यह वक़्त सहसा लेकर आज संताप का रेला आया है
विलाप का यह वक़्त नहीं है घोर अंघेरा छाया है
चाहे है बंदिशियाँ लाखों जुबानों पर सही
लेकिन उन्माद कि कसौटी का आखिरी यह पल नहीं
वीरानियों में भले ही सज न पाए आज महफ़िल
हर शांत भंवर के बाद हमेशा कोई सैलाब आया है
फिर तो यह अवसर होगा विप्लव ने हमें बुलाया है
न तुम विद्रोह दबा ह्रदय में ऐसे अत्याचार सहो.
रणभेरी के बिगुल से पहले कास कमर तैयार रहो
आँसुओ कि बहती झड़ी से ह्रदय कि आग ना बुझने पाए
निर्णय लेकर चलो अभी कहीं विलम्ब न हो जाये
जंग लगी कटार ही सही जंगी हो मैदान जहाँ
शंखनाद कि बेला में नवयुग हो तैयार तैयार यहाँ
अब जलजला उठने लगा है युवाओं के आतुर मन में
ज्वाला क्रांती कि धधक उठी है उपेक्षित शोषित जन जन में
उस उददेश्य को पूर्ण करो जिसकी खातिर जन्म लिया
लज्जा न हो माता को फिर कैसे कपूत को जन्म दिया ...
देवेश तिवारी
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