बर्बर बरसती लाठियाँ, मेहनतकश मजलूमों पर
खून की नदियाँ बहती है, पतितपावन धरती पर
आवाम भी आज मौन है, कैसे इस खुनी मंज़र में
शोषित खुद ही चले चुभोने, अपनी छाती खंजर में
कहिये मैं खामोश कैसे रहूँ
हर रोज कितनों की अस्मत, यूँ ही लूट ली जाती है
हर दिन फर्जी मुटभेड़ों की, गाथाएँ सुनाई जाती है
पाखंडी, श्वेत वस्त्र लादकर, गाँधीवादी कहलाता है
कहिये मैं खामोश कैसे रहूँ
बंदूकों की नोक पर आज, गाँव जला दिए जाते हैं
बारूदों पर उलटे लेटे आदिवासी, माओ कहलाते हैं
जंगल खेत उजड़ने को है, उद्यमियों की चौपाल लगी है
और अन्नपूर्णा के भक्तों को, अब नोटों की प्यास लगी है
कहिये मैं खामोश कैसे रहूँ
लोकतंत्र घुट-घुट मरता है, चंद तानाशाह के शिकंजो में
अब क्यों धार भुथियाने लगी, भारतीय सिंहों के पंजों में
अब राह दिखाने हमको न फिर, आजाद व गाँधी आयेंगे
लोभी जिंदगी में विलासी बनकर , हम यूँ ही मर जायेंगे
कहिये मैं खामोश कैसे रहूँ
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