Monday, June 24, 2013

दरभा एक माह..नहीं बदला नजरीया..कठोर कदम बंगलों में सिमटे

छत्तीसगढ़ के इतिहास में 25 मई का दिन काला दिन बन गया। इस हमले में प्रदेश कांग्रेस में नेताओं की एक पंक्ति को ही लगभग खत्म कर दिया। इस नक्सली हम दरभा नक्सली हमले को आज एक महीने पूरे हो गए..तमाम बयानबाजीयां हुई..जांच की सबसे बड़ी टीम एनआईए को इसकी जांच की जिम्मेदारी सौंप दी गई..पर क्या नक्सलवाद के​ खिलाफ इस बलिदान को मील के पत्थर के नजरिए से देखा गया वो पूरा हो पाया। क्या सरकार ने नक्सलीयों के इस नरसंहार से कोई सबक लेने की कोशिश की। राजनैतिक महकमों में बयानबाजी को छोड़ दें तो प्रशासनीक तौर पर या जमीनी स्तर पर ऐसा क्या हुआ कि यह मान लिया जाए कि सरकार नक्सलवाद को लेकर गंभीर है।

25 मई का काला अध्याय प्रदेश जिसे कभी नहीं भूला सकता। शाम चार बजे का वक्त जब ​कांग्रेस के परिवर्तन यात्रा पर बस्तर क जीरम घाटी में एम्बुश लगाकर कांग्रेस के काफिले पर नक्सलीयोंने हमला किया। नक्सलीयों के सजाए एम्बुश ने कांग्रेस को ऐसा जख्म दिया जिसे कभी भरा नहीं जा सकता। वहीं इंटेलीजेंस फेल्योर की वजह ने भारतीय जनता पार्टी की सरकार के 9 साल की नक्सवाद के खिलाफ लड़ाई पर कलंक का टिका मढ़ दिया। घटना के ​बाद दिल्ली से राहुल गांधी और सोनिया गांधी छत्तीसगढ़ भागे चले आए। पूरी रात राहत और बचाव कार्य चला। आरोप प्रत्यारोप और घटना की जिम्मेदारी तय करने के लिए केंद्र सरकार ने एनआई की जांच टीम बैठा दी तो राज्य सरकार ने आगे बढ़कर हाईकोर्ट के जस्टिस प्रशांत मिश्रा की अध्यक्षता में न्यायीक जांच कमेटी बना दी। पुलिस की जांच अपने स्तर पर चलती रही। इस घटना में इंटेलीजेंस का बड़ा फेल्योर सामने आया। पहली बार घटना को देखते ही यह पता चला कि कांग्रेसीयों की परिवर्तन यात्रा को वो सुरक्षा नहीं दी गई जिस तरह विकास यात्रा को संगीनों की छावनी में तब्दील किया गया था। रोड ओपनींग पार्टी से लेकर सुरक्षा गार्ड नहीं देने के आरोप को झेल रही भाजपा सरकार ने पहले ही यह मान लिया कि यह इंटेलीजेंस का फेल्योर है लेकिन इसकी जिम्मेदारी किसकी है यह तय करने में सरकार नाकाम रही। सरकार ने दिखावे के तौर पर एस पी को निलंबीत कर दिया और फौरी तौर पर आई जी का ट्रांसफर कर दिया। लेकिन क्या इतने भर से सरकार की जिम्मेदारी खत्म हो गई। जिस इंटेलीजेंस फेल्योर की बात सामने आई..आई जी के उन अधिकारीयों पर कार्यवाई की आंच भी नहीं आई। सरकार के खुफिया तंत्र कि विफलता पर विपक्ष ने भी सरकार को जमकर कोसा। सोनियागांधी ने राज्यपाल और मुख्यमंत्री के साथ बैठक में पूछा कि घटना कि जिम्मेदारी किसकी है। मुख्यमंत्री स्तब्ध रह गए। राज्यपाल और सुरक्षा से लेकर मुख्यसचिव की पूरी आसंदी को सांप सूंघ गया। क्योंकि किसी के पास इसका माकूल जवाब नहीं था। सरकार के मौन को जनता ने भी देखा कि सरकार किस तरह नक्सलीयों के सामने असहाय है।
इस बीच खबरें आई की एनआईए की प्रारंभीक जांच रिपोर्ट में कांग्रेस के अपने ही लोग हमले में शामिल हो सकते हैं। खुद एनआई ए को आगे आकर आखिर में स्पष्टीकरण देना पड़ा कि न तो उनकी जांच रिपोर्ट आई है न ही उनकी जांच में अब तक इस तरह के तथ्य सामने आए हैं।

सरकार ने कांग्रेसीयों को शहिद घोषीत कर राजकीय सम्मान दिया, राजकीय शोक से शहिदों को अमर बना दिया..​आरोप प्रत्यारोप के बिच सरकार यह ताना बाना बुनने में मशगूल नजर आई कि नक्सलवाद राष्ट्रीय समस्या है।कांग्रेस कहती रही कि हमने राज्य को नक्सलवाद से निपटने हर संभव मदद की है। इस बीच मुख्यमंत्री दिल्ली भी जा पहुंचे वहां उन्होंने बयान दिया कि नक्सलवाद से सख्ती के साथ निपटा जाएगा।
लेकिन आईटीबीपी,जिला पुलिस बल, राज्य सुरक्षा बल, सीआरपीएफ जैसे फौज के बस्तर में तैनाती के बाद भी बयान जैसी तल्खी धरातल पर देखने को नहीं मिली।

इस घटना के बाद जनता को ऐसी उम्मीद नजर आई कि जैसे अब सरकार कोई बड़ा एक्शन न​क्सलीयों के खिलाफ करेगी। घटना के बाद पांच नक्सली वारदातें हो चुकी हैं लेकिन एक नक्सली कमांडर जिसे दुर्घटना होने पर पकड़ा जा सका। इसके अलावा सरकार को नक्सलीयों के खिलाफ कोई बड़ी सफलता नहीं मिल पाई ..दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के प्रवक्ता गुडसा उसेंडी की विज्ञप्ती सरकार के मुंह पर तमाचा बन कर गूंजी.. लेकिन सरकार के अंदर न तो प्रतिशोध नजर आया न ही सरकार ने किसी बड़ी कार्यवाई करने की नियत तक दिखाई। कठोर कदम उठाने की बात बार बार कही गई लेकिन 30 दिनों में सरकार एक कदम भी नहीं उठा पाई.. घटना के बाद से 30 में से 20 दिन बस्तर से गोलीयों की गड़गड़ाहट गूंजी पर सरकार के कठोर कदम मंत्रालय और पुलिस ​मुख्यालक की सिमाओं को भी नहीं लांघ सके।

कांग्रसी नेताओं की एक पूरी कतार को नक्सलीयों ने नेस्तनाभूत कर दिया। लेकिन कांग्रेस भी सियासत में मशगूल नजर आई। बड़े नेताओं ने नक्सलवाद को लेकर चिंता तो जताई लेकिन राज्य में इसका असर नहीं दिखा। दिल्ली में गृहमंत्री शिंदे , रमन सिंह के साथ बैठकर समस्या को राष्ट्रीय समस्या बताते रहे लेकिन राज्य के कांग्रेसी नेता इसे पूरी तरह राज्य सरकार को फेल्योर साबित करने में जुटे रहे। अगर यह सरकार का फेल्योर भी था तो युवक कांग्रेस और एन एसयूआई की युवा फौज होने के बाद  भी घटना का आक्रोश सड़कों पर देखने को नहीं मिला। न ही कांग्रेसी नेताओं की जुबानों पर ऐसी तल्खी थी जो राज्य सरकार को सोंचने पर मजबूर कर सके।

 सरकार ने डेमेज कंट्रोल के लिए सर्वदलिय बैठक बुलाई कांग्रेसीयों ने उसका भी बहिष्कार कर दिया। विधायकों ने इस्तिफे की पेशकश कर दी। लेकिन जो हुआ सब​ दिखावे के लिए। अपनों के जाने के गम की बात कहकर कांग्रेसीयों के चेहरे कुछ दिन रूंआसू जरूर नजर आए लेकिन श्रद्धांजली सभा के नाम पर भी सियासत होती रही। जोगी ने पहले अपने घर में श्रद्धांजली सभा रखी जिसमें उन्होंने दांव खेला कि उनके किसी विरोधी को अध्यक्ष न बनाया जाए। जोगी ने बयान दियाकि उनकी ​इच्छा है कि प्रदेश अध्यक्ष का पद रिक्त रखा जाए। इधर पटेल मुदलियार और कर्मा की तेरहवीं भी नहीं हुई थी कार्यवाहक प्रदेश अध्यक्ष का ताज चरणदास महंत के सर पर सजा दिया गया। कांग्रेस भवन की श्रद्धांजली सभा में जब जोगी पंहुचे तो लोगों ने सोंचा कि जोगी आंसू बहाने आए हैं। लेकिन जोगी गरीयाने पंहुचे थे उस नेतृत्व को जो प्रदेश कांग्रेस की राजनीति का रीमोट कंट्रोल अपने हाथ लेना चाहता था। श्रद्धांजली सभा में प्रदेश भर से लोग आए..गांधी मैदान खचाखच भरा रहा इसके बाद भी अगले दिन अखबार के पन्नों में तस्वीर गुटबाजी की उभरी। जोगी ने दिग्गी को बाहर का नेता बता दिया। जोगी ने अपने गुस्सैल अंदाज में प्रदेश कांग्रेस के नए नेतृत्व को पद का लालची बताकर छत्तीसगढ़ की परंपरा का पाठ पढ़ा दिया। दिग्गी ने कहा कि सजेशन मांगने पर देते हैं टांग अड़ाने की आदत नहीं है। सियासत हुई । केशकाल उपचुनाव में ही कांग्रेस की गुटबाजी उभर कर सामने आ गई। अपने नेताओ के जाने का आभासी गम ​बीच बीच में देखने को मिला विद्याचरण शुक्ल का जाना पुरोधा का अंत बताया गया। कांग्रेस का अध्याय समाप्त हो गया। इसके बाद भी कांग्रेस वो काम न कर ​सकी कि भाजपा सरकार नक्सलयीयों से निपटने एक रणनीति ही बना सके। कांग्रेस यह तो कहती रही की भाजपा के पास न​क्सिलयों से निपटने रणनिति नहीं है। लेकिन यह न बता सकी की सरकार को क्या करना चाहिए। 30 दिन मतलब 720 घंटे का वक्त ​बीत गया इस बीच कांग्रेस न तो नक्सवाद के खिलाफ कोई तल्खी दिखा पाई न ही कोई बयान नक्सलीयों के खिलाफ आया जैसी उम्मीद की जा रही थी। उल्टे चरणदास महंत ने नक्सलीयों को परिवार का सदस्य बता दिया। इस बीच अगर कांग्रेस ने कुछ किया तो जगह जगह श्रद्धांजली सभा का आयोजन कर श्रंद्धांजली को सहानुभुति .और .सहानुभुति को वोट में तब्दील करने की कोशिश। अब कांग्रेस कलश यात्रा बलिदान यात्रा के माध्यम से पूरे प्रदेश में बलिदान का कलश घुमाकर उस कलश में जनता से वोट के पुष्प सुमन अर्पित कराना चाह रही है। जनता में साहनुभुति की लहर चल निकले तो चुनाव में काम आसान हो सकता है कांग्रेस की इस रिति निति के बीच नक्सलवाद का मुद्दा छद्म हो गया। नक्सवाद के खिलाफ रणनिति..योजना..तल्खी..विचार..


ढ़ के इतिहास में 25 मई का दिन काला दिन बन गया। इस हमले में प्रदेश कांग्रेस में नेताओं की एक पंक्ति को ही लगभग खत्म कर दिया। इस नक्सली हम दरभा नक्सली हमले को आज एक महीने पूरे हो गए..तमाम बयानबाजीयां हुई..जांच की सबसे बड़ी टीम एनआईए को इसकी जांच की जिम्मेदारी सौंप दी गई..पर क्या नक्सलवाद के​ खिलाफ इस बलिदान को मील के पत्थर के नजरिए से देखा गया वो पूरा हो पाया। क्या सरकार ने नक्सलीयों के इस नरसंहार से कोई मदद ली। राजनैतिक महकमों में बयानबाजी को छोड़ दें तो प्रशासनीक तौर पर या जमीनी स्तर पर ऐसा क्या हुआ कि यह मान लिया जाए कि सरकार नक्सलवाद को लेकर गंभीर है।
दूरदर्शिता कहां है किसी को नहीं पता। एक महीने बीत कए नक्सलवादीयों के दिए जख्म को। लेकिन जख्म भरे न भरे कांग्रेस पट्टीयां उतारने को तैयार नहीं है। नक्सलवाद से लड़ाई या घटना की जिम्मेवारी को लेकर बातें नहीं हो रही हैं। बयानबाजीयां सियासत को लेकर है नक्सलवाद को लेकर नहीं। सभी को जांच रिपोर्ट का इंतजार है।