स्मृतियों की धुंधलाती यादें निकलकर सामने छा जाने को है
और आज की अनचाही खुशियाँ पुरानी यादों में धुंधलाने को है
कुछ बातें कहना सुनना उसकी ही यादों में खोकर जीना बड़ी चाहत है
अकुलित होकर डबडब आँखों से खुशियाँ छलकाना भी बड़ी आफत है
तब हमारे जीवन में भी आंशिक उनका साया था
क्या कुसूर था पूछा नहीं हिम्मत जवाब दे जाती थी
वो ही अक्सर उलझन लेकर सामने चली आती थी
क्या पता कभी सामना होगा अब भी कुछ बातें बाकि है
संक्षिप्त जीवन की बारहमासी दास्ताँ सुनाना बाकि है
वो पल भी कहने हैं जो अक्सर चिरागों से मैं कहता था
उस कहानी को सुनकर वह भी हंसहंस रोकर जलता था
क्या कुछ नहीं धरती पर फिर भी ख़ामोशी गहराती है
क्या बताएं फेसबुकिया मित्रों हमें किसकी याद जलाती है
एक पल को भी दीदार हो जाये तो चाँद देर से निकलता है
अगर कुछ बातें हो जाये तो भोर का सूरज अंदर छिपता है
अब तो यही काली रातें हमेशा साथ निभाएंगी
वो तो पूनम की चाँद हैं बस आएँगी चली जाएँगीक्या कहें उलझन की बदरी इस कदर छाई है
पुरनम आँखों में दूर तलक पसरी तन्हाई है
कोई चरागां इस बुझे दिल में जले तो जले कैसे
खुशियाँ आक्रांताओं के आंगन में पले तो पले कैसे
जाने कितनी खुशियाँ आकर दहलीज पर लौट जाती है
खुशनसीब वो हैं जिन्हें यार की बस्ती में मौत आती है
हम तो आज भी किनारे पर ज़लज़ला थमने के इंतजार में हैं
नहीं पार होती उन्मादी दरिया वह भी समंदर के प्यार में हैं
बेगैरत जुबां पर आहट न पाकर, ये गैरतमंद जिंदगी मरी जा रही है
बिना मूरत के देवालय में भला पुजारी क्या करेगा
तस्वीरों में खोया पगला देवेश तिवारी क्या करेगा
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