तशरीफ टिका ही लिजीए, आईपीएल आ गया है। ऐसे आप दिनभर इतने बीजी रहते है। कि आपको तशरीफ टिकाने का मौका ही नहीं मिल पाता। लिजिए आपके सारे काम, घर की जिम्मेदारियां, आफिस के फाईल निपटाने,देश की जिम्मेदारियों को निपटाने का सारा जिम्मा आईपीएल ने लेलिया। इसलिए सारे काम छोड़कर आप आराम से बस के उपर, टायर में, कम्बोड पर, पेपर के बन्डल पर, वनस्पती के डिब्बे पर, साईकल के केरीयर पर कहीं भी अपनी तशरीफ टिकाकर मैच का मजा ले सकते हैं। और कुछ देखेंगे भी। बात मनोरंजन से भी आगे जा रही है। जब छोटे—छोटे बच्चों को पढ़ाई और खेलकूद से दूर कार्पोरेट मैच के इस घटिया फार्मेट के लिए उन्मादी और अति उत्साह में देखता हूं तो चिंता होती है। मैच किसका होगा, दो कार्पोरेट लाबियों का, लड़ेंगे कौन, दो राज्यों के नाम और उनकी अस्मिता। पहले पहल जब भारत पाकिस्तान के मैच होते थे, तब माहौल जीत या हार में हो हंगामा जैसा बिलकुल न था, लेकिन मीडिया के उकसावे और मैच को दुश्मनी की तरह देखने के नजरीये ने खेल को जंग का मैदान बना दिया। आलम यह है कि, अब मैच जितने पर जंग जितने की खुशी होने लगी है। ऐसा उन्माद यदि भारत के अलग अलग शहरों और राज्यों के बीच पनप गया तो, हालात कैसे होंगे यह सोंचना होगा। फिर आईपीएल ही हो रहा है ना, कोई समुद्र मंथन तो हो नहीं रहा, जहां से नौ रत्न या अमृत का घड़ा निकलने वाला हो। तो इस हर साल लगने वाले व्यापार मेले की तरह लगने वाले आईपीएल लिए ओवर एक्साईटेड होने की क्या जरूरत है। हमारे इस अतिउत्साह और घटीया कार्पोरेट मैच की आड़ में निलाम हो रहे खिलाड़ीयों को देखना हमें तो नहीं भाता। लोगों को इसका जबरीया फैन बनाकर फिर से सेंट, पीपरमेंट, साबुन तेल मसाला बेचने की तैयारी है। खेल देखना अब केवल मनोरंजन नहीं रहा शायद, क्रिकेट देखना मनोरंजन न रहकर कैसे बना आदत..पता ही नहीं चला ..खैर क्रिकेट प्रेमियों को हर चीज में छूट है ...
great
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