धधक धधक कर जलती सड़कें गली गली में लाशें हैं
जोंक बना सरकारी तंत्र सभी खून के प्यासे हैं
सांसद के गलियारों में मुद्दा महंगाई का छाया है
और प्रधानमंत्री जी ने प्याजी बड़ा बनवाया है
यूपी कि जो बात करें तो अपराधों कि माया है
देख दशा दयनीय देश कि आज गला भर आया है
सरकारी खजाने कि तिजोरी पर कैसे डाके पड़ जाते हैं
घोटालेबाज नापाक दरिंदे सीढी सांसद कि चढ जाते हैं
कितने ही गरीब देश के रोज भुख से मर जाते हैं
और लाखो तन अनाज गोदामो में पड़े-पड़े सड़ जाते हैं
सुरक्षा कि क्या बात सुनाये रक्षक भक्षक बन बैठे हैं
जिम्मेदार सभी नुमाइंदे अजगर बन कर ऐठें हैं
त्राहिमाम कि उठ रही आवाजें दबे कुचलों कि आहों में
मीडिया अदालतें जाँच एजेंसियां हुक्मरानों कि बाँहों में
बेखौफ आतंकी देश मे खुनी कोहराम मचाते हैं
लड़ते हुए करकरे सालस्कर बली वेदी चढ जाते हैं
वीरों कि विधवाओं को हम मुआवजा दे फुसलाते हैं
और अफजल कसाब को जेलों में बिरयानी पहुंचाते हैं
तिरंगा फहराने कि नहीं आजादी अब लाल चौक कश्मीर में
क्या अब लालिमा घटने लगी है लाल किले कि प्राचीर में
बेगैरत हो रहे जन प्रतिनिधि भाग रहे जिम्मेदारी से
लाशों का ढेर लग गया उद्योगपतियों कि लापरवाही से
देवेश तिवारी
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