जोगी आदिवासी तो नहीं हैं.. मगर देश कोर्ट के फैसलों से चलता है.. कोर्ट ने सरकार को इसकी जिम्मेदारी दी है, सरकार ने फैसला कर भी लिया है मगर इसे दबाकर बैठ गई है। इसी को आड़ लेकर भूपेश बघेल अपना दांव चला रहे हैं, कि दबाव में सरकार यदि रिपोर्ट पेश कर दे तो पांव का कांटा निकल जाए । मगर आईएएस, आईपीएस, प्रोफेसर, डॉक्टर और वकिल सब विधाओं में पारंगत परिवार कानूनी दांवपेंच से इतनी बार रूबरू हो चुका है कि, इसे कानून कोर्ट हल्का लगता है। मुख्यमंत्री वेट एंड वाच की भूमिका में हैं। जोगी अगर नुकसान नहीं पंहुचा रहे तो फायदे की उम्मीद कमसकम जिंदा है लिहाजा जाति का निर्धारण करने वाली हॉई पावर कमेटी कई साल के नो वर्क नो पेमेंट लिव पर है। संगठन को लग रहा है कि, होम करते हाथ जल गए, पार्टी सफाई करने के चक्कर में पहले ठेकेदार ने साथ दिया अब ठेकेदार ही नहीं चाहते की सफाई हो। निती निर्धारणकर्ता आलाकमान को इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि, 11 सीटों की लोकसभा वाले प्रदेश में जल्दबाजी में कोई फैसला लिया जाए। लिहाजा, संगठन अब दिल्ली की बजाय रायपुर में प्रेशर बना रहा है। अब कांग्रेस के रथ के पहिए डगमगा रहे हैं, एक पहिए की दूसरे से बन नहीं रही है दोनों को जोड़कर रखने वाला आलाकमान न्यूट्रल पर है, और इस दांव पेंच के सारथी हो गए रमन सिंह, एक के लिए तारणहार तो दूजे के लिए दबाव में फैसला आने की उम्मीद।