Tuesday, November 20, 2012

शर्मसार क्यों न हो लोकतंत्र

शर्मसार क्यों न हो लोकतंत्र 

इस लोकतंत्र को शर्म नहीं आनी चाहिए कि, एक राज ठाकरे कुछ भी बोलकर निकल जाता है और किसी को कोई तकलीफ नहीं होती। इधर बाला साहेब के बारे में दो सामान्य युवतियों ने बिना किसी राजनैतिक मंशा के कुछ ​कहा और उन्हें जेल भेज दिया गया। क्यों लोकतंत्र पर अभिमान हो..और संविधान का अनुच्छेद क्रमांक 19 वें में 1 क को हटा क्यों नहीं दिया जाता जिसमें अभिव्यक्ती की स्वतंत्रता की आजादी है। दरअसल नक्सली यदी इस लोकतंत्र का विरोध करते हैं। तो इसकी वजह क्या है यह नहीं पता..लेकिन चक्रव्यूह में नक्सली नेता का वह संवाद जरूर सच नजर आता है। मैं ऐसे लोकतंत्र पर विश्वास नहीं रखता जो गरीबों की इज्जत करना नहीं जानता..राजनैतिक पार्टीयों के सिपेसालार मंच पर डाग ​बार्किंग करते रहें..किसी को श्रीखंडी तो किसी को बार डांसर से लेकर औरंगजेब का नाती करार देदें किसी को आपत्ती नहीं होती। किसी को पत्नी पुरानी होने पर कामुकता का मजा नहीं आता है और यह बात सार्वजनिक तौर पर कहता है। लेकिन किसी को कोई दिक्कत नहीं । एक दलित यु​वति को इस देश में दबंग उठाकर ले जाते हैं..यौन शोषण हो जाता है पुलिस रिपोर्ट दर्ज नहीं करती और। और महाराष्ट्र के मराठी तालिबानी पुलिस कुछ शिवसैनीकों के आरोप पर मामला दर्ज कर लेती है। एक देश एक कानून मगर सजा केवल गरीबों आदिवासीयों और कमजोर वर्ग के लिए...इसे लोकतंत्र कहते हैं। हम भारत के लोग हा हा हा ....