
यह लिखने में थोड़ी देर है मगर सवाल अनसुलझा रहकर यह प्रसंग भीतर ही दफ्न न रह जाए यह खरसियां के इतिहास के लिए लिखा जाना जरूरी है।
सवाल कई हैं.. क्या खरसियां का चुनाव बेहद आसान था.. या खरसियां कांग्रेस का गढ़ था इसलिए कांग्रेस जीत गई.. या प्रदेश के अंडरकरंट की तरह ही खरसियां में भी अंडरकरंट नजर आया.. चुनाव के दौरान कई बार खरसियां जाने के बाद और सतत वहां के जानकारों से संपर्क में रहते हुए यह कहा जा सकता है कि, यह चुनाव दिलचस्प रहा..इस चुनाव में जीत का अंतर पहले की तुलना में कम हुआ..युवा आईएएस ओपी चौधरी और विधायक उमेश पटेल के इस चुनाव को हमेशा याद किया जाएगा, ठीक उसी तरह जैसे अर्जुन सिंह के सामने दिलिप सिंह जूदेव, लखीराम अग्रवाल के सामने नंदकुमार पटेल चुनाव लड़े थे.. पुरानी कहानियां अपनी जगह कायम रहेंगी..मगर 2018 का चुनाव अपनी तरह से याद किया जाएगा। इस चुनाव में बीजेपी ने युवा आईएएस ओपी चौधरी को चुनाव मैदान में उतारा था.. मगर क्या केवल ओपी चौधरी अकेले उस सीट पर चुनाव लड़ रहे थे।
चुनाव के दौरान उमेश पटेल अभिमन्यू की भूमिका में विरोधी दल के चक्रव्यूह को भेदने की कोशीश कर रहे थे.. ओपी चौधरी सत्ता के जिस सुपर सीएम के कैंडीडेट माने जा रहे थे..उनके सामने प्रशासनिक महकमें में भयाक्रांत नेता हामी भरने से इतर कुछ नहीं करते थे..ओपी चौधरी को चुनाव आयोग धृतराष्ट्र की भूमिका में कई उल्लंघंन पर एक नोटिस दे रहा था। कभी नंदकुमार पटेल के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले बोतलदा परिवार के बालकराम पटेल, उपेक्षा का आरोप लगाते हुए द्रोणाचार्य की भूमिका में थे.. ईप लाल चौधरी भिष्म पितामह, रविन्द्र पटेल सबकुछ जानते हुए कर्ण बने हुए थे.. दुर्योधन और दुष्शासन सत्ता के वे सभी हथकंडे थे, जो प्रशासन से लेकर आर्थिक आधार पर किसी सीट को जीत लेने के लिए कुछ भी करने को आमादा थी..
चुनाव के दौरान नगदी से लेकर टी शर्ट, शेविंग किट से लेकर साड़ी और हर वो संसाधन जो चुनाव को प्रभावित कर सकता था.. वह बांटने का प्रयास हुआ..एक तरफ सतरंगी वीडियो के जरिए ओपी चौधरी युवा जनमानस में अपनी छाप छोड़ने की कोशीश कर रहे थे, उनके पास बताने के लिए कलेक्टरी पद से दिया हुआ इस्तिफा था..माटी की मोहब्ब्त में वे लाल हो गए थे.. ओपी चौाधरी के साथ केजरिवाल पैटर्न में कैंपेन करने वाले युवाओं की फौज थी..आईटी टीम, सर्वे टीम..वीडियो ग्राफिक्स..पेड रणनीतिकार..प्रशासनीक तंत्र क्या नहीं था.. एक पल को ऐसा भी लगा कि, ओपी चौधरी चुनाव जीत रहे है.. फिर ऐसा क्या हुआ कि, ओपी चौधरी हार गए।